Monday, 8 October 2018

स्वाधीनता आंदोलन में गांधी सेवा आश्रम ओयल की भूमिका

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हिमाचल प्रदेश सहित ऊना जिला के अनेक स्वतंत्रता आंदोलनकारियों ने अपनी अहम भूमिका निभाई। इसी स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए एक अक्तूबर, 1935 को ऊना के तीर्थ राम ओयल ने गांधी जी व पंजाब के नेता डॉ0 गोपी चंद भार्गव के अशीर्वाद और सहयोग से अपने गांव ओयल में गांधी सेवा आश्रम ओयल की स्थापना की। इस स्थापना समारोह में लगभग एक हजार लोगों ने भाग लिया और आजादी की लड़ाई की ज्योति को घर-घर तक पहुंचाने का संकल्प लिया।

23 जुलाई, 1939 को ऊना के ओयल गांव में पंजाब के कांग्रेस नेता डॉ0 गोपी चंद भार्गव ने गांधी सेवा आश्रम ओयल का विधिवत उद्घाटन किया और सरदार हजारा सिंह ने कौमी तिरंगा फहराने की रस्म अदा की। ओयल गांव के महाशय तीर्थ राम को आश्रम का चीफ ऑर्गेनाइजर नियुक्त किया गया। इस मौके पर हजारों लोगों ने डॉ0 गोपी चंद भार्गव के विचार सुने और गांधी जी के अहिंसात्मक राष्ट्रीय आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लेने की प्रतिज्ञा की। आश्रम को कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं के प्रशिक्षण का केंद्र बनाया गया। दिल्ली, पंजाब और पहाडी रियासतों के कार्यकत्र्ता यहां आकर गांधीवादी आंदोलन की शिक्षा ग्रहण करने लगे। डॉ0 गोपी चंद भार्गव ने आश्रम के आर्थिक प्रबंध का बीड़ा उठाया और ऊना के आत्मा राम और जगत राम को आश्रम के लंगर का प्रबंधक बनाया गया।

15 जनवरी, 1940 को सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय जनता से अंग्रेजों को महायुद्ध में सहयोग न देने की अपील की तथा 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस को बडे धूमधाम से मनाने का आग्रह किया। 26 जनवरी, 1940 को ओयल गांव में गांधी सेवा आश्रम में भी ध्वजारोहण समारोह बडी धूमधाम के साथ आयोजित किया गया।
मार्च, 1940 में महात्मा गांधी ने अपने रचनात्मक कार्यक्रमों को छोडक़र फिर से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व संभाला तथा दूसरे विश्व युद्ध से उत्पन्न विकट एवं विचित्र परिस्थितियों के कारण गांधी जी ने आंदोलन के मार्गदर्शन का बीडा उठाया। इसी काल में उन्होने अपनी शिष्या मीरा बेन को गांधी सेवा आश्रम ओयल, ऊना भेजा तथा आश्रम के कार्यकत्र्ताओं के प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन का कार्य सौंपा।

मीरा बेन एक ब्रिटिश एडमिरल की सुपुत्री थी और उनका असली नाम मिस सालडे था। मिस सालडे ने गांधी जी की शिष्या बनकर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऊना में आकर मीरा बेन ने ओयल आश्रम के प्रशिक्षणार्थियों को गांधीवादी आंदोलन की शिक्षा दी और आंदोलनकारियों का पथ-प्रदर्शन किया। इस दौरान एक अलग कुटिया में रहकर मीरा बेन ने ऊना, देहरा, अंब और गगरेट के गांवों में जाकर आम प्रजा तक गांधी जी का संदेश पहुंचाया।
वर्ष, 1942 में भारत छोडो आंदोलन के दौरान भी गांधी सेवा आश्रम ओयल में आंदोलन का कार्यक्रम स्वयं महाशय तीर्थ राम ने बनाया और इश्तिहार और नोटिस के माध्यम से सारे शहर में गांधी जी के करो या मरो आंदोलन का संदेश जनता तक पहुंचाया। इसी दौरान 18 अगस्त, 1942 को चिंतपूर्णी मेले के दौरान महाशय तीर्थ राम सहित अन्य कार्यकत्र्ताओं पं0 हंस राज ओयल, जगदीश राम ओयल, हरी सिंह ओयल, धनी राम अकरोट, जुलफी राम अकरोट आदि ने गांधी जी के करो या मरो के संदेश को चिंतपूर्णी मेले में आए लाखों लोगों तक पहुंचाया गया। इसी बीच इन सबको पकड लिया गया और गिरफ्तार कर थाना अंब की जेल में डाल दिया गया। इस मामले में महाशय तीर्थ राम को दो वर्ष, हंस राज को एक वर्ष, लक्षमण दास चौधरी को एक वर्ष तथा अन्य आंदोलनकारियों को तीन-तीन माह कड़े कारावास की सजा मिली। इस बीच महाशय तीर्थ राम, हंस राज और लक्षमण दास को मुल्तान जेल भेज दिया गया। ओयल आश्रम के शेष 16-17 कार्यकत्र्ता भूमिगत होकर आंदोलन का प्रचार करते रहे। इनमें जगदीश चंद्र रायपुर, प्रीतम सिंह बनवासी और एक बंगाली बाबू ने आश्रम का कार्यभार सम्भाला और जनता का मार्ग-दर्शन किया।

आजादी के बाद गांधी सेवा आश्रम ओयल का संचालन महाशय तीर्थ राम करते रहे तथा इस आश्रम में लोगों को आजीविका चलाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। जिसके अंतर्गत यहां कपडा़, बाण, कागज, साबुन, कोल्हू जैसे अनेक लघु उद्योगों को चलाने की कवायद शुरू की गई, लेकिन धीरे-धीरे ऐसे सभी लघु उद्योगों का कारोबार बंद होता चला गया।
वर्ष 2007 में महाशय तीर्थ राम की मृत्यु के बाद आश्रम की स्थिति बदहाल होती गई है तथा वर्तमान में आश्रम में रखी कई अमूल्य धरोहर एवं दुर्लभ चित्र भी खराब हो गए हैं। उचित देखरेख न होने के चलते हमारी या अमूल्य धरोहर खंडहर में तबदील होती जा रही है। वर्तमान में आश्रम के भीतर जहां महात्मा गांधी व नेता जी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमाएं स्थापित हैं तो वहीं महाशय तीर्थ राम की मृत्यु के बाद उनकी भी प्रतिमा स्थापित की गई है, लेकिन उचित देख-रेख व साफ-सफाई के अभाव में ये प्रतिमाएं भी धूल-मिटटी से भरी पडी हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन की शरणास्थली के रूप में अहम भूमिका निभाने वाले गांधी सेवा आश्रम ओयल के जीर्णोद्धार एवं इसके रख रखाव को लेकर लोग सरकार से उचित कदम उठाने की मांग कर रहे हैं ताकि हमारे स्वतंत्रता आंदोलनकारियों की यह शरणास्थली हमारी आने वाली पीढिय़ों को भी स्वतंत्रता आंदोलन का संदेश देती रहे।

 (साभार: आपका फैसला, 2 अक्तूबर, 2018 के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित) 


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