वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (कोविड-19) से जर्जर परिस्थिति में देश की अर्थ व्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश वासियों को संबोधित करते हुए 20 लाख करोड़ रूपये के एक बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है। निश्चित तौर पर यह आर्थिक पैकेज न केवल हमारी अर्थ व्यवस्था के लिए एक बूस्टर का काम करेगा बल्कि कोरोना महामारी के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों की टूट चुकी कमर को भी सीधा करने में भी बड़ा सहायक सिद्ध होगा।
लेकिन इस आर्थिक पैकेज के बीच फिलवक्त कोरोना वायरस की बात करें तो महामारी से उपचार को लेकर अभी तक दवा व उपचार पद्धति दुनिया में किसी के पास उपलब्ध नहीं है। लेकिन इस दौरान भारत की हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन जैसी दवा मांगने के लिए दुनिया भर के देश हमारे सामने हाथ जोड़े खड़े हैं। साथ ही आयुर्वेदिक काढ़े व जड़ी बूटियों आदि जिस से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, की मांग भी लगातार बढ़ रही है। वैश्विक सामाजिक-आर्थिक संरचनाएं भी इस समय निर्रथक सिद्ध हो रही है, और भारत जैसे देश की ओर मुंह ताक रही हैं। ऐसी परिस्थिति में भारतीय प्रतिभा ने अपनी जिस लंबी सोच के आधार पर स्वदेशी प्रतिमान को कभी इस देश में खड़ा किया, कोरोना महामारी से लडख़ड़ाती दुनियां अब इस ओर बड़ी आशा से देख रही है। ऐसे में देश का आर्थिक पुनर्निर्माण कैसे हो यह एक विस्तृत चर्चा का न केवल विषय बन गया है बल्कि प्रत्येक भारतवासी को भी इस मुद्दे पर गंभीरता से मंथन करना होगा।
कोविड-19 की इस वैश्विक महामारी के कारण जहां देश में बड़े पैमाने पर विदेशों के साथ-साथ शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पलायन हुआ है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में ही रोजगार के नए-नए अवसर सृजित करने की बड़े पैमाने पर जरूरत होगी। ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद का पूरा (PURA Provision of Urban Amenities in Rural Areas) तथा नानाजी देशमुख के समग्र विकास के मॉडल पर गंभीरता से मंथन करने की न केवल आवश्कता है बल्कि इन दृष्टिकोण को केन्द्रित रखकर लाखों कामगारों व कारीगरों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध करवाने की दिशा में प्रयास करना होगा। साथ ही जो लोग काम की तलाश में पुन: शहरों की ओर रूख करेंगे उनके लिए किस प्रकार से नए काम धंधे पैदा कर सकते हैं इस दिशा में भी गंभीरता से आत्म मंथन करना होगा।
कोविड-19 महामारी के कारण भारत सहित पूरी दुनिया के उद्योगों को न केवल बड़ा झटका लगा है बल्कि वैश्विक स्तर पर मांग में भी कमी आ रही है। ऐसे परिस्थिति में देश के लाखों कामगारों को कार्य कौशलता के आधार पर रोजगार के नए अवसर सृजित करना एक बड़ी चुनौती रहेगी। जहां तक उद्योगों की बात है तो लंबे लॉकडाउन तथा बड़ी संख्या में श्रम शक्ति के पलायन के कारण उनकी वर्तमान स्थिति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है। मुमकीन है कि अधिकतर उद्योग भारी घाटे के कारण श्रमिकों व कामगारों को उनकी क्षमता के आधार पर पुन: रोजगार उपलब्ध करवाने में सक्षम न हो। ऐसे में आपसी सदभाव व समन्वय पैदा कर उद्योगों व श्रमिकों को कहीं न कहीं अपने हितों से समझौता करते हुए कार्य करने की जरूरत होगी। इससे न केवल पुर्ननिर्माण को बल मिलेगा बल्कि दोनो पक्षों के हित आने वाले वक्त के लिए कारगर सिद्ध हो सकेगें।
लेकिन इन सबसे आगे बढक़र हमें विकास के स्वदेशी यानि की भारतीय मॉडल पर गंभीरता से काम करना होगा। पिछले दिनों प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर के सरपंचों से बातचीत में स्वावलंबन शब्द पर फोकस करते हुए इस दिशा में आगे बढऩे के संकेत भी दिए हैं। साथ ही स्व शब्द पर जोर देते हुए स्वदेशी मॉडल को विकसित करने की भी बात कही है। देश वासियों को संबोधित करते हुए प्रधान मंत्री ने देश को आत्म निर्भर बनाने की दिशा में कोरोना महामारी की चुनौती को अवसर में बदलने के लिए मिलकर काम करने का भी आहवान किया है। साथ ही अर्थ व्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए विशेष आर्थिक पैकेज का ऐलान भी निश्चित तौर पर भारतीय विकास मॉडल में एक अहम कदम साबित हो सकता है।
स्वदेशी विकास मॉडल की दिशा में अब शासन, प्रशासन तथा समाज को मिलकर बड़ी भूमिका निभानी होगी। सरपंचों के साथ वार्तालाप के दौरान नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर स्वदेशी मॉडल के चार पायदान गिनाए हैं जिनमें गांव, जिला, प्रांत व देश शामिल है। मॉडल को धरातल पर उतारने के लिए समाज के साथ-साथ शासन व प्रशासन को बड़ी गंभीरता से कार्य करने की आवश्यकता होगी। हमें इस बात पर गौर करना होगा कि हमें जो जीवन के लिए आवश्यक होगा उसे यहां गुणवत्ता पर समझौता किये बिना तैयार करना होगा। विदेशी आयात पर निर्भरता कम करनी होगी, जिसमें विशेषकर चीन एक बड़ी चुनौती रहेगा। कोरोना महामारी के बीच चीन न केवल भारत बल्कि दुनिया की तमाम आर्थिक ताकतों के लिए भी खतरे की घंटी बजा रहा है। साथ ही चीन सहित दुनिया भर की कई कंपनियां भारत में आने को व्याकुल है, ऐसे में आने वाला वक्त बड़ा महत्वपूर्ण होगा। बशर्ते कि हम इसके लिए तैयार हो जाएं।
ऐसा भी नहीं है कि आज भारत का स्वदेशी मॉडल किसी स्तर पर कम है। कम्प्यूटर, परमाणु विज्ञान, स्पेस टेक्रोलॉजी के क्षेत्र में हमने बड़ी उड़ान भरी है। पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता, जैविक कृषि, गौ उत्पादन, योग व आयुर्वेद के प्रति भी हमें तेजी से कदम बढ़ाने होंगे। इस दिशा में अमूल व पतंजलि जैसे स्वदेशी मॉडल के सफल प्रयोग प्रोत्साहन का कार्य कर सकते हैं।
लेकिन स्वदेशी मॉडल पर आगे बढऩे से पहले हमें अपनी कार्यप्रणाली को भी स्वदेशी मॉडल के आधार पर तैयार करना होगा। हमें यह नहीं भूलना है कि कहीं न कहीं अभी भी हमारी वर्तमान कार्यप्रणाली अंग्रेजों द्वारा पैदा की हुई मानसिकता पर ही केन्द्रित है जिसे अब भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप विकसित करना होगा। कुल मिलाकर आने वाला वक्त भारतवासियों के लिए न केवल एक स्वर्णिम समय सिद्ध हो सकता है बल्कि विकास की राह पर देश को नई दिशा प्रदान कर सकता है।
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