Tuesday, 18 February 2025

चौहार घाटी के झटिंगरी में कभी सजता था मंडी रियासत के राजाओं का दरबार

बड़ा देव श्री हुरंग नारायण करते थे दरबार की अध्यक्षता, अब खंडहर बन चुकी है यह ऐतिहासिक धरोहर

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल का कभी हिस्सा रही चौहार घाटी के झटिंगरी में प्राचीन काल में मंडी रियासत के राजाओं का दरबार सजता था। इस दौरान न केवल रियासत के राजा स्थानीय लोगों के साथ मिलते-जुलते थे बल्कि उनकी समस्याओं को भी सुना जाता था। इस दरबार की अध्यक्षता चौहार घाटी के बड़ा देव श्री हुरंग नारायण करते थे। वर्तमान में झटिंगरी के इस ऐतिहासिक स्थल पर न तो रियासत कालीन महल मौजूद रहा है बल्कि अब केवल कुछ अवशेष ही देखने को मिलते हैं। यहां पर राजा के साथ-साथ रानी का भी एक अलग महल हुआ करता था। लेकिन इतिहास के पन्नों से यह बात साबित हो जाती है कि चौहार घाटी के झटिंगरी में न केवल मंडी रियासत के राजा स्थानीय लोगों से मिलते जुलते थे बल्कि यहां पहुंचकर समस्याओं का भी निवारण किया करते थे।
ऐतिहासिक स्थल झटिंगरी को लेकर कुछ इतिहास की किताबों में न केवल राज दरबार लगने की जानकारी मिलती है बल्कि चौहार घाटी से जुड़ी कई ऐतिहासिक व रोचक जानकारी भी पढ़ने को मिलती है। इस संबंध में मंडी रियासत के राजा सूरज सेन (1637-1662 ई.) के समय चौहार घाटी को लेकर कुछ ऐतिहासिक संदर्भ पढ़ने को मिलते हैं। राजा सूरज सेन के युवा होने तक मंडी रियासत का राज शासन करोड़िया खत्री के पास था। जैसे-जैसे राजा सूरज सेन बड़ा होने लगा तो सत्ता करोड़िया के हाथों से निकलने लगी, ऐसे में करोड़िया ने नुरपूर के राजा जगत सिंह से मिलकर षड्यंत्र रचा। करोड़िया ने नूरपुर के राजा की बेटी का विवाह सूरज सेन से तय किया ताकि योजना के अनुसार सूरज सेन को मारा जा सके। लेकिन इस बीच सूरज सेन को इस षड्यंत्र का आभास हो गया तथा अपनी दुल्हन को वहीं पर छोड़कर वहां से भाग निकला। बाद में नूरपुर के राजा जगत सिंह ने बेटी को मंडी राजमहल पहुंचाया। इस बीच सन 1641 ई. में नूरपुर के राजा जगत सिंह ने शाहजहां के विरूद्ध मोर्चा खोल दिया। शाहजहां की ओर से गुलेर के राजा ने भाग लेते हुए रानी ताल कांगड़ा में युद्ध हुआ। इस युद्ध में न चाहते हुए भी मंडी के राजा सूरज सेन को भाग लेना पड़ा। युद्ध में नूरपुर के राजा जगत सिंह की हार हुई तथा सूरज सेन भी हार के बाद वहां से भाग निकला।
कहते हैं कि राजा सूरज सेन भागते-भागते चौहार घाटी के बरोट पहुंचा तथा यहां पर स्थानीय लोगों ने उन्हें पहचान लिया कि वे तो उनके राजा सूरज सेन हैं। उस वक्त लोगों में यह चर्चा थी कि मंडी का राजा सूरज सेन युद्ध में या तो मारा गया है या फिर गुम हो गया है। ऐसे में लोगों ने उन्हें पूरे मान-सम्मान के साथ मंडी राजमहल पहुंचाया। इसके बाद राजा सूरज सेन ने चौहार घाटी की बेगार माफ कर दी थी तथा झटिंगरी में अपना दरबार लगाकर चौहार घाटी के लोगों से मिलते थे। इस दरबार की अध्यक्षता बड़ा देव श्री हुरंग नारायण किया करते थे। इसके बाद यहां पर मंडी के राजाओं ने महल भी बनवाया। साथ ही रानी के लिए भी एक अलग महल बनवाया था। लेकिन वर्तमान में अब मात्र इन ऐतिहासिक धरोहरों के कुछ अवशेष ही रह गए हैं।
जब मंडी की रानी ने बड़ा देव हुरंग नारायण से मांगी संतान की प्राप्ति, बनवाया देवता का मोहरा
इतिहास के पन्ने बताते हैं कि मंडी रियासत के राजा साहिब सेन (1554-1575 ई.) के समय उनकी धार्मिक प्रवृत्ति की रानी प्रकाश देई ने संतान न होने पर बड़ा देव श्री हुरंग नारायण से प्रार्थना की कि यदि पुत्र हुआ तो वह अपने गहनों से देवता का मोहरा बनवाएगी। कहते हैं पुत्र होने पर रानी ने देवता का मोहरा बनवाया। इस बीच ब्यास नदी पर लोगों की सुविधा के लिए नाव चलवाई तथा रास्तों पर पीने के पानी की व्यवस्था की तथा बावडिय़ां इत्यादि भी बनवाईं। इसी दौरान मंडी के राजा ने रानी के कहने पर द्रंग के राणा पर हमला कर द्रंग की नमक खदानों को अपने अधीन कर लिया था।
चौहार घाटी का प्रवेश द्वार है झटिंगरी, प्राकृतिक तौर पर है बेहद खूबसूरत
झटिंगरी चौहार घाटी का प्रवेश द्वार है तथा पर्यटन की दृष्टि से यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। झटिंगरी व आसपास के क्षेत्र में देवदार, बुरांस, बान इत्यादि के घने जंगल मन को अलौकिक शांति का अनुभव कराते हैं। साथ ही इस स्थान से कुछ ही दूरी पर जहां एक तरफ खूबसूरत फूलाधार की वादियां  हैं तो दूसरी तरफ घोघर धार है, जहां से संपूर्ण चौहार घाटी के साथ-साथ जोगिन्दर नगर व पधर क्षेत्र को निहार सकते हैं।
यह ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थल मंडी-जोगिन्दर नगर-पठानकोट राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर घटासनी नामक स्थान से घटासनी-बरोट सड़क पर लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। यह स्थान उपमंडल मुख्यालय पधर से लगभग 20 किलोमीटर तथा जोगिन्दर नगर कस्बे से भी लगभग इतनी ही दूरी पर है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जोगिन्दर नगर तथा हवाई अड्डा गग्गल (कांगड़ा) है। DOP 19/02/2025
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Saturday, 15 February 2025

नाबार्ड के तहत सवा 4 करोड़ से निर्मित हुई सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क

 धार्मिक स्थल सिमस एवं नागेश्वर महादेव कुड्ड के दर्शन करने में श्रद्धालुओं को होगी सुविधा 

नाबार्ड के माध्यम से लगभग सवा चार करोड़ रूपये की लागत से सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क का निर्माण कार्य लगभग पूर्ण कर लिया गया है। इस सड़क के निर्मित हो जाने से जहां मां सिमसा के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं को एक वैकल्पिक मार्ग की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं नागेश्वर महादेव कुड्ड के दर्शन करना भी अब आसान हो जाएगा। साथ ही इस सुविधा का लाभ ग्राम पंचायत सिमस के साथ-साथ ग्राम पंचायत लडभड़ोल के ग्वैला गांव के लोगों को भी सुनिश्चित हुआ है। इस संपर्क मार्ग के बन जाने से न केवल सिमस-लडभड़ोल के मध्य दूरी कम हुई है बल्कि नागेश्वर महादेव कुड्ड के साथ-साथ मां सिमसा के दर्शन करने को एक अन्य वैकल्पिक मार्ग की सुविधा भी प्राप्त हुई है।

नाबार्ड के माध्यम से निर्मित की गई लगभग सवा तीन किलोमीटर लंबी सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क से जोगिन्दर नगर उपमंडल के लडभड़ोल क्षेत्र के दो प्रमुख धार्मिक स्थल संतान दात्री मां शारदा सिमस तथा नागेश्वर महादेव कुड्ड जहां इस सडक़ मार्ग से आपस में जुड़ गए हैं तो वहीं दोनों धार्मिक स्थलों की दूरी भी कम हुई है। साथ ही ग्राम पंचायत सिमस वासियों को जहां तहसील मुख्यालय लडभड़ोल जाने के लिए वैकल्पिक मार्ग की सुविधा मिली है तो वहीं सडक़ मार्ग का फासला भी लगभग 2 से 3 किलोमीटर कम हुआ है।

नवरात्रों में आवाजाही को नियंत्रित करने में मिलेगी मदद, सड़क से नजर आता है प्रकृति का विहंगम दृश्य 

सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क के बन जाने से जहां सिमस पंचायत के उप गांव नैल्ला को पक्की सड़क की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं सिमस से ग्वैला आना-जाना भी सुलभ हुआ है। इस सड़क का सर्वाधिक लाभ नवरात्रों के दौरान मां सिमसा के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं को मिलेगा। इस सड़क के माध्यम से न केवल वाहनों की आवाजाही को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी बल्कि जाम की स्थिति में एक वैकल्पिक मार्ग की सुविधा भी उपलब्ध रहेगी।

लगभग सवा तीन किलोमीटर इस संपर्क सड़क से गुजरते वक्त श्रद्धालु न केवल यहां के प्राकृतिक नजारों लुत्फ उठा पाएंगे बल्कि यहां से एक तरह संधोल, हारसीपतन, जयसिंहपुर, चढिय़ार, धर्मपुर इत्यादि क्षेत्र तो दूसरी तरफ बर्फ से ढकी धौलाधार पर्वत माला के मनमोहक दृश्यों को भी निहार सकेंगे। साथ ही श्रद्धालु बाबा कमलाहिया (धर्मपुर) तथा मां आशापुरी (जिला कांगड़ा) के पवित्र स्थलों को भी आसानी देख पाएंगे।

क्या कहते हैं अधिकारी: 

एसडीएम जोगिन्दर नगर मनीश चौधरी का कहना है कि संतान दात्री मां शारदा (सिमसा) इस क्षेत्र का प्रमुख धार्मिक स्थल है। मां सिमसा के लिए वैकल्पिक सड़क मार्ग की सुविधा सुनिश्चित हो जाने से जहां श्रद्धालुओं को आवाजाही के लिए अन्य सड़क की सुविधा मिलेगी तो वहीं स्थानीय लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा। 

उन्होंने कहा कि उपमंडल के सभी विभागीय अधिकारियों को सरकार की विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं को तय समय अवधि में पूर्ण करने के निर्देश दिए हैं ताकि लोगों को समयबद्ध इन विकास परियोजनाओं का लाभ मिल सके। DOP 14/02/2025








Friday, 7 February 2025

वर्षा के देवता हैं बजीर-ए-चौहार घाटी देव पशाकोट

 चौहार घाटी में विभिन्न स्थानों पर देव पशाकोट के हैं अनेक मंदिर, क्षेत्र के हैं सर्वमान्य देवता

हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की पवित्र स्थली है। यहां पर कदम-कदम पर देवी-देवताओं के अनेक पवित्र स्थान मौजूद हैं। इन देवी देवताओं के प्रति लोगों की न केवल गहरी आस्था है बल्कि वे हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा भी हैं।
मंडी जिला के पधर उपमंडल के अंतर्गत चौहार घाटी में प्रसिद्ध देव पशाकोट के अनेक पवित्र स्थान मौजूद हैं। देव पशाकोट न केवल चौहार घाटी के सर्वमान्य देवता हैं बल्कि इन्हें बजीर-ए-चैहारघाटी भी कहा जाता है। इनका पहाड़ी शैली में चौहार घाटी की ग्राम पंचायत तरस्वाण के मंठी बजगाण नामक गांव में प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर में पशाकोट देवता का रथ व भंडारगृह भी है। साथ ही चौहारघाटी के टिक्कन गांव के समीप ऊहल व थल्टूखोड़ नदी के संगम स्थल नालदेहरा में भी पहाड़ी शैली में देव पशाकोट का मदिंर बना हुआ है। इसके अलावा झटींगरी-बरोट मुख्य सडक़ पर देवता ढांक पर भी देव पशाकोट का मंदिर स्थापित है। इसके अलावा बरोट गांव के सिल्ह देहरा में भी इनका प्राचीन मंदिर स्थापित है। यही नहीं छोटा भंगाल के लोहारडी के पोलिंग गांव के समीप मराड़ में भी देव पशाकोट का प्राचीन मंदिर स्थित है, जिसे पशाकोट देवता का मूल स्थान माना जाता है। असीम प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य स्थापित देव पशाकोट के ये सभी देवस्थल श्रद्धालुओं व देव आस्था रखने वालों को आकर्षित करते हैं।
हरेे भरे विशाल घने वृक्षों से युक्त देवता के इन पवित्र स्थानों पर स्वयं के जंगल के साथ-साथ देवता की निजी भूमि भी है। इस भूमि में देवता की आज्ञा के बिना कोई भी व्यक्ति किसी भी पेड़ से लोहा भी स्पर्श नहीं करा सकता। नालदेहरा स्थित ऊहल नदी पर देवता की आल (सरोवर) भी है तथा कहा जाता है कि पुरातन समय में देव पशाकोट अपने मूल स्थान मराड़ से चलकर अंत में यहीं पर आकर रूके थे।
देव पशाकोट का है एक चोकोर रथ, प्रत्येक वर्ष रथ के साथ करते हैं मेलों व हार का भ्रमण
देव पशाकोट का एक चौकोर रथ भी है। इस चौकोर रथ के शीर्ष पर पगड़ी सुशोभित है तथा गुंबदनुमा सोने का छतर भी है। रथ के चारों और चार देव मोहरे तथा सोना, चांदी, अष्टधातु सुशोभित हैं। रथ उठाने के लिए लकड़ी की लचीली अर्गलाएं लगी है, जिन्हें स्थानीय बोली में आगल भी कहा जाता है। सफेद, पीले, लाल इत्यादि परिधान युक्त देव पशाकोट का रथ प्रत्येक व्यक्ति में आस्था का संचार करता है।
देव पशाकोट (रथ द्वारा) निश्चित किए दिनों में अनेक स्थानों की यात्राओं में जाते है, जिसमें मंडी का अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव, राज्य स्तरीय लघु शिवरात्रि मेला जोगिन्दर नगर सहित कई स्थानीय मेले जैसे गलू की जातर, माला का मेला, सायर का मेला इत्यादि शामिल हैं। देवता के साथ विभिन्न वाद्य यंत्रों वाले यथा ढोल, कांसी, तुरही, नरसिंगा, शहनाई आदि सहित गूर, पुजारी, भंडारी, ध्वजवाहक आदि लगभग 45 देवलू साथ चलते हैं। इसके अतिरिक्त देव अपनी हार की हर वर्ष एक फेरा भी लगाते हैं जिसमें श्रद्धालु अपनी मन्नतों के पूरा होने पर देवता को अपनी मन्नत व जातर देते हैं।
देवता पशाकोट को वर्षा का देवता भी माना जाता है। जब-जब क्षेत्र में सूखा पड़ता है तो लोग देवता से बारिश की मांग करते हैं। साथ ही यदि अत्यधिक बारिश होने पर भी लोग देवता की शरण में जाकर वर्षा रोकने की अरदास करते हैं। इसके अतिरिक्त भूत, व्याधि, बीमारी, चोरी-दंगा, शांक-समाधान तथा व्यक्तिगत मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी चौहारवासी देवता की शरण में जाते हैं। देवता का अपना विधान है जिसकी सभी को पालना करनी पड़ती है।
देव पशाकोट के इन विभिन्न पवित्र स्थानों पर सडक़ मार्ग के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। देव पशाकोट का पहला मंदिर पठानकोट-जोगिन्दर नगर-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर घटासनी नामक स्थान से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर देवता ढ़ांक में स्थित है। इनका दूसरा मंदिर लगभग 15 किलोमीटर दूर टिक्कन गांव के समीप नालदेहरा नामक स्थान पर स्थित है। यहां पर पहाड़ी शैली में निर्मित इनका प्राचीन मंदिर है। साथ ही यहां पर ऊहल नदी के मध्य देवता की आल (सरोवर) भी है।
इसके अलावा मंठी बजगाण गांव में भी इनका भव्य मंदिर है जहां देवता का भंडार गृह भी है। साथ ही घटासनी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी प्रसिद्ध पर्यटक स्थल बरोट के सिल्ह देहरा में भी देव पशाकोट का प्राचीन मंदिर स्थित है। कहते हैं कि इनका मूल स्थान छोटा भंगाल क्षेत्र के पोलिंग गांव के मराड़ में स्थित है जो घटासनी से लगभग 35 किलोमीटर दूर है।
श्रद्धालु जोगिन्दर नगर के साथ-साथ मंडी से घटासनी होकर भी यहां पहुंच सकते हैं। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जोगिन्दर नगर है जबकि हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है। DOP 06/02/2025




Wednesday, 22 January 2025

पानी के रूप में आज भी लोग चख रहे हैं गुम्मा (चट्टानी) नमक का स्वाद

 कभी देश भर में अपनी अलग पहचान रखता था जोगिन्दर नगर का गुम्मा नमक

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के जोगिन्दर नगर कस्बे से मंडी-पठानकोट राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर गुम्मा गांव स्थित है। गुम्मा गांव कभी गुम्मा (चट्टानी) नमक के कारण पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में भी प्रसिद्ध रहा है। गुम्मा नमक अपने स्वाद व औषधीय गुणों के चलते पूरे देश भर में लोगों को आकर्षित करता रहा है।
हिमाचल प्रदेश की बात करें तो केवल मंडी जिला के गुम्मा व द्रंग ऐसे दो स्थान हैं जहां पर चट्टानी नमक पाया जाता है। प्राचीन समय से ही लोग इसे 'गुम्मा नमक' के नाम से जानते हैं। अगर इतिहास की बात करें तो मंडी जिला का गुम्मा क्षेत्र इस चट्टानी नमक के कारण रियासतकालीन राजाओं के मध्य एक संघर्ष का कारण भी रहा है। समय-समय पर विभिन्न रियासतों ने इस प्राकृतिक खनिज संपदा को अपने अधीन करने के लिए कई युद्ध भी लड़े। लेकिन इतिहास के पन्ने बताते हैं कि गुम्मा व द्रंग नमक की यह खदानें अधिकतर समय मंडी रियासत के अधीन ही रही हैं। आजादी के बाद इन नमक खदानों को भारत सरकार ने अपने अधीन ले लिया तथा वर्ष 1963 में इन खदानों को मैसर्ज हिंदुस्तान साल्ट्स लिमिटेड को हस्तांतरित कर नमक का उत्पादन शुरू किया। नमक उत्पादन के कई वर्षों उपरान्त गुम्मा की पहाडिय़ों में एक बड़ा भू-स्खलन हुआ तथा यहां से नमक को निकालना मुश्किल हो गया। वर्तमान में गुम्मा में चट्टानी नमक तो नहीं निकाला जाता है लेकिन यहां से लगभग 35 किलोमीटर दूर द्रंग खदान से आज भी यह नमक निकाला जा रहा है।
रासायनिक विश्लेषणों में भी उतम पाया गया है गुम्मा नमक, 70 प्रतिशत से भी अधिक है नमक सामग्री
बताते चलें कि मंडी जिला के जोगिन्दर नगर व मंडी के मध्य गुम्मा व द्रंग में नमक के पहाड़ हैं तथा यहां पर प्राचीन समय से ही नमक निकाला जाता रहा है। इस संदर्भ में ग्रेड और भंडार का आकलन करने को विस्तृत भूवैज्ञानिक कार्य व ड्रिलिंग भी की गई है। ड्रिलिंग डेटा से पता चलता है कि मामूली गैर उत्पादक तत्वों को छोडक़र, जांच में पाया गया है कि पूरा क्षेत्र नमक से बना है। साथ ही किये गए रासायनिक विश्लेषणों से भी पता चलता है कि औसत नमक सामग्री 70 प्रतिशत से अधिक है और गहराई के साथ इसमें कोई नियमित परिवर्तन नहीं होता है। इसके अलावा पोटाशियम व मैग्नीशियम की मात्रा भी इसमें पाई जाती है तथा अघुलनशील अशुद्धियां केवल 21 प्रतिशत हैं। इस तरह प्रदेश का गुम्मा नमक रासायनिक विश्लेषणों में भी उत्तम पाया गया है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि प्राचीन समय से ही गद्दी समुदाय के लोग प्रतिवर्ष अपनी भेड़ बकरियों के साथ गुम्मा से गुजरते थे तथा पूरे वर्ष भर के लिए नमक यहां से लेकर जाते थे। इस नमक को न केवल वे स्वयं इस्तेमाल करते थे बल्कि मवेशियों को भी खिलाया जाता था। इसके अलावा प्रदेश के दूसरे स्थानों से भी लोग गुम्मा नमक लेने के लिए यहां पहुंचते थे। जिसका जिक्र आज भी प्रदेश की लोक कथाओं, संस्कृति व संगीत में सुनने को मिलता है।  
जहां तक गुम्मा नमक खदान की बात करें तो यहां पर नमक चट्टानी तौर पर उपलब्ध नहीं है लेकिन पानी के तौर पर आज भी गुम्मा नमक उपलब्ध है। बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों के साथ-साथ हिमाचल भ्रमण आने वाले पर्यटक इसे बोतलों व बर्तनों में भरकर ले जाते हैं। इस तरह इस ऐतिहासिक गुम्मा नमक का स्वाद आज भी लोग चख रहे हैं। DOP 23/01/2025







Wednesday, 15 January 2025

जोगिन्दर नगर के लक्ष्मण दास, भाग चंद व संजीव कुमार से सरकार ने खरीदा गोबर

गोबर समृद्धि योजना के तहत प्रदेश सरकार किसानों से 3 रुपये प्रति किलो की दर से खरीद रही है गोबर

प्रदेश की सुख की सरकार ने अपनी एक ओर गारंटी को पूरा करते हुए किसानों व पशुपालकों से 300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गोबर समृद्धि योजना के तहत गोबर खरीदना प्रारंभ कर दिया है। प्रदेश सरकार के इस महत्वपूर्ण कदम के पहले चरण में जहां प्रदेश के 100 किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से एक लाख रुपये वितरित किये हैं तो वहीं इससे जोगिन्दर नगर के सेरी गांव के तीन किसान व पशुपालक लक्ष्मण दास, भाग चंद तथा संजीव कुमार भी लाभान्वित हुए हैं।
प्रदेश सरकार ने कृषि विभाग के माध्यम से जोगिन्दर नगर के सेरी गांव निवासी लक्ष्मण दास, भाग चंद तथा संजीव कुमार से प्रति किसान क्रमश: चार, साढ़े चार व साढ़े तीन क्विंटल गोबर की खरीद की है तथा उन्हें प्रति क्विंटल 300 रुपये की दर से धनराशि उनके बैंक खातों में प्राप्त हो चुकी है। सरकार के इस अहम कदम से न केवल प्रदेश के किसानों व पशु पालकों को गोबर खरीद के माध्यम से आर्थिक लाभ सुनिश्चित हुआ है बल्कि पशु पालकों का गोबर प्राकृतिक खाद तैयार करने में भी लाभकारी सिद्ध होगा।
जब इस संबंध में लाभान्वित किसान व पशु पालक लक्ष्मण दास से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि कृषि विभाग के माध्यम से सरकार ने उनसे 4 क्विंटल गोबर खरीदा है तथा 12 सौ रुपये उनके बैंक खाते में जमा हो चुके हैं। उनका कहना है कि प्रदेश के किसानों व पशुपालकों के हित में सरकार का यह महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल उनके जैसे ग्रामीण परिवेश के किसान व पशु पालक लाभान्वित होंगे बल्कि पशुओं का गोबर प्राकृतिक खाद तैयार करने में भी लाभकारी सिद्ध होगा।
इसी तरह जोगिन्दर नगर के सेरी निवासी किसान व पशुपालक भाग चंद ठाकुर से बातचीत की उन्होंने भी सरकार द्वारा गोबर खरीद के प्रयास को सराहा। उन्होंने कहा कि इससे न केवल उनके जैसे अन्य पशुपालक भी लाभान्वित होंगे बल्कि खराब होने वाली यह देशी खाद प्राकृतिक व वर्मी कंपोस्ट तैयार करने में मददगार साबित होगी। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग के माध्यम से उनसे भी सरकार ने साढ़े चार क्विंटल गोबर खरीदा है तथा साढ़े 13 सौ रुपये उनके बैंक खाते में जमा हो चुके हैं। इसी तरह सेरी गांव के ही किसान संजीव कुमार से भी सरकार ने साढ़े तीन क्विंटल गोबर खरीदकर उन्हें एक हजार 50 रूपये प्राप्त हुए हैं।
गोबर समृद्धि योजना के तहत लाभान्वित किसानों व पशुपालकों ने प्रदेश सरकार का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार के इस निर्णय से न केवल प्रदेश के दूसरे किसान व पशुपालक लाभान्वित होंगे बल्कि खेतों को प्राकृतिक खाद भी उपलब्ध होगी। इससे न केवल किसानों को रासायनिक खाद से मुक्ति मिलेगी बल्कि खाद पर किसानों का होने वाला अतिरिक्त खर्च भी बचेगा तथा हमारी फसलें प्राकृतिक तौर पर स्वस्थ व शुद्ध तैयार हो सकेंगी।
क्या कहते हैं अधिकारी:
विषयवाद विशेषज्ञ (कृषि) पधर सोनम कुमारी ने बताया कि कृषि विभाग के जोगिन्दर नगर स्थित बीज गुणन फार्म के लिए स्थानीय तीन किसानों व पशुपालकों से सरकार की गोबर समृद्धि योजना के तहत गोबर की खरीद की है। इस योजना से लाभान्वित किसानों को सरकार ने 3 रुपये प्रति किलो की दर से गोबर को खरीदा है तथा धनराशि को सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में जमा किया जा चुका है।  
एसडीएम जोगिन्दर नगर मनीश चौधरी का कहना है कि उन्होंने सभी विभागीय अधिकारियों को प्रदेश सरकार की सभी महत्वाकांक्षी योजनाओं के व्यापक प्रचार-प्रसार करने के निर्देश जारी किये हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग सरकार की इन योजनाओं से लाभान्वित हो सकें। DOP 15/01/2025