Wednesday, 20 May 2020

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है औषधीय गुणों से भरपूर 'काफलÓ

हिमालय के एक विशेष क्षेत्र में जंगली तौर पर पाया जाता है यह फल, कई रोगों में है रामबाण
हिमाचल प्रदेश सहित हिमालय के अन्य क्षेत्रों में जंगली तौर पर पाया जाने वाला फल 'काफलÓ कई औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है। प्रति वर्ष अप्रैल से जून माह के बीच काफल पक कर तैयार हो जाता है। काफल आर्थिक तौर पर भी स्थानीय लोगों के लिए लाभकारी सिद्ध होता है। काफल के कारण प्रतिवर्ष स्थानीय लोग बड़ी मात्रा में इसकी खेप को आसपास के स्थानीय बाजारों में पहुंचाकर काफी लाभ अर्जित करते हैं।


काफल जंगली तौर पर पाया जाने वाला एक फल ही नहीं है बल्कि हमारे शरीर में एक औषधी का काम भी करता है। काफल में विटामिन्स, आयरन और एंटी ऑक्सीडेंन्टस प्रचूर मात्रा में पाये जाते हैं। इसके साथ ही यह कई तरह के प्राकृतिक तत्वों जैसे माइरिकेटिन, मैरिकिट्रिन और ग्लाइकोसाइड्स से भी परिपूर्ण है। इसकी पत्तियों में लावेन -4-हाइड्रोक्सी-3 पाया जाता है। काफल के पेड़ की छाल, फल तथा पत्तियां भी औषधीय गुणों के लिये जानी जाती है। काफल की छाल में एंटी इन्फलैमेटरी, एंटी-हेल्मिंथिक, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल क्वालिटी पाई जाती है। इतने गुणों से परिपूर्ण काफल न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है बल्कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की रोकथाम का भी काम करता है। काफल का अत्यधिक रस-युक्त फल पाचक होता है। काफल के फल के ऊपर लगा भूरे व काले धब्बों से युक्त मोर्टिल मोम अल्सर की बीमारी में प्रभावी माना गया है। काफल का फल खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं। साथ ही इसका सेवन मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए भी फायदेमन्द माना गया है। इसके पेड़ की छाल का सार, अदरक तथा दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिश तथा फेफड़े से ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी माना गया है। साथ ही काफल के पेड़ की छाल का पाउडर जुकाम, आँख की बीमारी तथा सरदर्द में सूँधनी के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। 


काफलड़ी चूर्ण को अदरक के जूस तथा शहद के साथ मिलाकर उपयोग करने से गले की बीमारी, खाँसी तथा अस्थमा जैसे रोगों से मुक्ति दिलाने में मददगार होता है। इसके अलावा काफल की छाल दांत दर्द तथा छाल का तेल कान दर्द के लिये भी अत्यधिक उपयोगी माना गया है। यही नहीं काफल के फूल का तेल भी कान दर्द, डायरिया तथा लकवे की बीमारी में उपयोग के साथ-साथ हृदय रोग, मधुमेय रोग उच्च एंव निम्न रक्त चाप को नियान्त्रित करने में भी सहायक होता है।
कहां पाया जाता है काफल
काफल उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्र, मुख्यत हिमालय की तलहटी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सदा हरा भरा रहने वाला एक काष्ठीय वृक्ष प्रजाति है। काफल का पेड़ 1300 मीटर से 2100 मीटर (4000 फीट से 6000 फीट) तक की ऊँचाई पर प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाला बृक्ष है। काफल अधिकतर हिमाचल प्रदेश, उतराखंड, उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय और नेपाल में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। काफल को बॉक्स मर्टल और बेबेरी के नाम से भी जाना जाता है।
कैसा होता है काफल का फल
काफल खाने में स्वादिष्ठ, रंग में हरा, लाल और काले रंग का फल है। इस फल को वैज्ञानिक तौर पर माइरिका एस्कुलेंटा के नाम से भी जाना जाता है। काफल का फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। साथ ही इसके फल को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
क्या कहते हैं अधिकारी
नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक, क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर डॉ. अरूण चंदन का कहना है कि काफल जंगली तौर पर पाया जाना वाला एक विशेष मौसमी फल है। औषधीय गुणों से भरपूर यह फल शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है। इस फल के सेवन से कई तरह की बीमारियों से बचाव होता है तथा इसके कारण स्थानीय लोगों की आर्थिकी को भी बल मिलता है।

Monday, 11 May 2020

वैश्विक महामारी कोविड-19 की जंग में भारतीय मानवीय दृष्टिकोण

संपूर्ण विश्व की मानवता आज कोविड-19 महामारी के बीच मानो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। भारत वर्ष के संदर्भ में भी कहें तो प्रत्येक भारतवासी पिछले डेढ़ माह से पूरे समर्पण भाव से अपने-अपने घर में बंद होकर इस जंग से लड़ रहा है। इसी बीच इस कोरोना युद्ध में आने वाला वक्त न केवल कठिन होगा बल्कि हमें मानवता व आर्थिक पक्ष के बीच भी एक भयंकर द्वन्द्व देखने को मिल सकता है। जिसमें या तो मानवीय पक्ष या फिर आर्थिक पक्ष में कौन विजयी पताका लहराएगा ये तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। परन्तु भारतीय संस्कृति ने मानवीय कल्याण व उत्थान को हमेशा ऊपर रखा है। लेकिन तथाकथित आधुनिकता से भरी इस दुनिया में मानवीय कल्याण व उत्थान में आर्थिक पक्ष को भी कम नहीं आंक सकते हैं। ऐसे में अब हमें यह तय करना होगा कि मानवीय मूल्यों व भौतिकतावाद (आर्थिक पक्ष) के बीच समन्वय बिठाकर कोरोना की इस जंग से विजयी होना है या फिर मैं व मेरा की पश्चिमी संस्कृति का पोषण कर हम व हमारा वाली मानवता को हराना है।लेकिन कोरोना की इस जंग में अगर पश्चिमी मॉडल व संस्कृति की ओर नजर दौडाएं तो कोरोना महामारी से जुड़े अब तक के आंकड़े व वहां की वर्तमान स्थिति में मानवता व मानवीय मूल्य हारते हुए नजर आ रहे हैं। जिस विकास मॉडल का उदाहरण दे-दे कर हम अपनी नस्सलों को शिक्षित करते हुए गौरवान्वित अनुभव करते रहे हैं, उसी मॉडल के कारण आज भौतिकतावाद के आगे मानवीय पक्ष हारता हुआ नजर आ रहा है। दुनिया के विकसित देशों में कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़े व हो रही मौतें तो बस यही कह रही है कि हमें दूसरों के अनुसरण को त्याग कर अपना विकास मॉडल स्वयं विकसित करना होगा। हमारी समृद्ध प्राचीन संस्कृति भी इसी का पोषण करती रही है जिसे अब हमें न केवल आगे बढ़ाना होगा बल्कि अपनी नस्लों को विकसित देशों के उदाहरण देने के बजाए हमें अपनी वैदिक संस्कृति व प्राचीन भारत की ओर मुडऩा होगा। हमें इस बात पर भी गौर करना होगा कि प्राचीन भारत का विकास मॉडल न केवल कोरोना जैसी महा विनाशकारी बीमारी में हमें मजबूत बनाता है बल्कि संकट की इस घड़ी में इसे पुर्नजीवित करने की आवश्यकता भी महसूस हो रही है। 
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी हमेशा ग्रामीण विकास के उत्थान की बात करते रहे हैं। यदि आज हमारे ग्रामीण क्षेत्र आर्थिक पक्ष की दृष्टि से मजबूत होते तो हम कोरोना महामारी को बड़ी कुशलता के साथ न केवल हराने में सक्षम होते बल्कि मानवीय पक्ष भी हमेशा सर्वोपरि रहता। इस बीच न तो लोगों को बड़ी संख्या में एक जगह से दूसरी जगह पलायन को मजबूर होना पड़ता न ही यह संक्रमण बड़े पैमाने पर हमारे गांव व घरों में दस्तक दे पाता। कहने को तो आज हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में दुनिया के तथाकथित विकसित देशों के तय मापदंडों के मुकाबले कमतर है, हमारे पास तथाकथित विश्व रैंकिंग वाले शैक्षणिक संस्थान भी नहीं है। लेकिन यहां पर हमें समझना होगा कि जहां हमारे आयुर्वेद व योग में बड़ी से बड़ी महामारी से लडऩे में क्षमता है बल्कि हमारी गुरूकूल शिक्षा पद्धति पश्चिमी देशों की पांच सितारा शिक्षा के मुकाबले कहीं आगे रही है। जिस विज्ञान का दंभ भर कर पश्चिमी देश विकास मॉडल की बात करते हैं ये सब तो हमारे प्राचीन वेद ग्रंथों में पहले से ही मौजूद है लेकिन दुर्भाग्य वश हमने न तो इसे समझने का प्रयास ही नहीं किया बल्कि पश्चिमी देशों के एजेंडे के आगे हम नतमस्तक होते चले गए। जिसका खामियाजा आज पूरी दुनिया के साथ-साथ देश की 135 करोड़ आबादी भी भुगतने को मजबूर हुई है।
लेकिन कोरोना वायरस की इस लड़ाई के बीच भारत के मानवीय दृष्टिकोण के आगे आज इस वैश्विक महामारी की चमक न केवल फिकी पड़ती नजर आ रही है बल्कि कोरोना संक्रमण को भी बड़े पैमाने पर फैलने से रोकने में कुछ हद तक हम कामयाब भी हुए हैं। इस संकट की घड़ी में समाज के छोटे से छोटे तबके से जुड़ा व्यक्ति भले ही आर्थिक तौर पर कमजोर जरूर है लेकिन मानवीय दृष्टिकोण के आगे उसकी जेब कम नहीं पड़ रही है। हमारे समाज में आज कितने ही ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे कि लोग प्रतिदिन इस संकट की घड़ी में न केवल मास्क तैयार करने में जुटे हैं बल्कि आर्थिक अंशदान व जरूरतमंदों को भोजन व राशन उपलब्ध्ध करवाने में भी कतई पीछे नहीं हैं। इस तरह का जज्बा न केवल हमारी समृद्ध संस्कृति का प्रतीक है बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मानवता का संदेश भी दे रहा है। यहां गौर करने वाली बात तो यह है कि आज कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी के खात्मे को लेकर पूरी दुनिया भारत की ओर देख रही है। ऐसे में यह वक्त न केवल समृद्ध संस्कृति को पूरी दुनिया में ले जाने का है बल्कि आयुर्वेद व योग के माध्यम से हम इस बीमारी को रोकने का प्रयास भी कर सकते हैं।
ऐसी विकट परिस्थति में अब यह आपको ही तय करना है कि क्या हमें पश्चिमी मॉडल की मैं व मेरा केन्द्रित आगे बढऩे वाली संस्कृति का पोषण करना है या फिर हम व हमारा जैसे मानवीय मूल्यों व मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण समृद्ध भारतीय संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन कर आने वाली पीढ़ी को शिक्षित करना है। कोरोना महामारी के चलते इस जिंदगी व मौत की लड़ाई में अब यह आपको ही खुलेमन से तय करना है कि हमें पश्चिमी मॉडल अपनाना है या फिर समृद्ध प्राचीन भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाना है।

Thursday, 7 May 2020

कोरोना महामारी के बीच आयुर्वेद विभाग का मधुयष्टियादि काढ़ा बढ़ाएगा रोग प्रतिरोधक क्षमता

जोगिन्दर नगर आयुर्वेदिक फॉर्मेसेी में तैयार हो रहा 36 क्विंटल काढ़ा, कोरोना वारियर्स को जल्द होगा वितरित
वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (कोविड-19) के बीच सरकार ने रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को प्रमुखता से शामिल किया है। इस जानलेवा महामारी के बीच फ्रंट लाइन पर लड़ रहे कोरोना वारियर्स के साथ-साथ आम लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए सरकार ने प्रदेश आयुर्वेद विभाग के माध्यम से मधुयष्टियादि कषाय (काढ़ा)को लॉच किया है। बनफशा, मीठी सौंफ, मुनक्का, दालचीनी, गुलाब और मधुयष्टि जैसी कई जड़ी-बूटियां से तैयार होना वाला यह काढ़ा इम्युनोबूस्टर के तौर पर काम करता है। यह काढ़ा खांसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, बुखार, गले के संक्रमण एवं श्वसन संबंधी विभिन्न बीमारियों के इलाज में भी सहायक होता है। मुख्य मंत्री जय राम ठाकुर ने 1 मई को शिमला से मधुयष्टियादि कषाय (काढ़ा) को लांच किया है तथा अब जल्द ही यह लोगों तक पहुंच जाएगा।
मंडी जिला के जोगिन्दर नगर स्थित राजकीय आयुर्वेदिक फॉर्मेसी में मधुयष्टियादि काढ़े को तैयार किया जा रहा है। पहले चरण में सरकार ने विभाग को 36 क्विंटल काढ़ा तैयार करने को कहा है। इस काढ़े को तैयार करने से लेकर इसकी पैकेजिंग तक आयुर्वेदिक फॉर्मेसी जोगिन्दर नगर में गत 22 अप्रैल से लगभग 45 कर्मचारी प्रतिदिन 12 घंटे काम कर इसे तैयार करने में जुटे हुए हैं। 36 क्विंटल काढ़े के निर्मित लगभग 75 ग्राम भार वाले 45 हजार पैकेट तैयार किये जा रहे हैं। पहले चरण में प्रदेश भर में कोरोना महामारी से फ्रंट लाइन पर लड़ रहे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, आयुर्वेद विभाग, पुलिस, मीडिया, जन सम्पर्क व सफाई कर्मियों सहित अन्य लोगों को इसे उपलब्ध करवाया जाएगा ताकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सके।
कैसे करें काढ़े का उपयोग
75 ग्राम पैक में से 1-2 चम्मच काढ़ा एक बर्तन में डाल लें तथा उसमें 200 मिलीमीटर पानी को शामिल करें। अब इस काढ़े को हल्की आंच पर एक चौथाई शेष रहने तक उबालें। उबालने के बाद तरल को एक गिलास में छान लें तथा स्वादानुसार इसमें गुड़, शहद या नींबू रस को मिलाया जा सकता है। इसको पीने से पहले अच्छी तरह से हिला लें ताकि काढ़ा अच्छी तरह से घुल जाए। काढ़े को प्रतिदिन सुबह व शाम खाली पेट सेवन करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है तथा हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसके नियमित सेवन करने से व्यक्ति का खांसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, बुखार, गले के संक्रमण एवं श्वसन संबंधी विभिन्न बीमारियों से बचाव होता है।
किन-किन घटक द्रव्यों से बना है मधुयष्टियादि कषाय (काढ़ा)
मधुयष्टियादि कषाय (काढ़ा) 10 आयुर्वेदिक औषधीय घटक द्रव्यों से बना है। जिनमें दालचीनी, मधुयष्टि, बनफशा, सौंफ, मुनक्का, गोजिहा, श्लेष्मातक, गुलाब पुष्प, रेशा खात्मी व बदर का एक-एक भाग शामिल होता है।
क्या कहते हैं अधिकारी
उप निदेशक आयुर्वेद विभाग मंडी जोन डॉ. तेजस्वी विजय आजाद से बातचीत की तो उनका कहना है कि जोगिन्दर नगर आयुर्वेदिक फॉर्मेसी में सरकारी आदेशों के तहत 36 क्विंटल मधुयष्टियादि कषाय (काढ़ा) के 75 ग्राम भार वाले 45 हजार पैकेट तैयार किये जा रहे हैं। इन तैयार पैकेट को जल्द ही जिलों को भेज दिया जाएगा ताकि कोरोना वारियर्स को इन्हे वितरित किया जा सके। इन पैकेट को तैयार करने में लगभग 45 कर्मचारी 22 अप्रैल से प्रतिदिन 12 घंटे कार्य करते हुए जुटे हैं। उन्होने बताया कि लोग स्वयं भी घर में तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च तथा सौंफ को मिलाकर काढ़ा तैयार कर सकते हैं। इसके अलावा प्रतिदिन प्राणायाम व योग को भी अपनी दिनचर्या में शामिल करने का आहवान किया है जिससे भी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है।