Tuesday, 27 February 2018

ऊना के कुटलैहड क्षेत्र में मौजूद हैं पर्यटन की अपार संभावनाएं

हिमाचल प्रदेश जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पूरी दुनिया में विख्यात है तो वहीं यहां के चप्पे-चप्पे में विराजमान देवी-देवताओं के कारण इसे देवभूमि के नाम से भी पुकारा जाता है। ऐसे में यदि प्रदेश के ऊना जिला की बात करें तो जिला का कुटलैहड क्षेत्र भी पर्यटन की दृष्टि से अनेक संभावनाएं संजोए हुए है।
सोलह सिंगीधार के  ऊंचे टीले में स्थापित प्राचीन किले का बाहरी दृश्य
कुटलैहड क्षेत्र में जहां प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर अनेक स्थान हैं तो वहीं धार्मिक दृष्टि से भी कई ऐतिहासिक एवं प्रमुख स्थान मौजूद हैं। यहीं नही कुटलैहड क्षेत्र में ऐतिहासिक दृष्टि से प्राचीन किले जहां इतिहास की खोज रखने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकते हैं बल्कि यहां पर मौजूद भरपूर जैविक संपदा व वनस्पति भी पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन सकती हैं।
सोलह सिंगीधार के  ऊंचे टीले में स्थापित प्राचीन किले का आंतरिक दृश्य
ऐसे में यदि कुटलैहड क्षेत्र को पर्यटन की इन तमाम संभावनाओं की दिशा में आगे बढ़ाने के प्रयास किए जाएं तो न केवल इस क्षेत्र में पर्यटन की गतिविधियों को बल मिलेगा बल्कि यहां की आर्थिकी को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ युवाओं को पर्यटन के क्षेत्र में स्वरोजगार के नए साधन भी सृजित हो सकते हैं। 
गोविंद सागर झील का विहंगम दृश्य
ऐसे में धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं पर चर्चा करें तो कुटलैहड क्षेत्र में प्राचीन व ऐतिहासिक दृष्टि से कई धार्मिक स्थान मौजूद हैं। जिनमें ब्रहम्होती स्थित ब्रहम्मा जी का प्राचीन मंदिर, बसोली में पीर गौंस पाक मंदिर, कोलका स्थित बाबा गरीबनाथ मंदिर, सोलहसिंगी धार के आंचल में बसा भगवान नरसिंह का ठाकुरद्वारा एवं मंदिर, तलमेहडा का ध्यूंसर महादेव मंदिर, बाबा रूद्रानंद आश्रम एवं पांच अश्वत्थ (पीपल) बोध वृक्ष नारी बसाल, डेरा बाबा रूद्रु, जोगीपंगा, जमासनी माता मंदिर, धुंदला, लठियाणीघाट, सोलह सिंगीधार के आंचल में पांडवों द्वारा स्थापित चामुखा मंदिर इत्यादि प्रमुख हैं। प्राकृतिक एवं जैव संपदा की दृष्टि से बात करें तो इस क्षेत्र में गोविंदसागर झील में जहां वाटर स्पोटर्स की अपार संभावनाएं मौजूद हैं तो वहीं प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज यहां की सुंदर, शांत व स्वच्छ वादियां पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख कारण हो सकती हैं। 
सोलह सिंगीधार के आंचल में प्राचीन एवं ऐतिहासिक चामुखा मंदिर
इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की बात करें तो जनश्रुतियों के अनुसार कुटलैहड की सोलह सिंगीधार में महाराजा रणजीत सिंह या फिर कटोच वंश के शासक राजा संसार चंद द्वारा निर्मित किले जिन्हे स्थानीय लोग चौकियां कहकर पुकारते हैं हों या फिर कुटलैहड रियासत का रायपुर मैदान स्थित ऐतिहासिक राजमहल। कहा जाता है कि सोलह सिंगीधार में स्थित इन प्राचीन किलों से दूरबीन के माध्यम से जहां लाहौर (पाकिस्तान) का दृश्य तक देखा जा सकता था बल्कि यहां से ऊना सहित हमीरपुर व कांगडा जिला की प्राकृतिक वादियों का भी पर्यटक व प्रकृति प्रेमी खूब लुत्फ उठा सकते हैं। 
चामुखा मंदिर में स्थापित चारमुख वाला शिवलिंग
सोलह सिंगीधार ऊंचाई पर स्थित होने के कारण जहां गर्मियों के मौसम में मैदानी क्षेत्रों के पर्यटकों को ठंडक का एहसास दिलाती हैं बल्कि यहां से दूर-दूर तक नैना विभोर दृश्य बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर यहां बार-2 आने को आकर्षित करते हैं। इसके अलावा सोलह सिंगीधार हो या फिर रामगढ़धार की खूबसूरत वादियां यहां पर ट्रैकिंग साईटस की भी भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं। इस तरह यदि पर्यटन की दृष्टि से कुटलैहड क्षेत्र का विकास किया जाए तो जहां यहां की प्राकृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासकि वादियां लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सकती हैं तो वहीं यहां के युवाओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार के साधन भी उपलब्ध करवा सकते हैं। यह क्षेत्र जहां सडक़ सुविधा की दृष्टि से लगभग पूरी तरह से 12 माह सडक़ों से जुडा हुआ है तो वहीं रेल सुविधा भी यहां से महज कुछ किलोमीटर दूर ऊना तक उपलब्ध है। 
जमासनी माता परिसर
पर्यटन की दृष्टि से यदि इस क्षेत्र में अधोसंरचना को विकसित कर दिया जाए तो पर्यटन के लिए यह क्षेत्र किसी भी सूरत में प्रदेश के अन्य पर्यटक स्थलों से कमतर नहीं है। 
क्या कहते हैं स्थानीय लोग:
सोलह सिंगीधार के तहत गांव रछोह निवासी संजीव कुमार का कहना है कि यदि सरकार इस क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करती है तो जहां इस क्षेत्र का विकास होगा तो वहीं स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे। इसी तरह हटली निवासी सुरेंद्र हटली का कहना है कि सोलहसिंगीधार में स्थापित प्राचीन किलों का यदि सरकार जीर्णोंद्धार कर इन्हे पर्यटन की दृष्टि से विकसित करती है तो यह क्षेत्र भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र हो सकता है जिससे इस क्षेत्र की आर्थिकी को बल मिलेगा तथा युवाओं को रोजगार के नए साधन भी सृजित होंगे। 
गोविंद सागर झील के मुहाने में स्थित बाबा गरीबनाथ मंदिर कोलका
रायपुर मैदान निवासी सुखदेव सिंह का कहना है कि गोविंद सागर झील तथा यहां का शांत व स्वच्छ वातारण पर्यटन की अपार संभावनाएं संजोए हुए है, जिसे सरकार को विकसित करने की दिशा में प्रयास करने चाहिए। इसके अलावा रामगढ़धार व सोलह सिंगीधार में पर्यटकों के लिए ट्रैकिंग साईटस भी विकसित करने की पूरी संभावानाएं मौजूद हैं। 
क्या कहते हैं मंत्री: 
गोविंद सागर झील का विहंगम दृश्य
कुटलैहड विधानसभा क्षेत्र के विधायक एवं हिमाचल सरकार में कैबिनेट मंत्री वीरेंद्र कंवर का कहना है कि कुटलैहड क्षेत्र में प्राकृतिक सौंदर्य एवं स्वच्छ व साफ-सुथरा वातावरण तथा सोलह सिंगीधार, रामगढ़धार और गोविंदसागर झील में पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद हैं जिनका वे ग्रामीण विकास विभाग के माध्यम से ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देकर पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने का हरसंभव प्रयास करेंगें।






Tuesday, 13 February 2018

स्वर्ग की दूसरी पौड़ी से विख्यात है पौड़ीवाला शिव मंदिर

हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में नाहन-कालाअम्ब राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर स्थित गांव अम्बवाला से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ऐतिहासिक व प्राचीन शिव मंदिर, पौड़ीवाला। स्वर्ग की दूसरी पौड़ी के नाम से विख्यात इस शिव मंदिर का शिवलिंग लंका नरेश रावण द्वारा स्थापित माना जाता है। द्वापर एवं त्रैता युग से ही अपनी महत्ता स्थापित किए हुए इस मंदिर को भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है।
रामायण में वर्णित उल्लेख के अनुसार लंका के राजा रावण शिव के अनन्य भक्त थे। महत्वकांक्षी रावण ने और अधिक शक्ति प्राप्त करने तथा अमरत्व का वरदान प्राप्त करने के लिए अपने आराध्य भगवान शिव की घोर तपस्या की। भगवान उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए तथा रावण से मनचाहा वरदान प्राप्त करने को कहा। रावण ने भगवान आशुतोश से अमरता का वरदान मांगा। भगवान ने रावण को निर्देश देते हुए कहा कि अगर वह एक ही दिन में सूर्योदय से सूर्यास्त तक अलग-अलग स्थानों पर पांच शिवलिंग स्थापित कर सके तो उसे अमरत्व प्राप्त हो जाएगा। 
लंकाधिपति रावण भगवान की इस माया को न समझ पाया। अपने पुष्पक विमान में वह पांच पौड़ियां बनाने के लिए निकल पड़ा। पहली पौड़ी हर की पौड़ी हरिद्वार में, दूसरी नाहन के समीप इस पौड़ीवाला स्थान में, तीसरी चूड़धार में तथा किन्नर कैलाश में चैथी पौड़ी स्थापित करने के उपरान्त वह विश्राम करने के लिए लेट गया। इस दौरान उसे गहरी नींद आ गई। जब वह सोकर उठा तो दूसरा सूर्योदय हो चुका था। पांचवी पौड़ी बनाने से वंचित रहने के कारण वह अमर न हो सका।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि पाण्डुपुत्र अर्जुन ने भी पाशुपातेय अस्त्र के लिए इस स्थान पर भगवान शिव की तपस्या की थी। मृकण्डु ऋषि के पुत्र महर्षि मार्कण्डेय की तपस्या का तो यह क्षेत्र विशेष साक्षी रहा है। शतकुम्भा, पौड़ीवाला, ढिमकी मंदिर तथा बोहलियों स्थित मार्कण्डेश्वर धाम में उन्होंने शिव की गहन तपस्या कर अमरता पाई थी। मार्कण्डेय चालीसा में तो यह भी वर्णित है कि महर्षि मार्कण्डेय को अमरत्व प्रदान कर शिव यहां स्थापित शिवलिंग में लीन हो गए थे।
यहां आने वाले तमाम श्रद्धालु भगवान शिव से शांति, ऋद्धि, सिद्धी तथा सुख-सम्पति प्राप्त करने की कामना करते हैं। भक्तों का विश्वास है कि भगवान आशुतोष उनकी तमाम मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से भी यह स्थान मनमोहक है। यहां पर शिवरात्रि व श्रावण मास में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।