Tuesday, 22 March 2016

हिमाचल प्रदेश में बेटी बचाओ अभियान को गति मिले

हमारे समाज में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्याएं तथा समाज में घटते लिंगानुपात के कारण एक बहुत बडी सामाजिक असमानता खडी हो गई है। इस लिंगभेद की बढ़ती खाई से जहां पूरे देश में लडकियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है तो वहीं कुछ राज्यों सहित देश भर के एक सौ से अधिक जिलों में इस समस्या ने भयावह रूप धारण कर लिया है। यह कितनी विडंबना है कि जिस भारतीय समाज में कन्याओं का पूजन किया जाता है उसी समाज मेें बेटियों को पैदा होने से पहले ही मॉं की कोख में मौत की नींद सुला दिया जा रहा है। जो बेटियां पैदा भी हो रही उनके प्रति हमारी रूढिवादी मानसिकता हमेशा रोडा बनकर खडी हो जाती है। जिसका नतीजा यह है कि आज भी हमारे समाज व परिवार में बेटियां बेटों के मुकाबले न केवल भेदभाव की शिकार होती है बल्कि सामाजिक तौर पर भी उसे न तो बेहतर शिक्षा के अवसर मुहैया करवाने को तरजीह दी जाती है न ही जीवन में आगे बढऩे के लिए लडकों की भांति प्रेरित किया जाता है। 
आज हमारे समाज में से ऐसे सैंकडों नहीं बल्कि हजारों बेटियों के नाम मिल जाएंगें जिन्होने न केवल कामयाबी की बुलंदी को चूमा है बल्कि  हमारे परिवार व समाज का नाम भी रोशन किया है। यही नहीं यही बेटियां जहां बडी होकर किसी परिवार में बेटी बनकर मां-बाप का सहारा बनती है तो वहीं शादी के बाद किसी की पत्नी व बहु बनकर परिवार की बगिया को महकाती है। यहां हम यह क्यों भूल जाते हैं कि किसी भी पुरूष को जन्म देने वाली भी ये बेटियां ही होती है। परन्तु यह सब जानने के बावजूद भी न जाने हम ऐसी कौन सी रूढिवादी परम्परा के शिकार हुए बैठे हैं कि विकास व सूचना तकनीकि की इस 21वीं सदी में भी हम बेटियों के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार का कलंक अपने माथे पर लिए फिर रहे हैं। कहने को तो आज हम आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं, हमारे पास सुख सुविधाओं के तमाम आधुनिक साधन मौजूद है परन्तु बेटियों के प्रति हमारी संकीर्ण सोच व मानसिकता ने दिखा दिया है कि आज भी हम सामाजिक तौर पर पिछडे हुए ही हैं। 
ऐसे में यदि जनगणना-2011 के आंकडों का विश्लेषण करें तो जहां पूरे देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडक़ों के मुकाबले 918 लड़कियां है तो वहीं देश के सौ जिलों में यह स्थिति राष्ट्रीय औसत से भी कम है। जिसमें हिमाचल प्रदेश के ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगडा व सोलन जिले भी शामिल है।प्राप्त आंकडों के आधार पर हिमाचल प्रदेश का शिशु लिंगानुपात जनगणना-2001 के आंकडे 896 के मुकाबले जनगणना-2011 में 906 जरूर हुआ है लेकिन प्रदेश के आर्थिक व शैक्षणिक दृष्टि से अग्रणी कांगडा-873, ऊना-875, हमीरपुर-881, बिलासपुर-893 तथा सोलन जिला का यह आंकडा 899 है जो न केवल राष्ट्रीय अनुपात 918 के मुकाबले बल्कि प्रदेश के औसत अनुपात 906 से भी कम है। दूसरी ओर जहां प्रदेश के जन जातीय जिला लाहुल स्पिति में यह आंकडा 1013 तथा किन्नौर में 953 हैै तो वहीं प्रदेश में अन्य जिलों के मुकाबले आर्थिक तौर पर कमजोर कहे जाने वाले चंबा में यह आंकडा 950 तथा सिरमौर में 931 है जो कि अन्तर्राष्ट्रीय मानक एसआरबी (जन्म के समय शिशु लिंगानुपात) के 952 आंकडे के मुकाबले बेहतर कहा जा सकता है। लेकिन ऐसे में अब प्रश्न यही खडा हो रहा है कि क्या हमारे समाज में ज्यादा पढे लिखे व आर्थिक तौर पर सम्पन्न लोग कन्या भ्रूण हत्याओं के कारण बन रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी सोच विकास की इस दौड में कहीं पिछडती तो नहीं जा रही है? फिलहाल तो प्रदेश में शिशु लिंगानुपात के बयान करते जिलों के आंकडे तो यही बता रहे हैं। 
ऐसे में अब यह जरूरी हो जाता है कि प्रदेश में जिला ऊना में चलाए गए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की तर्ज पर कम शिशु लिंगानुपात वाले जिलों में कन्या भ्रूण हत्या सहित बेटियों के प्रति समाज में व्याप्त रूढिवादी मानसिकता के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव लाने के लिए बेटी बचाओ जैसे बडे अभियान को बल दिया जाए। इस तरह के अभियान के माध्यम से जहां समाज में बेटियों व महिलाओं के प्रति व्याप्त रूढि़वादी मानसिकता के प्रति जन जागरूकता अभियान चलाया जाए तो वहीं शिक्षण संस्थानों से लेकर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर कार्य करने वाली लडकियों व महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाए। साथ ही बेटियों को पैतृक संपति में बेटो के बराबर अधिकार को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ समाज में ऐसे सभी सामाजिक कार्यों के प्रति व्याप्त रूढिवादी मानसिकता को भी ख्ंागाला जाए जो अक्सर बेटियों के पैदा होने में बाधक का काम करती है। 
इसलिए अब वक्त आ गया है कि बेटियों को कोख में ही मारने वाले शैतानों को फिर से इन्सान बनाया जाए अन्यथा हमारे पढ़े लिखे और तथाकथित आधुनिक समाज यह कुकृत्य इसी तरह जारी रहा तो हमारे समाज में विकट सामाजिक परिस्थितियां पैदा हो जाएंगी जिसके हम सब को गंभीर परिणाम भुगतने पड सकते हैं।


(साभार: हिमाचल दिस वीक 5 मार्च, 2016 एवं दिव्य हिमाचल 21 मार्च, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Monday, 21 March 2016

डेरा बाबा बडभाग सिंह के दरबार में बुरी आत्माओं व मानसिक बीमारी से मिलती है मुक्ति

हिमाचल प्रदेश जहां प्राकृतिक सौंदर्य के चलते विश्व विख्यात है तो वहीं विभिन्न धार्मिक स्थानों के कारण भी प्रदेश की राष्ट्रीय व अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक पहचान है। प्रदेश में स्थित विभिन्न पवित्र धार्मिक स्थानों के चलते जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं तो वहीं प्रदेश की शुद्ध, शांत व साफ-सुथरी आवोहवा का आनन्द भी उठाते हैं। प्रदेश में स्थित विभिन्न पवित्र धार्मिक स्थानों में से एक है जिला ऊना के उपमंडल अंब में बाबा बडभाग सिंह जी का पवित्र स्थान मैडी। उपमंडल अंब के मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर जंगल के मध्य में स्थित मैडी एक अत्यंत सुंदर, शांत व रमणीय स्थान है। 
इस पवित्र स्थान के बारे में कई किंवदन्तियां व कथाएं प्रचलित हैं जिसमें एक कथा के अनुसार लगभग 300 वर्ष पूर्व पंजाब के कस्बा करतारपुर से बाबा राम सिंह के सुपुत्र बड़भाग सिंह अहमदशाह अब्दाली के हमले से तंग आकर शिवालिक पहाडियों की ओर चल पड़े। जब वह नैहरी गांव के साथ लगते क्षेत्र दर्शनी खड्ड के समीप पहुंचे तो उनका सामना अफगानी सैनिकों के साथ हुआ। यह भी कहा जाता है कि उन्होने अपने ओजस्वी तेज से अफगानी फौज को वहां से खदेड दिया। कहते हैं कि उस समय मैड़ी एक निर्जन स्थान था और दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी। यह भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र में यदि कोई गलती से प्रवेश कर जाता था तो उसे भूत प्रेत आत्माएं या तो बीमार कर देतीं थीं या फिर पागल कर देती थीं। बाबा बडभाग सिंह जी ने इस जगह पर घोर तपस्या की तथा कहते हैं कि ऐसी प्रेत आत्माओं ने बाबा जी को खूब तंग किया लेकिन वह अपने प्रयास में कामयाब नहीं हो सकीं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार वर्ष 1761 में पंजाब के कस्बा करतारपुर जो जिला जालंधर में पडता है, सिख गुरू अर्जुन देव जी के वंशज बाबा राम सिंह सोढ़ी और उनकी धर्मपत्नी माता राजकौर के घर में बड़भाग सिंह का जन्म हुआ था। उन दिनों अ$फगानों के साथ सिख जत्थेदारों की खूनी भिड़ंतें होती रहती थीं। बाबा बड़भाग सिंह बाल्याकाल से ही आध्यात्म को समर्पित होकर पीडित मानवता की सेवा को अपना लक्ष्य मानने लगे थे। कहते हैं कि वह एक दिन घूमते हुए मैडी गांव स्थित दर्शनी खड्ड जिसे अब चरण गंगा के नाम से भी जाना जाता है, पहुंचे और यहां के पवित्र जल में स्नान करने के बाद मैडी़ स्थित एक बेरी के वृक्ष के नीचे ध्यानमग्र हो गए। मैडी का यह क्षेत्र एक दम वीरान था और दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी। कहते यह भी हैं कि यह क्षेत्र वीर नाहर सिंह नामक एक पिशाच के प्रभाव में था। नाहर सिंह द्वारा परेशान किए जाने के बावजूद बाबा बडभाग सिंह जी ने इस जगह पर घोर तपस्या की तथा एक दिन दोनों के आमने सामने हुआ तो बाबा बडभाग सिंह ने दिव्य शक्ति से नाहर सिंह को काबू करके बेरी के वृक्ष के नीचे एक पिंजरे में कैद कर लिया। कहते हैं कि बाबा बडभाग सिंह ने उसे इस शर्त पर आजाद किया कि वीर नाहर सिंह अब वह इसी स्थान पर मानसिक रूप से बीमार और बुरी आत्माओं के शिकंजे में जकडे लोगों को स्वस्थ करेंगें और साथ ही नि:संतान लोगों को फलने का आर्शीवाद भी देगेें। बेरी का पेड़ आज भी यहां मौजूद है और डेरा बाबा बड़भाग सिंह नामक धार्मिक स्थल के साथ सटा है। प्रतिवर्ष इस डेरा में लाखों श्रद्धालु आकर बाबा जी की आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। 

इस वर्ष का डेरा बाबा बडभाग सिंह होली मेला का आयोजन 16 से 26 मार्च तक किया जा रहा है। 23 मार्च को झंडे की रस्म होगी जबकि 25 व 26 मार्च की मध्यरात्रि को पंजा साहिब का पवित्र प्रसाद श्रद्धालुओं को वितरित किया जाएगा। 
इस तरह हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना की शिवालिक पहाडियों में स्थापित इस पवित्र धार्मिक स्थान पर जहां लाखों भक्त प्रतिवर्ष बाबा जी का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं तो वहीं बाबा जी बुरी आत्माओं व मानसिक बीमारी से पीडित लोगों को स्वस्थ जीवन जीने तथा नि:संतान परिवारों को फलने फूलने का आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं।

  (साभार: दिव्य हिमाचल, 19 मार्च, 2016 को आस्था अंक तथा गिरिराज 11 मई, 2016 के अंक में प्रकाशित)