सच्चे मन से मांगी मन्नत को पूरा करते हैं मछिन्दर नाथ, माया कुंड के पानी से दूर होते हैं चर्म रोग
मंडी जिला के जोगिन्दर नगर कस्बे से जोगिन्दर नगर-सरकाघाट-घुमारवीं मुख्य सडक़ पर महज आठ किलोमीटर दूर रणा खड्ड के किनारे बाबा मछिन्दर नाथ का पवित्र स्थान मच्छयाल स्थित है। कहते हैं कि हजारों वर्ष पूर्व इस स्थान के प्राकृतिक सौंदर्य से वशीभूत होकर बाबा मछिन्दर नाथ ने कई वर्षों तक यहां तपस्या की थी। इस स्थान पर रणा खड्ड में प्राकृतिक तौर पर लगभग 300 से 400 मीटर दायरे में बने सात तटबंधों के बीच वाले क्षेत्र में स्थित मछलियों को भगवान विष्णु जी के मत्स्य अवतार को बाबा मछिन्दर नाथ के रूप में पूजा जाता है।
जानकार कहते हैं कि मत्स्य पुराण में मछलियों को पूजा जाने का उल्लेख मिलता है तथा मत्स्य पुराण 18 पुराणों में से एक पुराण है जिसमें मत्स्य अवतार से जुड़े कई रहस्यों की जानकारी मिलती है। मच्छयाल स्थित रणा खड्ड में मछलियों को आटा खिलाने से जहां लोग कई दोषों से मुक्ति पाते हैं तो वहीं मनोकामना को पूर्ण करने की मन्नतें भी मांगते हैं। कहते हैं सच्चे मन से मांगी गई मन्नत को बाबा मछिन्दर नाथ पूर्ण करते हैं। साथ ही नि संतान श्रद्धालु जहां बच्चे होने की, तो वहीं अविवाहित लोग विवाह होने की मन्नत भी मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु ढ़ोल नगाड़ों के साथ जातर लाकर बाबा मछिन्दर नाथ के दर्शन करते हैं तथा प्रसाद चढ़ाते हैं। साथ ही मछलियों को आटा भी खिलाते हैं। मन्नतें पूरी होने की कई घटनाएं आए दिन देखने को मिलती हैं तथा बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा मछिन्दर नाथ के दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं।
माया कुंड के पानी से दूर होते हैं चर्म रोग, कभी विवाह शादियों के लिए मिलते थे बर्तन
मच्छयाल स्थित बाबा मछिन्दर नाथ के परिसर में प्राकृतिक तौर पर पत्थरनुमा चट्टान में एक बड़ा प्राकृतिक सुराख है। जिसमें वर्ष भर पानी भरा रहता है जिसे माया कुंड के नाम से जाना जाता है। कहते हैं इस पानी को नियमित तौर पर लगाने से कई तरह के चर्म रोग ठीक होते हैं। यह भी कहा जाता है कि बाबा मछिन्दर नाथ इसी स्थान से विवाह-शादियों इत्यादि के आयोजन के लिए बर्तन भी उपलब्ध करवाते थे।
कहते हैं कि विवाह शादियों या अन्य धार्मिक व सामाजिक आयोजनों के लिए लोग बाबा मछिन्दर नाथ से बर्तन उपलब्ध करवाने की अरदास करते थे तो सुबह होने पर इस स्थान पर बर्तन उपलब्ध हो जाते थे। एक बार किसी व्यक्ति ने इन बर्तनों को लौटाते समय इन्हें बदल दिया। इसके बाद बर्तन उपलब्ध होने की यह परंपरा बंद हो गई।
जब राजा ने मछिन्दर नाथ के चमत्कार से प्रभावित होकर मछली को पहनाई थी सोने की नथ
जानकार बताते हैं कि एक बार राजा ने सिपाहियों को भोजन में मछली बनाने के आदेश दिये। सिपाहियों को काफी प्रयास करने के बाद जब मछली नहीं मिली तो उन्होने मच्छयाल के इस पवित्र स्थान से मछली को पकड़ा। कहते हैं कि जब मछली को फ्राई कर प्लेट में रखा तो पुन: जीवित हो गई। इस घटना को देखकर राजा भी दंग रह गए। जब उन्होंने मछली से जुड़ा वृतांत सुना तो वे इस पवित्र स्थान पर पहुंचे तथा बाबा मछिन्दर नाथ की पूजा अर्चना कर मछली को सोने की नथ पहनाई। कहते हैं कि भाग्यवान लोगों को अभी भी ऐसी मछली के दर्शन होते हैं।
बाबा मछिन्दर नाथ ने प्राकृतिक तौर पर बने सात तटबंधों से निर्मित की है अपनी सीमा
रणा खड्ड में बाबा मछिन्दर नाथ ने प्राकृतिक तौर पर सात तटबंधों के माध्यम से अपनी सीमा को निर्धारित किया है। 300-400 मीटर के दायरे में यह प्राकृतिक सीमा फैली हुई है तथा इसके भीतर मछलियों का शिकार करना पूर्ण तौर पर प्रतिबंधित है।
प्राकृतिक तौर पर चट्टान के ऊपर निर्मित है भगवान शिव की प्रतिमा
इसी स्थान पर प्राकृतिक तौर पर एक भारी भरकम चट्टान के ऊपर भगवान शिव की प्रतिमा निर्मित है। कहते हैं कि एक बार मां चतुर्भुजा ने खेल के माध्यम से इस चट्टान के गिरे होने की जानकारी दी। जब क्रेन के माध्यम से चट्टान को ऊपर उठाया गया तो उसमें भगवान शिव का प्रतीकात्मक रूप शिवलिंग प्राकृतिक तौर पर बना हुआ मिला। इसके अलावा चट्टान में अन्य मूर्तियां भी उकेरी गई हैं।
प्राकृतिक तौर पर है खूबसूरत स्थान, बैसाखी को लगता है चार दिवसीय मेला
यह स्थान प्राकृतिक तौर पर बेहद खूबसूरत है। इसकी खूबसूरती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पर कई हिंदी फीचर फिल्मों का फिल्मांकन भी हुआ है। यहां प्रतिवर्ष 13 अप्रैल बैसाखी पर्व को चार दिवसीय मेले का आयोजन होता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस दौरान कई तरह के सांस्कृतिक एवं खेलकूद कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
वर्तमान में इस मंदिर के संचालन हेतु एसडीएम जोगिन्दर नगर की अध्यक्षता में मंदिर विकास प्रबंधन समिति गठित की गई है। जिसमें स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों सहित कई सरकारी व गैर सरकारी सदस्य शामिल हैं।
कैसे पहुंचे मच्छयाल
मच्छयाल मंडी जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर है। उपमंडल मुख्यालय जोगिन्दर नगर से महज आठ किलोमीटर तथा प्रसिद्ध धाम बैजनाथ से 30 किलोमीटर दूर है। यह स्थान सडक़ मार्ग से जुड़ा हुआ है तथा मंदिर परिसर में ही वाहन को आसानी से पार्क किया जा सकता है। इसके अलावा रेल नेटवर्क के माध्यम से भी पठानकोट से जोगिन्दर नगर पहुंचा जा सकता है। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है। DOP 12/12/2023
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