Monday, 11 May 2020

वैश्विक महामारी कोविड-19 की जंग में भारतीय मानवीय दृष्टिकोण

संपूर्ण विश्व की मानवता आज कोविड-19 महामारी के बीच मानो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। भारत वर्ष के संदर्भ में भी कहें तो प्रत्येक भारतवासी पिछले डेढ़ माह से पूरे समर्पण भाव से अपने-अपने घर में बंद होकर इस जंग से लड़ रहा है। इसी बीच इस कोरोना युद्ध में आने वाला वक्त न केवल कठिन होगा बल्कि हमें मानवता व आर्थिक पक्ष के बीच भी एक भयंकर द्वन्द्व देखने को मिल सकता है। जिसमें या तो मानवीय पक्ष या फिर आर्थिक पक्ष में कौन विजयी पताका लहराएगा ये तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। परन्तु भारतीय संस्कृति ने मानवीय कल्याण व उत्थान को हमेशा ऊपर रखा है। लेकिन तथाकथित आधुनिकता से भरी इस दुनिया में मानवीय कल्याण व उत्थान में आर्थिक पक्ष को भी कम नहीं आंक सकते हैं। ऐसे में अब हमें यह तय करना होगा कि मानवीय मूल्यों व भौतिकतावाद (आर्थिक पक्ष) के बीच समन्वय बिठाकर कोरोना की इस जंग से विजयी होना है या फिर मैं व मेरा की पश्चिमी संस्कृति का पोषण कर हम व हमारा वाली मानवता को हराना है।लेकिन कोरोना की इस जंग में अगर पश्चिमी मॉडल व संस्कृति की ओर नजर दौडाएं तो कोरोना महामारी से जुड़े अब तक के आंकड़े व वहां की वर्तमान स्थिति में मानवता व मानवीय मूल्य हारते हुए नजर आ रहे हैं। जिस विकास मॉडल का उदाहरण दे-दे कर हम अपनी नस्सलों को शिक्षित करते हुए गौरवान्वित अनुभव करते रहे हैं, उसी मॉडल के कारण आज भौतिकतावाद के आगे मानवीय पक्ष हारता हुआ नजर आ रहा है। दुनिया के विकसित देशों में कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़े व हो रही मौतें तो बस यही कह रही है कि हमें दूसरों के अनुसरण को त्याग कर अपना विकास मॉडल स्वयं विकसित करना होगा। हमारी समृद्ध प्राचीन संस्कृति भी इसी का पोषण करती रही है जिसे अब हमें न केवल आगे बढ़ाना होगा बल्कि अपनी नस्लों को विकसित देशों के उदाहरण देने के बजाए हमें अपनी वैदिक संस्कृति व प्राचीन भारत की ओर मुडऩा होगा। हमें इस बात पर भी गौर करना होगा कि प्राचीन भारत का विकास मॉडल न केवल कोरोना जैसी महा विनाशकारी बीमारी में हमें मजबूत बनाता है बल्कि संकट की इस घड़ी में इसे पुर्नजीवित करने की आवश्यकता भी महसूस हो रही है। 
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी हमेशा ग्रामीण विकास के उत्थान की बात करते रहे हैं। यदि आज हमारे ग्रामीण क्षेत्र आर्थिक पक्ष की दृष्टि से मजबूत होते तो हम कोरोना महामारी को बड़ी कुशलता के साथ न केवल हराने में सक्षम होते बल्कि मानवीय पक्ष भी हमेशा सर्वोपरि रहता। इस बीच न तो लोगों को बड़ी संख्या में एक जगह से दूसरी जगह पलायन को मजबूर होना पड़ता न ही यह संक्रमण बड़े पैमाने पर हमारे गांव व घरों में दस्तक दे पाता। कहने को तो आज हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में दुनिया के तथाकथित विकसित देशों के तय मापदंडों के मुकाबले कमतर है, हमारे पास तथाकथित विश्व रैंकिंग वाले शैक्षणिक संस्थान भी नहीं है। लेकिन यहां पर हमें समझना होगा कि जहां हमारे आयुर्वेद व योग में बड़ी से बड़ी महामारी से लडऩे में क्षमता है बल्कि हमारी गुरूकूल शिक्षा पद्धति पश्चिमी देशों की पांच सितारा शिक्षा के मुकाबले कहीं आगे रही है। जिस विज्ञान का दंभ भर कर पश्चिमी देश विकास मॉडल की बात करते हैं ये सब तो हमारे प्राचीन वेद ग्रंथों में पहले से ही मौजूद है लेकिन दुर्भाग्य वश हमने न तो इसे समझने का प्रयास ही नहीं किया बल्कि पश्चिमी देशों के एजेंडे के आगे हम नतमस्तक होते चले गए। जिसका खामियाजा आज पूरी दुनिया के साथ-साथ देश की 135 करोड़ आबादी भी भुगतने को मजबूर हुई है।
लेकिन कोरोना वायरस की इस लड़ाई के बीच भारत के मानवीय दृष्टिकोण के आगे आज इस वैश्विक महामारी की चमक न केवल फिकी पड़ती नजर आ रही है बल्कि कोरोना संक्रमण को भी बड़े पैमाने पर फैलने से रोकने में कुछ हद तक हम कामयाब भी हुए हैं। इस संकट की घड़ी में समाज के छोटे से छोटे तबके से जुड़ा व्यक्ति भले ही आर्थिक तौर पर कमजोर जरूर है लेकिन मानवीय दृष्टिकोण के आगे उसकी जेब कम नहीं पड़ रही है। हमारे समाज में आज कितने ही ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे कि लोग प्रतिदिन इस संकट की घड़ी में न केवल मास्क तैयार करने में जुटे हैं बल्कि आर्थिक अंशदान व जरूरतमंदों को भोजन व राशन उपलब्ध्ध करवाने में भी कतई पीछे नहीं हैं। इस तरह का जज्बा न केवल हमारी समृद्ध संस्कृति का प्रतीक है बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मानवता का संदेश भी दे रहा है। यहां गौर करने वाली बात तो यह है कि आज कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी के खात्मे को लेकर पूरी दुनिया भारत की ओर देख रही है। ऐसे में यह वक्त न केवल समृद्ध संस्कृति को पूरी दुनिया में ले जाने का है बल्कि आयुर्वेद व योग के माध्यम से हम इस बीमारी को रोकने का प्रयास भी कर सकते हैं।
ऐसी विकट परिस्थति में अब यह आपको ही तय करना है कि क्या हमें पश्चिमी मॉडल की मैं व मेरा केन्द्रित आगे बढऩे वाली संस्कृति का पोषण करना है या फिर हम व हमारा जैसे मानवीय मूल्यों व मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण समृद्ध भारतीय संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन कर आने वाली पीढ़ी को शिक्षित करना है। कोरोना महामारी के चलते इस जिंदगी व मौत की लड़ाई में अब यह आपको ही खुलेमन से तय करना है कि हमें पश्चिमी मॉडल अपनाना है या फिर समृद्ध प्राचीन भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाना है।

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