Monday, 19 February 2024

जोगिन्दर नगर क्षेत्र का प्रमुख लोक नृत्य है 'लुड्डी-लुहासड़ी'

 विभिन्न सामाजिक समारोहों में प्रमुखता से गाई व नाची जाती है 'लुड्डी-लुहासड़ी'

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल के अंतर्गत तहसील लडभड़ोल व उपतहसील मकरीड़ी क्षेत्र में यहां का पारंपरिक लोक नृत्य लुड्डी-लुहासड़ी प्रमुखता से गाया व नाचा जाता है। सामूहिक तौर पर गाये जाने वाले इस लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य में लोग सामूहिक तौर पर गाते व नाचते हैं। विभिन्न सामाजिक समारोहों जैसे विवाह, शादी, जडोलण, सौंजी जातर, जातर, मेलों व त्योहारों में इसे स्थानीय लोग लुड्डी-लुहासड़ी पर प्रमुखता से गाते व नाचते हैं। लुड्डी-लुहासड़ी के गाने व नाचने की यह प्रक्रिया पूरी रात भर चलती है। भले ही बदलते वक्त व डीजे संस्कृति के चलते हमारा यह पारंपरकि लोकनृत्य लुड्डी-लुहासड़ी की चमक जरूर कुछ फीकी पड़ी है लेकिन अभी भी यह लोकनृत्य जीवित है तथा विभिन्न सामाजिक समारोहों में आज भी गाया व नाचा जाता है। लेकिन संरक्षण के अभाव में लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य का आकर्षण लगातार कम हो रहा है। जिसके कारण लुड्डी-लुहासड़ी पारंपरिक लोकनृत्य से जुड़े बजंतरियों व वाद्ययंत्रों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। 

लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य की विस्तृत जानकारी रखने वाले एवं लोक कलाकार मनोहर ठाकुर के अनुसार लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य अलग-अलग ताल में गाया व नाचा जाता है। इसमें कुल 6 पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाये जाते हैं जिनमें शहनाई, नगाड़ा, ढ़ोल, डगा, ताशा व नरसिंगा शामिल है। लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य के कुल चार प्रमुख भाग हैं, जो अलग-अलग ताल में चलते हैं। जिसमें पहला भाग गढिय़ा, दूसरा लोहली, तीसरा लुड्डी व चौथा लुहासड़ी शामिल है।  

1. गढिय़ा:

लुड्डी-लुहासड़ी पारंपरिक लोकनृत्य में गढिय़ा पहला भाग है। गढिय़ा बिल्कुल धीमी ताल में चलता है और इसे कई घंटों तक गाया व नाचा जाता है। गढिय़ा के अंतर्गत कई तरह के बोल गाये व नाचे जाते हैं जिनमें जैसे:-

1. मजला रे मारे ओ भाईया मनी रामा, 

लूणा रा तोड़ा ओ भाईया मनी रामा,

ओ भाईया मनी रामा चौहारी जो जाणा.....

2. खलडू रा मुक्की रा खर्चा, ओ भाईया मनी रामा

ओ भाईया मनी रामा बोला बीबडू राम मुक्की रा पाणी,

घाटिया जो घोड़ा ओ भाईया मनी रामा, पधरिया जो डोला......

2. लोहली:

लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य का दूसरा भाग लोहली है। इस भाग में ताल गढिय़ा से थोड़ा बढ़ जाता है। लोहली भाग को कई घंटों तक गाया व नाचा जाता है। लोहली भाग के अंतर्गत भी कई तरह के बोल गाये व नाचे जाते हैं जिनमें जैसे:-

1. बालू बोला भन्नी वो थेया, 

थेया वो सुनियारा तेरिया हिक्कड़ीया हो,

बालू भन्नी वो थेया......

2. इक बोला जिंदडियां री तांहीं, घटे-घटे फाईयां लगाईयां

हो इक बोला जिंदडियां री तांहीं.......

3. दाड़ी बोला जलया जीरा, बटिटया ते शेर घटाया हो,

दाड़ी बोला जलया जीरा........

4. भंगा री ये डालिये, भंगोलू पक्की रे,

असां बोला जाणा, सोरयां रे देशा ओ भलिये ओ बल्ले ओ बल्ले,

कुछ बोला रूमकुए लगे, कुछ बोला झुमकुए लगे,

कुछ बोला पकणा वो लगे कुछ बोला अलणा लगे,

ओ मेरिये भंगा री ये डालिये, भंगोलू पक्की रे.....

5. नाच बिंदलो ओ मेरी नाच बिंदलो,

इस ढ़ोला रे ढमाके कने नाच बिंदलो,

कियां नचणा ओ छोरू कियां बोले नचणा,

मेरा बोला घघरू पुराणा ओ छोरू, कियां बोला नचणा......

6. करनपुरे दिये नौकरिये, तू भर वो सयाले आई,

सोहरा बोला सूता ओबरिया, मैं हुक्का देने गई,

आंगण जलया चीफला मैं बखिया रे भारे पेई......

3. लुड्डी:

लुड्डी-लुहासड़ी लोक नृत्य में लुड्डी तीसरा भाग है। इसमें धीमी ताल में नाचते हुए अंत में ताल काफी तेज हो जाता है तथा नाचने वाले बड़ी तेजी से नाचते हैं। लुड्डी के नाट पूरे जोशीले होते हैं व जोश में नाचते हैं। यह क्रम भी एक से दो घंटे तक चलता है। लुड्डी भाग के अंतर्गत भी कई तरह के बोल गाये व नाचे जाते हैं जिनमें जैसे:-

1. हथूडूवा धोंदिया ओ मुहूडुवा धोंदिया, अरसू डूब्बी रा बांईयां,

ओ भंडारणिये अरसू डुब्बी रा बाईयां,

आर भी कांगड़ा पार भी कांगड़ा बिच भर कांगड़े री बाईं,

ओ भंडारणिये बिच भर कांगड़े री बाईं।

औंदिया ओ भाल्दी जांदिया ओ भाल्दी क्या ओ मन बोल्दा तेरा भंडारणिये,

क्या ओ मन बोल्दा तेरा ओ भंडारणिये......

2. झांझर घड़ी दे वो, घड़ी दे भाई सुनियार,

झांझर घट गई ओ, घट गई मासे चार,

झांझर घड़ी दे वो, घड़ी दे भाई सुनियार....

ओ मेला नंदपुर दा मेले जाणा बो जरूर,

ओ मेले ता ओ जाणां गबरूए चक मेरा देर,

ओ मेला नंदपुर दा मेले जाणा बो जरूर......

3. ध्याड़ा भर कटया गलू री जातरा, रात पेई गुम्मे रे नाला,

रात पेई गुम्मे रे नाला मेरे लोभिया रात पेई गुम्मे रे नाला,

किलणू कदालू मेरे ब्याडू रे दितरे, तेरा बी न दितरा धेल्ला,

तेरा बी न दितरा धेल्ला मेरे लोभिया तेरा बी न दितरा धेल्ला।

गिल्हड़ी घलैपड़ी भाग्ये पेई अपणे, बांकी हुंदी लोकां री नारां,

बांकी हुंदी लोकां री नारां मेरे लोभिया, बांकी हुंदी लोकां री नारां.....

4. पक्की कणकां पक्की कणकां, बल्हा रे रोपे पक्की कणकां,

ओ दे दे मदना दे दे मदना, ओ तोले रा बालू, दे दे मदना।

होया भरती होया भरती, काकड़ी कलेजा पेया धरती,

ओ तेरा बुरिये ओ तेरा बुरिये, नंद पटवारी तेरा बुरिये.....

4. लुहासड़ी:

लुड्डी-लुहासड़ी लोक नृत्य में लुहासड़ी (खनैटी) चौथा व अंतिम भाग है। इसमें दो ग्रुप या दल के दो योद्धा नाटी के दौरान रह जाते हैं। नाचते हुए तलवार, बैंत व डंडों से कलाबाजी करते हैं। जिस ग्रुप या दल का योद्धा यानि की नाट जीत जाता था उसे मान सम्मान भी देते थे। लुहासड़ी नृत्य बड़ी तेजी से नाचा जाता है और इसमें बेहद फुर्तिला व जोशिला व्यक्ति ही नाच पाता है। इस नाच के अंतिम समय में मारू राग बजता है। जिसका उल्लेख राम चरित मानस (लंका कांड) में भी मिलता है। लुहासड़ी (खनैटी) भाग के अंतर्गत भी कई तरह के बोल गाये व नाचे जाते हैं जिनमें जैसे:-

खाने को तो हलवा पूरी, चापने को पान

ओ हेसी देया पुतरा तू हेसी बोली बोल।

दिल्ली में तो तंबुआ तान, लाहौर में मकान,

ओ हेसी देया पुतरा तू हेसी बोली बोल।

साहब को तो राम-राम, मीम को तो सलाम,

ओ हेसी देया पुतरा तू हेसी बोली बोल।

डोगरे आये ओ भाभी डोगरे आये,

चौंतड़े रेल ओ भाभी चौंतड़े रेल.......

इस तरह लुड्डी लुहासड़ी का यह पारंपरिक लोक नृत्य नाचा व गाया जाता है। वर्तमान समय में भी इसे विभिन्न सामाजिक समारोहों में जरूर गाया व नाचा जाता है लेकिन इसमें हमारी अगली पीढ़ी को संपूर्ण जानकारी न होने के चलते सभी भाग पूरी तरह से गाये व नाचे नहीं जाते हैं। सबसे अहम बात तो यह है कि लुड्डी लुहासड़ी लोक नृत्य को डंडों व बैंत के साथ नाचा जाता है। 


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