Tuesday, 30 June 2020

फांउडेशन बीज तैयार कर किसानों को उपलब्ध करवाता है जोगिन्दर नगर बीज गुूणन फार्म

वर्ष 2019 मेें तैयार हुआ है 72 क्विंटल धान का बीज, लगभग 8 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला है यह फार्म
मंडी जिला के जोगिन्दर नगर में कृषि विभाग के बीज गुणन फार्म में वर्ष 2019 में 72 क्विंटल धान का बीज तैयार हुआ है। इसके अलावा जहां लगभग साढ़े चार क्विंटल सोयाबीन बीज की भी पैदावार हुई है तो वहीं वर्तमान रबी फसल के दौरान लगभग 40-50 क्विंटल गेंहू का बीज भी तैयार हुआ है।
जोगिन्दर नगर स्थित कृषि विभाग का बीज गुणन फार्म न केवल किसानों को अच्छी किस्म का धान व गेहूं का बीज उपलब्ध करवा रहा है बल्कि देश में खाद्यान्न क्रांति लाने के साथ-साथ किसानों की आय को बढ़ाने में इसकी बहुत बड़ी भूमिका है। साथ ही कोरोना महामारी के दौर में जिस तरह लोगों का रूझान कृषि की ओर बढ़ा है निश्चित तौर पर इसकी अहमियत ओर भी बढ़ जाती है। ऐसे में यदि इसे कृषि शोध केंद्र के तौर पर विकसित करने की दिशा में प्रयास किये जाएं तो यह प्रदेश के साथ-साथ देश के किसानों के लिए एक बूस्टर का काम कर सकता है।
वर्ष 1962 में कृषि विभाग द्वारा स्थापित यह बीज गुणन फार्म 7.76 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसमें से 4.76 हैक्टेयर क्षेत्र में धान व गेंहूं बीज तैयार किया जाता है जबकि 3 हैक्टेयर क्षेत्र में सडक़ एवं अन्य भवन निर्माण कार्य हुआ है। वर्तमान में इस बीज गुणन फार्म में बीज की पैदावार से लेकर उसकी कटाई इत्यादि तक के विभिन्न कार्यों का मशीनीकरण किया गया है तथा विभिन्न तरह की आधुनिक मशीनों को यहां लाया गया है।
खरीफ 2019 की बात करें तो इस फार्म के 4.118 हैक्टेयर क्षेत्र में 160 किलोग्राम धान लगाया गया जिसमें से 72 क्विंटल बीज की पैदावार हुई है। इसके साथ ही 0.642 हैक्टेयर क्षेत्र में 80 किलोग्राम सोयाबीन का बीज लगाकर लगभग साढ़े चार क्विंटल बीज तैयार किया गया है। वर्तमान रबी फसल के दौरान गेहूं की बात करे तो फार्म की 4.76 हैक्टेयर भूमि पर 477 किलोग्राम बीज लगाकर इसके उत्पादन का आंकलन किया जा रहा है तथा इससे लगभग 40-50 क्विंटल बीज तैयार होने की संभावना है।
क्या है इस फार्म का मुख्य उद्देश्य:
इस फार्म का प्रमुख उद्देश्य प्रजनक (ब्रीडर सीड) बीज या अन्य अच्छा बीज को उगाकर आगे आधारबीज यानि कि फांउडेशन बीज को पैदा करना है। इस तैयार बीज को आगे किसानों का पंजीकरण करवाकर पंजीकृत किसानों को गुणन (मल्टीप्लिकेशन) के लिए दिया जाता है ताकि यह बीज ज्यादा से ज्यादा किसानों को उपलब्ध हो सके।
बीज गुणन प्रक्षेत्र (फार्म) एवं मशीनीकरण:
वर्तमान में आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग इस फार्म में कृषि कार्यों के लिए किया जा रहा है। जिसमें ट्रैक्टर, कल्टीवेटर, रिपर, बाइन्डर, धान व गेहूं थ्रैसर प्रमुख हैं। इसके अलावा खेतों की मेढ़ों पर उन्नत किस्म की घास को भी लगाया जाता है, जिससे फार्म को एक अच्छी आय प्राप्त हो जाती है। साथ ही आवारा पशुओं से फसलों को बचाने के लिए सोलर फेंसिंग भी गई है।
इसके अतिरिक्त फार्म में एक पॉली टनल तथा 105 वर्गमीटर क्षेत्र में पॉलीहाउस भी लगाया गया है। इस पॉलीहाउस में शिमला मिर्च, टमाटर तथा बेंगन की खेती की जाती है। जबकि पॉली टनल में सब्जी की नर्सरी भी लगाई जाती है। इनसे फार्म को अतिरिक्त आय प्राप्त हो जाती है। कृषि फार्म में सिंचाई के लिए कूहलों का भी निर्माण किया गया है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
विषयवाद विशेषज्ञ (एसएमएस) कृषि पधर पूर्ण चंद का कहना है कि जोगिन्दर नगर स्थित बीज गुणन फार्म में मुख्यत: धान व गेंहू के बीज की पैदावार की जाती है। तैयार बीज को कृषि विभाग के भंडारण केंद्र भंगरोटू भेजा जाता है, जहां पर बीज की ग्रेडिंग व पैकेजिंग कर इसे गुणन (मल्टीप्लिकेशन) के लिए पंजीकृत किसानों को आवंटित किया जाता है। तदोपरान्त किसानों द्वारा तैयार बीज को अन्य किसानों को भेजा जाता है ताकि बीज की मांग को पूरा किया जा सके।
फार्म को चलाने के लिए यहां पर एक कृषि विकास अधिकारी, एक कृषि प्रसार अधिकारी तथा एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को तैनात किया गया है। वर्तमान में एडीओ का पद रिक्त चल रहा है। इसके अलावा फार्म में समय-समय पर फसलों की जरूरत अनुसार कैजुअल श्रमिकों की सेवाएं भी ली जाती है।

Wednesday, 24 June 2020

तुलसी उगाकर किसान प्रति एकड़ अर्जित करें 25 हजार रूपये तक की शुद्ध आए

आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी व एलोपैथी दवा निर्माण में तुलसी का होता है इस्तेेमाल
तुलसी की चर्चा शुरू होते ही हमारे सामने प्रत्येक घर के आंगन में उगने वाली तुलसी की तस्वीर सामने आ जाती है। तुलसी भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा भी है। धार्मिक आस्था की दृष्टि से घर में तुलसी का पौधा लगाने को न केवल शुभ माना जाता है बल्कि तुलसी की पूजा भी की जाती है। आखिर हो भी क्यों न? तुलसी महज एक पौधा ही नहीं है बल्कि कई औषधीय गुणों का खजाना भी है। घर आंगन में लगा तुलसी का पौधा न केवल विभिन्न कीड़ों व वैक्टीरिया को समाप्त करता है बल्कि हवा को भी शुद्ध बनाता है। ऐसे में यदि किसान तुलसी की खेती को बड़े पैमाने पर शुरू करते हैं तो इससे उन्हे आमदनी बढ़ाने का एक बेहतरीन विकल्प भी मिलेगा। 
हिमाचल प्रदेश की बात करें तो इसकी खेती को समुद्रतल से 900 मीटर ऊंचाई वाले उष्ण कटिबंधीय और उप-उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र अनुकूल हैं। प्रदेश के मंडी, ऊना, बिलासपुर, सिरमौर, कांगड़ा और सोलन जिलों के निचले क्षेत्रों में इसे आसानी से उगाया जा सकता है। इसकी रोपाई के लिए प्रति एकड़ 80 से 120 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। इसका बीज 8-12 दिनों में अंकुरित हो जाता है जबकि नर्सरी पौध 6 सप्ताह में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। पौधों को 40-40 या 40-50 सेंटीमीटर की दूरी पर प्रत्यारोपित करें। तुलसी की पहली फसल को 90-95 जबकि इसके बाद 65-75 दिनों के अंतराल में फसल को काटा जा सकता है। एक एकड़ भूमि से लगभग पांच क्विंटल सूखा पंचांग प्राप्त किया जा सकता है तथा औसतन 80 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से 40 हजार रूपये तक की सकल जबकि 25 हजार रूपये तक की शुद्ध आय अर्जित की जा सकती है।
तुलसी एक खास औषधीय महत्व वाला पौधा है। इसके जड़, तना, पत्तियों समेत सभी भाग उपयोगी हैं। तुलसी का इस्तेमाल आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी व एलोपैथी दवा निर्माण में किया जाता है। इसकी पत्तियों में चमकीला वाष्पशील तेल पाया जाता है जो कीड़ों व वैक्टीरिया के खिलाफ काफी कारगर साबित होता है। तुलसी मुख्यत: तीन प्रकार जिसमें हरी, काली व नीली बैंगनी रंग शामिल है की पत्तियों वाली होती है। तुलसी एक झाड़ी के रूप मेें उगती है तथा इसका पौधा एक से तीन फुट तक ऊंचा होता है। पत्तियां एक से दो इंच लंबी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती है। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिन्हों से युक्त अंडाकार होते हैं तथा इसका पौधा सामान्यता दो से तीन वर्ष तक हरा बना रहता है।
तुलसी की खेती सामान्य मिटटी में आसानी से की जा सकती है। इसके लिए गरम जलवायु बेहतर है। तुलसी की नर्सरी फरवरी माह में तैयार, अप्रैल माह में इसकी रोपाई शुरू कर सकते हैं। वास्तव में तुलसी मूलरूप से बरसात की फसल है जिसे गेहूं काटने के बाद लगाया जाता है। यह फसल लगभग 90 दिनों में तैयार हो जाती है तथा इसमें रोग और कीट बहुत ही कम लगते हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी:
नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर डॉ. अरूण चंदन का कहना है कि कोरोना संकट के बीच औषधीय पौधों एवं जड़ी बूटियों की मांग में एकाएक बढ़ौतरी दर्ज हुई है। इस क्षेत्र में स्वरोजगार की अपार संभावनाओं को देखते हुए युवा किसान इस ओर आगे बढ़ सकते हैं। सरकार राष्ट्रीय आयुष मिशन (एनएएम) योजना के तहत औषधीय पौधों की खेती को समुचित वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। उनका कहना है कि सरकार तुलसी की खेती के लिए प्रति हैक्टेयर लगभग 13 हजार रूपये तक की वित्तीय मदद प्रदान करती है। वित्तीय मदद एवं तुलसी की खेती से जुड़ी अन्य जरूरी शर्तों से संबंधित अधिक जानकारी के लिए कृषक निदेशक आयुर्वेद विभाग हिमाचल प्रदेश से संपर्क कर सकते हैं।

Sunday, 7 June 2020

वैश्विक महामारी कोविड-19 एवं भारतीय स्वदेशी विकास मॉडल

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (कोविड-19) से जर्जर परिस्थिति में देश की अर्थ व्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश वासियों को संबोधित करते हुए 20 लाख करोड़ रूपये के एक बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है। निश्चित तौर पर यह आर्थिक पैकेज न केवल हमारी अर्थ व्यवस्था के लिए एक बूस्टर का काम करेगा बल्कि कोरोना महामारी के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों की टूट चुकी कमर को भी सीधा करने में भी बड़ा सहायक सिद्ध होगा।
लेकिन इस आर्थिक पैकेज के बीच फिलवक्त कोरोना वायरस की बात करें तो महामारी से उपचार को लेकर अभी तक दवा व उपचार पद्धति दुनिया में किसी के पास उपलब्ध नहीं है। लेकिन इस दौरान भारत की हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन जैसी दवा मांगने के लिए दुनिया भर के देश हमारे सामने हाथ जोड़े खड़े हैं। साथ ही आयुर्वेदिक काढ़े व जड़ी बूटियों आदि जिस से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, की मांग भी लगातार बढ़ रही है। वैश्विक सामाजिक-आर्थिक संरचनाएं भी इस समय निर्रथक सिद्ध हो रही है, और भारत जैसे देश की ओर मुंह ताक रही हैं। ऐसी परिस्थिति में भारतीय प्रतिभा ने अपनी जिस लंबी सोच के आधार पर स्वदेशी प्रतिमान को कभी इस देश में खड़ा किया, कोरोना महामारी से लडख़ड़ाती दुनियां अब इस ओर बड़ी आशा से देख रही है। ऐसे में देश का आर्थिक पुनर्निर्माण कैसे हो यह एक विस्तृत चर्चा का न केवल विषय बन गया है बल्कि प्रत्येक भारतवासी को भी इस मुद्दे पर गंभीरता से मंथन करना होगा।
कोविड-19 की इस वैश्विक महामारी के कारण जहां देश में बड़े पैमाने पर विदेशों के साथ-साथ शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पलायन हुआ है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में ही रोजगार के नए-नए अवसर सृजित करने की बड़े पैमाने पर जरूरत होगी। ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद का पूरा (PURA Provision of Urban Amenities in Rural Areas) तथा नानाजी देशमुख के समग्र विकास के मॉडल पर गंभीरता से मंथन करने की न केवल आवश्कता है बल्कि इन दृष्टिकोण को केन्द्रित रखकर लाखों कामगारों व कारीगरों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध करवाने की दिशा में प्रयास करना होगा। साथ ही जो लोग काम की तलाश में पुन: शहरों की ओर रूख करेंगे उनके लिए किस प्रकार से नए काम धंधे पैदा कर सकते हैं इस दिशा में भी गंभीरता से आत्म मंथन करना होगा।
कोविड-19 महामारी के कारण भारत सहित पूरी दुनिया के उद्योगों को न केवल बड़ा झटका लगा है बल्कि वैश्विक स्तर पर मांग में भी कमी आ रही है। ऐसे परिस्थिति में देश के लाखों कामगारों को कार्य कौशलता के आधार पर रोजगार के नए अवसर सृजित करना एक बड़ी चुनौती रहेगी। जहां तक उद्योगों की बात है तो लंबे लॉकडाउन तथा बड़ी संख्या में श्रम शक्ति के पलायन के कारण उनकी वर्तमान स्थिति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है। मुमकीन है कि अधिकतर उद्योग भारी घाटे के कारण श्रमिकों व कामगारों को उनकी क्षमता के आधार पर पुन: रोजगार उपलब्ध करवाने में सक्षम न हो। ऐसे में आपसी सदभाव व समन्वय पैदा कर उद्योगों व श्रमिकों को कहीं न कहीं अपने हितों से समझौता करते हुए कार्य करने की जरूरत होगी। इससे न केवल पुर्ननिर्माण को बल मिलेगा बल्कि दोनो पक्षों के हित आने वाले वक्त के लिए कारगर सिद्ध हो सकेगें।
लेकिन इन सबसे आगे बढक़र हमें विकास के स्वदेशी यानि की भारतीय मॉडल पर गंभीरता से काम करना होगा। पिछले दिनों प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर के सरपंचों से बातचीत में स्वावलंबन शब्द पर फोकस करते हुए इस दिशा में आगे बढऩे के संकेत भी दिए हैं। साथ ही स्व शब्द पर जोर देते हुए स्वदेशी मॉडल को विकसित करने की भी बात कही है। देश वासियों को संबोधित करते हुए प्रधान मंत्री ने देश को आत्म निर्भर बनाने की दिशा में कोरोना महामारी की चुनौती को अवसर में बदलने के लिए मिलकर काम करने का भी आहवान किया है। साथ ही अर्थ व्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए विशेष आर्थिक पैकेज का ऐलान भी निश्चित तौर पर भारतीय विकास मॉडल में एक अहम कदम साबित हो सकता है।
स्वदेशी विकास मॉडल की दिशा में अब शासन, प्रशासन तथा समाज को मिलकर बड़ी भूमिका निभानी होगी। सरपंचों के साथ वार्तालाप के दौरान नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर स्वदेशी मॉडल के चार पायदान गिनाए हैं जिनमें गांव, जिला, प्रांत व देश शामिल है। मॉडल को धरातल पर उतारने के लिए समाज के साथ-साथ शासन व प्रशासन को बड़ी गंभीरता से कार्य करने की आवश्यकता होगी। हमें इस बात पर गौर करना होगा कि हमें जो जीवन के लिए आवश्यक होगा उसे यहां गुणवत्ता पर समझौता किये बिना तैयार करना होगा। विदेशी आयात पर निर्भरता कम करनी होगी, जिसमें विशेषकर चीन एक बड़ी चुनौती रहेगा। कोरोना महामारी के बीच चीन न केवल भारत बल्कि दुनिया की तमाम आर्थिक ताकतों के लिए भी खतरे की घंटी बजा रहा है। साथ ही चीन सहित दुनिया भर की कई कंपनियां भारत में आने को व्याकुल है, ऐसे में आने वाला वक्त बड़ा महत्वपूर्ण होगा। बशर्ते कि हम इसके लिए तैयार हो जाएं।
ऐसा भी नहीं है कि आज भारत का स्वदेशी मॉडल किसी स्तर पर कम है। कम्प्यूटर, परमाणु विज्ञान, स्पेस टेक्रोलॉजी के क्षेत्र में हमने बड़ी उड़ान भरी है। पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता, जैविक कृषि, गौ उत्पादन, योग व आयुर्वेद के प्रति भी हमें तेजी से कदम बढ़ाने होंगे। इस दिशा में अमूल व पतंजलि जैसे स्वदेशी मॉडल के सफल प्रयोग प्रोत्साहन का कार्य कर सकते हैं।
लेकिन स्वदेशी मॉडल पर आगे बढऩे से पहले हमें अपनी कार्यप्रणाली को भी स्वदेशी मॉडल के आधार पर तैयार करना होगा। हमें यह नहीं भूलना है कि कहीं न कहीं अभी भी हमारी वर्तमान कार्यप्रणाली अंग्रेजों द्वारा पैदा की हुई मानसिकता पर ही केन्द्रित है जिसे अब भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप विकसित करना होगा। कुल मिलाकर आने वाला वक्त भारतवासियों के लिए न केवल एक स्वर्णिम समय सिद्ध हो सकता है बल्कि विकास की राह पर देश को नई दिशा प्रदान कर सकता है।