Tuesday, 13 February 2018

स्वर्ग की दूसरी पौड़ी से विख्यात है पौड़ीवाला शिव मंदिर

हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में नाहन-कालाअम्ब राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर स्थित गांव अम्बवाला से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ऐतिहासिक व प्राचीन शिव मंदिर, पौड़ीवाला। स्वर्ग की दूसरी पौड़ी के नाम से विख्यात इस शिव मंदिर का शिवलिंग लंका नरेश रावण द्वारा स्थापित माना जाता है। द्वापर एवं त्रैता युग से ही अपनी महत्ता स्थापित किए हुए इस मंदिर को भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है।
रामायण में वर्णित उल्लेख के अनुसार लंका के राजा रावण शिव के अनन्य भक्त थे। महत्वकांक्षी रावण ने और अधिक शक्ति प्राप्त करने तथा अमरत्व का वरदान प्राप्त करने के लिए अपने आराध्य भगवान शिव की घोर तपस्या की। भगवान उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए तथा रावण से मनचाहा वरदान प्राप्त करने को कहा। रावण ने भगवान आशुतोश से अमरता का वरदान मांगा। भगवान ने रावण को निर्देश देते हुए कहा कि अगर वह एक ही दिन में सूर्योदय से सूर्यास्त तक अलग-अलग स्थानों पर पांच शिवलिंग स्थापित कर सके तो उसे अमरत्व प्राप्त हो जाएगा। 
लंकाधिपति रावण भगवान की इस माया को न समझ पाया। अपने पुष्पक विमान में वह पांच पौड़ियां बनाने के लिए निकल पड़ा। पहली पौड़ी हर की पौड़ी हरिद्वार में, दूसरी नाहन के समीप इस पौड़ीवाला स्थान में, तीसरी चूड़धार में तथा किन्नर कैलाश में चैथी पौड़ी स्थापित करने के उपरान्त वह विश्राम करने के लिए लेट गया। इस दौरान उसे गहरी नींद आ गई। जब वह सोकर उठा तो दूसरा सूर्योदय हो चुका था। पांचवी पौड़ी बनाने से वंचित रहने के कारण वह अमर न हो सका।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि पाण्डुपुत्र अर्जुन ने भी पाशुपातेय अस्त्र के लिए इस स्थान पर भगवान शिव की तपस्या की थी। मृकण्डु ऋषि के पुत्र महर्षि मार्कण्डेय की तपस्या का तो यह क्षेत्र विशेष साक्षी रहा है। शतकुम्भा, पौड़ीवाला, ढिमकी मंदिर तथा बोहलियों स्थित मार्कण्डेश्वर धाम में उन्होंने शिव की गहन तपस्या कर अमरता पाई थी। मार्कण्डेय चालीसा में तो यह भी वर्णित है कि महर्षि मार्कण्डेय को अमरत्व प्रदान कर शिव यहां स्थापित शिवलिंग में लीन हो गए थे।
यहां आने वाले तमाम श्रद्धालु भगवान शिव से शांति, ऋद्धि, सिद्धी तथा सुख-सम्पति प्राप्त करने की कामना करते हैं। भक्तों का विश्वास है कि भगवान आशुतोष उनकी तमाम मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से भी यह स्थान मनमोहक है। यहां पर शिवरात्रि व श्रावण मास में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

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