सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय भारत सरकार की सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर वर्ष-2015 के जारी आंकडों के अनुसार देश में वर्ष 2014 के मुकाबले 2015 में सडक़ दुर्घटनाओं में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि इसी दौरान सडक़ दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों में भी 4.6 प्रतिशत तथा घायलों की संख्या में 1.4 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज हुई है। जारी आंकडों के आधार पर देश में प्रतिदिन 1374 सडक़ दुर्घटनाओं में 400 लोगों की मौत हो रही है। यानि की हम कह सकते हैं कि हमारे देश की सडक़ें प्रतिदिन हो रही सडक़ दुर्घटनाओं के शिकार लोगों के रक्त से हर पल लाल हो रही है तथा जिस गति से यह आंकडा बढ़ रहा है सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर देश की एक भयावह तस्वीर हमारे सामने प्रस्तुत हो रही है।
सरकार द्वारा जारी इन्ही आंकडों का आगे विश्लेषण करें तो सबसे चौकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि इन सडक़ दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे लोगों में से 54.1 फीसदी 15-34 आयु वर्ग के युवा हैं। युवाओं का इस तरह सडक़ दुर्घटनाओं में शिकार हो जाना हमारे देश व समाज के लिए एक बहुत बडी त्रासदी कही जा सकती है। आंकडों के आधार पर कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 77.1 प्रतिशत सडक हादसे चालकों की लापरवाही के कारण घटित हो रहे हैं। जिसमें से लगभग 62 फीसदी कारण ओवरस्पीड जबकि शराब व नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों का आंकडा दस फीसदी है। इसी तरह ओवरलोडिंग के कारण देश में 77 हजार से अधिक सडक़ दुर्घटनाएं हुई जिनमें 25 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई है। यानि की यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतर सडक दुर्घटनाओं के कारण हम स्वयं ही बन रहे हैं। आंकडों से दूसरी सबसे चौकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि देश में हिट व रन के मामलों में भी वृद्धि दर्ज हुई है तथा वर्ष 2015 में कुल सडक दुर्घटनाओं में से 11.4 प्रतिशत हिट व रन के मामले सामने आए जिनके तहत 20 हजार से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पडी है।
इन आंकडों से एक ओर बात मुख्य तौर पर सामने आ रही है कि गत दो वर्षों के दौरान दोपहिया वाहनों की सडक़ दुर्घटना के आंकडों में भी लगभग दो फीसदी जबकि कार, जीप, टैक्सी इत्यादि के मामले में लगभग डेढ़ फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। पूरे देश में 26 फीसदी सडक दुर्घटनाओं के कारण दोपहिया वाहन, साढे पच्चीस फीसदी ट्रक, टैंपो इत्यादि, 19 फीसदी कार, जीप, टैक्सी इत्यादि तथा 8 फीसदी बसें सडक़ दुर्घटनाओं का कारण बन रही हैं। ऐसे में एक बार फिर यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं के लिए वाहन चालक स्वयं ही कारण बन रहे हैं। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बात यह भी सामने आई है कि 79 फीसदी सडक़ दुर्घटनाओं के मामले में चालकों के पास नियमित ड्राईविंग लाईसेंस था जबकि लर्नर लाईसेंस धारकों का आंकडा 12 फीसदी तथा बिना लाईसेंस वाले चालकों का आंकडा नौ फीसदी है।
ऐसे में यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो वर्ष 2015 में तीन हजार सडक़ दुर्घटनाएं घटित हुई जिनमें लगभग 11 सौ लोगों की मौत व 5 हजार से अधिक घायल हुए हैं। राष्ट्रीय स्तर की भांति हिमाचल प्रदेश में भी अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं का मुख्य कारण वाहन चालक की लापरवाही ही सामने आई है। प्राप्त आंकडों के आधार पर प्रदेश में कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 2893 वाहन चालकों की गलती के कारण हुई जिनमें 1042 लोग मारे गए तथा पांच हजार के करीब घायल हुए हैं। वाहन चालकों के कारण हुई कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 2670 दुर्घटनाओं का कारण तेज गति से वाहन चलाना ही सामने आया है। ऐसे में एक बार फिर स्पष्ट हो गया कि लोगों की स्वयं की गलती के कारण की अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं के मामले घट रहे हैं।
इन परिस्थितियों में अब यह जरूरी हो जाता है कि सडक दुर्घटनाओं के प्रति लोगों को जागरूक करने की बहुत आवश्यकता है ताकि प्रतिवर्ष लाखों लोगों को सडक़ दुर्घटनाओं के कारण असमय ही मौत के आगोश में जाने से बचाया जा सके। इसके लिए जरूरी है कि लोग वाहन चलाते समय सडक़ पर लगी संकेतावली व चिन्हों का गंभीरता से पालन करते हुए स्वयं व दूसरों की अनमोल जिंदगी को बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। साथ ही वाहन चालक गाडी चलाते समय सीट बैल्ट का प्रयोग करते हैं तो सडक दुर्घटना की स्थिति में मौत होने की 60 प्रतिशत तक संभावनाएं कम हो जाती हैं जबकि दोपहिया वाहन चलाते समय अच्छी गुणवत्ता वाला हेल्मेट पहनने से सिर पर लगने वाली चोटों की संभावनाओं को 70 प्रतिशत तक कम कर देता है।
यही नहीं वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना भी सडक दुर्घटनाओं का बहुत बडा कारण बनता जा रहा है। इस दिशा में किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि वाहन चलाते समय फोन को सुनना, कॉल या लिखित संदेश आने से भ्रमित हो जाना, एकाएक मोबाईल फोन की घंटी बज जाना इत्यादि विभिन्न कारणों से वाहन चालक की सडक पर जोखिमों के प्रति पहचान और प्रतिक्रिया की क्षमता धीमी हो जाती है जिसके कारण सडक दुर्घटना होने का अंदेशा लगातार बना रहता है। सडक यातायात में दिन के मुकाबले रात में घातक दुर्घटनाएं होने की संभावना 3-4 गुणा अधिक होती है। इसलिए रात्रि के समय वाहन चलाते समय अतिरिक्त सावधानी व सत्तर्कता अपनाएं तथा पैदल चलने वाले यात्रियों, साइकिल सवारों, पशुओं इत्यादि के प्रति सावधान रहें। साथ ही रेट्रो-रिफलैक्टिव शीटों व टेपों का व्यापक इस्तेमाल करें।
देश में वाहनों की ओवरलोडिंग भी सडक़ दुर्घटनाओं का एक बहुत बडा कारण है इसलिए ओवर लोडिंग न करके हम देश की सडकों को क्षति पहुंचाने से बचा सकते हैं बल्कि वाहनों की क्षमता को भी बढ़ाने के साथ-साथ होने वाले आर्थिक नुकसान से भी बच सकते हैं। इसके अलावा वाहन चालकों को वाहन चलाते समय शराब व नशीले पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। देश में 77 फीसदी सडक दुर्घटनाओं के लिए वैध ड्राईविंग लाईसैंस धारी चालक ही कारण बन रहे हैं, ऐसे मेें जरूरी है कि वाहन चालकों का समय-समय पर सडक़ सुरक्षा के प्रति औचक परीक्षण भी होना चाहिए ताकि वाहन चालक सडक़ नियमों के प्रति सचेत बने रहें।
ऐसे में यदि हमारे देश को ब्राजीलिया डिक्लेरेशन के तहत 2020 तक सडक़ दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों में 50 फीसदी तक कमी लानी है तो जरूरी है कि लोग सडक़ सुरक्षा नियमों के प्रति जागरूक बनें तथा ड्राईविंग लाईसेंस जारी किए जाने वाली प्रक्रिया में सख्ती के साथ-साथ पारदर्शिता अपनाए जाने की आवश्यकता है। साथ ही सडक सुरक्षा नियमों का पालन न करने वाले वाहन चालकों के प्रति सख्त कानूनी कार्रवाई भी अमल लानी होगी। अन्यथा हमारी सडक़ों पर मौत यह तांडव इसी तरह जारी रहेगा तथा असमय की असंख्य लोग अपनी अनमोल जिंदगी को गंवाते रहेंगें।
(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 1 अगस्त, 2016 एवं हिमाचल दिस वीक, 6 अगस्त, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 1 अगस्त, 2016 एवं हिमाचल दिस वीक, 6 अगस्त, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
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