Friday, 30 December 2016

जिला ऊना में बेटियों को बचाएगी हिमाचल सरकार की मुस्कान

हिमाचल प्रदेश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में कन्या भ्रूण हत्याओं एवं अन्य कारणों से जहां हमारे समाज में बेटियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज हुई है तो वहीं बेटों की चाहत में बेटियों की अनदेखी ने हमारी सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रश्न चिन्ह खडा कर दिया है। ऐसे में यदि प्रदेश की पिछली जनगणाओं के आंकडों का विशलेषण करें तो प्रदेश में कन्या शिशु लिंगानुपात में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। प्राप्त आंकडों की बात करें तो प्रदेश में जहां वर्ष 1981 में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडकों पर लडकियों का शिशु लिंगानुपात 971 था जो वर्ष 1991 में गिरकर 951 तथा 2001 में यही आंकडा नौ सौ के नीचे 896 तक जा पहुंचा। भले ही वर्ष 2011 की जनगणना में प्रदेश में यही लिंगानुपात 906 हो गया हो लेकिन राष्ट्रीय अनुपात 914 के मुकाबले न केवल कम है बल्कि प्रदेश के कई जिलों में प्राप्त आंकडों के कारण स्थिति को ओर भी भयावह बना दिया है। 
राष्ट्रीय स्तर पर देश भर में बेटियों को बचाने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को चलाया गया जिसके तहत देश भर के उन चुनिंदा जिलों को शामिल किया गया है जहां बेटियों की संख्या बेटों के मुकाबले लगातार कम होती गई है। इसी अभियान के तहत जहां प्रथम चरण में हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना को शामिल किया गया तो वही दूसरे चरण में जिला कांगडा व हमीरपुर को भी शामिल कर लिया गया है। लेकिन ऐसे में बेटियों के प्रति समाज में व्यापक जन जागरूकता लाने तथा कन्या भ्रूण हत्याओं को रोकने के लिए हिमाचल सरकार ने स्वयं पहल करते हुए मुस्कान योजना को प्रारंभ किया। मुस्कान योजना को पहले चरण में प्रदेश के सात जिलों चंबा, किन्नौर, लाहुल व स्पिति, कुल्लू, शिमला, सिरमौर तथा सोलन में आरंभ किया गया तो वहीं अब इस योजना को प्रदेश के शेष बचे जिलों में भी प्रारंभ कर दिया गया जिसमें कन्या शिशु लिंगानुपात की दृष्टि प्रदेश के अति संवेदनशील जिला ऊना भी शामिल है। 
ऐसे में वर्ष 2011 के आंकडों की बात करें तो जिला ऊना में जहां कन्या शिशु लिंगानुपात 870 दर्ज किया गया है जो राष्ट्रीय औसत के मुकाबले काफी कम आंका गया था। लेकिन जिला में चले बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत जहां स्वास्थ्य विभाग के आंकडों के मुताबिक शिश ुलिंगानुपात में वृद्धि दर्ज हुई है तो वहीं प्रशासन द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों से बेटियों के प्रति व्यापक जागरूकता भी आई है। लेकिन इन सब प्रयासों के बावजूद जिला ऊना प्रदेश का एक सीमावर्ती जिला होने के कारण जहां पडोसी राज्यों में कन्या भ्रूण हत्याओं की घटनाओं के कारण शिशु लिंगानुपात को प्रभावित किया है तो वहीं कानूनी शिकंजा भी ऐसे कुकृत्य करने वालों को आसानी से अपनी पकड़ में नहीं ले पाता है। 
ऐसे में प्रदेश सरकार की मुस्कान योजना जहां जिला में कन्या शिशु लिंगानुपात में व्यापक सुधार लाने तथा कन्या भ्रूण हत्याओं को रोकने में कारगर साबित होगी। इस योजना के तहत प्रत्येक पंचायत में गर्भावस्था के दस सप्ताह के दौरान पंजीकरण करवाना अनिवार्य बनाया गया है तो वहीं आंगनवाडी कार्यकत्र्ताओं के माध्यम से गर्भवती महिलाओं को नजदीकी स्वास्थ्य या उप स्वास्थ्य केन्द्र में भी पंजीकृत करवाया जाएगा। सबसे अहम पहेलु तो यह है कि आंगनवाडी कार्यकत्र्ताओं के सहयोग से गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं को लगातार ट्रैक किया जाएगा। इसके अलावा जिन परिवारों में पहले से ही एक या दो लडकियां हैं उन परिवारों को महिला की गर्भावस्था की स्थिति के दौरान अति संवेदनशील श्रेणी में रखा जाएगा तथा आंगनवाडी वर्कर्ज के माध्यम से लगातार निगरानी रखी जाएगी। इसी योजना के अंतर्गत पंचायतों के पिछले पांच वर्षों के जन्म पर शिशु लिंगानुपात के आंकडे भी एकत्रित किए जाएंगें तथा जिन पंचायतों में कन्या शिशु लिंगानुपात की दर में लगातार कमी पाई जाती है तो ऐसी पंचायतों को रेड अलर्ट पर रखा जाएगा।
मुस्कान योजना के तहत बेटियों के प्रति व्यापक जन जागरूकता लाने के लिए कम कन्या लिंगानुपात वाली पंचायतों को चिन्हित कर जहां नवविवाहित जोडों को परामर्श के माध्यम से जागरूक किया जाएगा तो वहीं व्यापक जन जागरूकता लाने के लिए जगह-जगह जागरूकता शिविर भी आयोजित किए जाएंगे। साथ ही जिला में गुडडा-गुडडी बोर्ड के माध्यम से प्रमुख जगहों पर नवजात कन्याओं व बेटियों की संख्या को भी प्रदर्शित किया जाएगा। जबकि पंचायत में पैदा होने वाली नवजात कन्याओं के अभिभावकों को मुख्य मंत्री द्वारा हस्ताक्षरित बधाई पत्र भी दिया जाएगा। इसके अलावा नवजात कन्याओं के नाम पर विभिन्न तरह की बचत योजनाओं में खाते खोलने जैसे सुकन्या समृद्धि योजना खाता, आरडी या एफडी इत्यादि बारे प्रोत्साहित किया जाएगा। साथ ही प्रत्येक पंचायत में वर्ष में कम से कम तीन बार बालिका दिवस आयोजित किया जाएगा। इसके अलावा पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसी पीएनडीटी) अधिनियम, घरेलु हिंसा अधिनियम, प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पॉक्सो) एक्ट, दहेज निरोधक कानून सहित अन्य महिला अधिकारों व कानूनों तथा कल्याण के लिए चल रही विभिन्न योजनाओं बारे भी व्यापक जन जागरूकता लाई जाएगी।
इस तरह जिला ऊना में गत दो वर्षों से चल रहे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के साथ-साथ अब प्रदेश सरकार की मुस्कान योजना भी लिंगानुपात में सुधार लाने, नवजात कन्याओं को बचाने तथा बेटियों के प्रति व्यापक जन जागरूकता लाने में कारगर साबित होगी। ऐसे में जिला प्रशासन व यहां के लोगों की व्यापक जन सहभागिता से वह दिन दूर नहीं होगा जब जिला ऊना प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के उन चुनिंदा जिलों में शुमार होगा जहां बेटियों की संख्या बेटों के मुकाबले कमतर नहीं रहेगी।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 27 दिसम्बर, 2016 एवं दैनिक आपका फैसला, 9 जनवरी, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 17 December 2016

भ्रष्टाचार को लेकर सामाजिक मानसिकता बदलेगी

भारत में भ्रष्टाचार व कालेधन को लेकर आजकल कोहराम मचा हुआ है। 8 नवम्बर के बाद देश में बंद हुए एक हजार व पांच सौ रूपये के नोटों के चलते हर तरफ  मानो अफरातफरी का माहौल व्याप्त है। समाज के हर वर्ग का व्यक्ति बंद हुए नोटों के चलते जहां बैंकों व डाकघरों के बाहर पुराने नोटों को जमा करने व बदलवाने के लिए घंटों कतारबद्ध हो रहे हैं तो वहीं काली कमाई कर लाखों-करोडों दबा बैठे लोगों की मानों रातों-रात पूरी जिंदगी ही तबाह हो गई हो। खैर ये सब जो हुआ इसके पीछे भारत सरकार का निर्णय लेने के कारण कुछ भी रहे हों। लेकिन ऐेसे माहौल मेें अब एक ही प्रश्न उभर कर सामने आ रहा है कि आखिर भ्रष्टाचार को लेकर सामाजिक मानसिकता में बदलाव आ पाएगा? क्या भ्रष्टाचार के विरूद्ध इस लडाई में हमारी कार्य संस्कृति, स्वच्छ, पारदर्शी व जबावदेह बन पाएगी? क्या लोगों के आचरण व व्यवहार में वह परिवर्तन आ पाएगा जिसकी आज देश को सख्त दरकार है? 
लेकिन ऐसे में अब प्रश्न यह उठ रहा है कि आखिर भ्रष्टाचार है क्या? क्या महज चंद रूपयों की खातिर नियमों की उलंघना करना या फिर गलत तरीके से राज्य व्यवस्थाओं के विरूद्ध कार्य करते हुए चल व अचल संपति को एकत्रित करना मात्र है। वास्तव में भ्रष्टाचार इन सब बातों से भी कहीं आगे बढक़र है जो सीधा व्यक्ति विशेष के आचरण व व्यवहार से जुडा मसला है।
हमारी इस सामाजिक व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन कहीं न कहीं लडता है, जूझता है या फिर यूं कहें कि विभिन्न परिस्थितियों का सामना करता है। बात चाहे बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन पर टिकट हासिल करने की हो या फिर सरकारी कार्यालयों में कार्यों के निपटान से लेकर बाजार से जरूरी चीजों की खरीदफरोख्त की हो। ऐसे में अक्सर देखा जाता है कि व्यक्ति अपने जीवन व दिनचर्या से जुडे इन छोटे-छोटे कार्यों के लिए या तो वह किसी ऊंची पहुंच की तलाश में जुट जाता है या कुछ ले देकर जल्द निपटाने में ही भला चाहता है। जबकि हमारी बाजारी व्यवस्था के कडवे अनुभव उपभोक्ताओं की खून पसीने की कमाई पर कई बार भारी पड जाते हैं। लेकिन भ्रष्ट आचरण व व्यवहार की इस विषवेल में जहां देश का आम नागरिक मनमसोस कर रह जाता है तो वहीं इसका सीधा असर हमारी कार्य संस्कृति व व्यवस्था पर भी पडता है। लेकिन अब सवाल यह खडा होता है कि समाज का एक तबका लाइन व सिस्टम में खडा होकर कार्य करवाने को अपनी हैसियत के विरूद्ध अपनी तौहीन समझता है या फिर ऐसा करके वह समाज में अपनी धौंस जमाता है। 
अब आप दिनचर्या में से ही बैंकों या अस्पतालों का ही उदाहरण ले लीजिए। जहां पहुंच व जान पहचान से दूर व्यक्ति घंटों लाईन पर खडा होकर अपनी बारी का इंतजार करता है तो वहीं ऊंची पहुंच व रसूखदार व्यक्ति सेटिंग या चालाकी से अपना काम निकलवा लेता है। कई बार तो आलम यह हो जाता है कि जहां सही व्यक्ति भ्रष्टाचारियों से लडते-2 कहीं कोसों दूर पीछे रह जाता है तो वहीं व्यवस्था का दम घोटने वाले ही निर्णय की स्थिति में पहुंच जाते हैं। अब आप क्या इसे भ्रष्टाचार नहीं कहेंगें? वास्तव में भ्रष्टाचार के पोषक महज समाज के चंद लोगों को ही नहीं कहा जा सकता बल्कि इसे बढावा देेने में समाज को भी कहीं न कहीं जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। ऐसे में जरूरी है कि समाज के हर वर्ग चाहे वह किसी भी स्तर या हैसियत का हो, भ्रष्टाचार की इस सामाजिक लडाई में न केवल सबको एक ही पंक्ति में लगना होगा बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को समाज व सिस्टम के प्रति जबावदेह भी बनना होगा। 
भ्रष्टाचार के लिए महज चंद लोगों के गले में भ्रष्टाचारी होने का तमगा लटका देने से न तो समाज पूरी तरह से भ्रष्टाचार मुक्त होगा न ही सामाजिक व्यवस्था का लाभ हर जरूरतमंद तक पहुंच पाएगा। इसके लिए जरूरी है कि समाज का हर वर्ग, व्यक्ति, संस्था चाहे वह निजी हो या फिर सरकारी अपनी कार्य संस्कृति में पूरी पारदर्शिता के साथ व्यापक बदलाव लाते हुए समाज के प्रति जबावदेह बने। साथ ही वक्त आ गया है कि समाज में आम व खास के मध्य की उस दीवार को ध्वस्त करने का जो अक्सर भ्रष्ट आचरण में पोषक का कारण बनती है। इन सबसे अधिक जरूरी है कि भ्रष्टाचार की इस लडाई में दूसरों पर दोषारोपण करने के बजाए प्रत्येक व्यक्ति को आत्म निरीक्षण कर स्वयं से पहल करने की। 
यह समझ लीजिए जिस दिन समाज का प्रत्येक व्यक्ति भ्रष्टाचार व भ्रष्ट आचरण के प्रति अपनी सोच में बदलाव ले आएगा उस दिन खुद व खुद हमारा सामाजिक ढ़ांचा व कार्य संस्कृति भी बदल जाएगी। तो क्या राष्ट्र व समाजिक हित में भ्रष्टाचार की इस बुराई के विरूद्ध आप स्वयं से शुरूआत कर रहे हैं?

(साभार: दैनिक दिव्य हिमाचल, 17 नवम्बर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)