हिमाचल प्रदेश अपने प्राकृतिक सौंदर्य व धार्मिक स्थानों के चलते न केवल राष्ट्रीय बल्कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी पर्यटन की दृष्टि से ख्याति प्राप्त है। जिसके चलते जहां प्रदेश में प्रतिवर्ष लाखों देशी व विदेशी सैलानी भ्रमण हेतु यहां पहुंचते हैं तो वहीं पर्यटकों के आवागमन के चलते प्रदेश को करोडों रुपयों की आमदन भी होती है। प्रदेश में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सैंकडों धार्मिक व प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान है। जिनमें से एक है जिला सिरमौर का श्री रेणुका जी। यह स्थान जहां प्रदेश की सबसे बडी प्राकृतिक झील के नाते पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बिन्दु है तो वहीं भगवान परशुराम की जन्मस्थली होने के नाते एक पवित्र धार्मिक स्थान भी है।
रेणुका झील लगभग 3 वर्ग कि0मी0 के दायरे में फैली है। इस झील के चारों ओर हरे भरे जंगल तथा इसमें चहचाहते पक्षियों की मधुर आवाजें मन को मोह लेती हैं। सबसे अहम पहेलु यह है कि जहां झील का शीतल व निर्मल जल पर्यटकों को अपनी ओर आर्किषत करता है तो वहीं दूर से देखने पर झील की आकृति एक सोई हुई महिला जैसी प्रतीत होती है। किंवदतियों के अनुसार भगवान परशुराम की मां रेणुका जब तत्कालिन राम सरोवर में जलमग्न हुई तो इसका आकार एक निद्रामग्न नारी के रुप में परिवर्तित हो गया। तभी से ही इस झील के जल को भी गंगा जल के समान पवित्र माना गया है। झील में पवित्र स्नान हेतु स्नानाघाट भी बनें है। जिसमें महिलाओं व पुरुषों को अलग-अलग से पवित्र स्नान की व्यवस्था है। झील में अठखेलियां करती मछलियां तथा विचरण करते कछुए भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। रेणुका का एक अन्य आकर्षण है यहां का लघु चिडियाघर और लायन सफारी। जहां पर हम एशियाई बब्बर शेरों] काले भालू] तेंदुओं] हिरण आदि को देख सकते हैं। यहां पर झील के चारों ओर लगभग 3 कि0मी0 के दायरे में स्थापित रेणुका वन्य प्राणी अभयारण्य भी पर्यटकों को अपनी ओर आर्किषत करता है। जहां पर लंगूर] धोरल] उल्लू] लाल मुर्गे] मुर्गाबी] मोर] बतख इत्यादि भी देखे जा सकते हैंै। रेणुका झील में बोटिंग की सुविधा भी है] जिसके चलते पर्यटक यहां के प्राकृतिक सौंदर्य का ज्यादा आनंद उठा सकते हैं।
पौराणिक कथानुसार भगवान परशुराम कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां से मिलने श्रीरेणुकाजी में पधारते हैं। कहते हैं कि प्राचीन काल में आर्यवर्त में हैहवंषी क्षत्रीय राज्य राज करते थे तथा भृगुवंशी ब्राहमण उनके राज पुरोहित थे। इसी भृगुवंशी के महर्षि ऋचिक के घर महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ। इनका विवाह इक्ष्वाकु कुल के ऋषि रेणु की कन्या रेणुका से हुआ। महर्षि जमदग्नि सपरिवार इसी क्षेत्र में तपे का टिला] जो वर्तमान में जामुकोटी में स्थित है] रहने लगे। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीय को मां रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का जन्म हुआ। इन्हे भगवान विष्णु का छठा अवतार भी माना जाता है। कथानुसार महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी] जिसे पाने के लिए सहóबाहु ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी। हत्या का समाचार सुनकर मां रेणुका शोकवश राम सरोवर में कूद गई] जो आज रेणुका झील के नाम से प्रसिद्ध है। उधर महेन्द्र पर्वत पर तपस्या में लीन भगवान परशुराम को जब मां रेणुका की मौत का पता चला तो क्रोधित होकर भगवान परशुराम सहóबाहु को ढ़ूंढ़ने निकल पड़े। तत्पश्चात भगवान परशुराम ने अपनी योगशक्ति से पिता महर्षि जमदग्नि व माता रेणुका को जीवित कर दिया। भगवान परशुराम ने महेन्द्रपर्वत पर लौटने से पूर्व मां रेणुका को वचन दिया कि वह प्रतिवर्ष कार्तिक मास की दशमी को डेढ़ दिन के लिए रेणुकाजी में आया करेंगें] तभी से लेकर आजतक इस पावन तीर्थ पर प्रतिवर्ष रेणुका मेला बड़ी धूमधाम से यहां मनाया जाता है। मेले में प्रदेश व क्षेत्र की संस्कृति को देखने व जानने का सुअवसर भी मिलता है। पहले यह मेला राजस्तरीय था परन्तु वर्ष 2011 में प्रदेश सरकार ने इसे अन्र्तराष्ट्रीय स्तर का बना दिया है। जबकि इससे पहले प्रदेश सरकार ने वर्ष 1984 में इस क्षेत्र के बेहतर विकास हेतू श्री रेणुकाजी विकास बोर्ड की स्थापना भी की है। यहां ठहरने हेतू हिमाचल पर्यटन विकास निगम का होटल] श्री रेणुका जी विकास बोर्ड का विश्राम गृह] वन विभाग का विश्राम गृह प्रमुख है। इसके अलावा यहां से लगभग 02 कि0मी0 की दूरी पर ददाहू में लोक निर्माण विभाग व पंचायती राज विभाग के विश्राम गृह के साथ-साथ कई निजी होटल भी हैं।
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