Wednesday, 26 June 2024

हिमाचल प्रदेश के प्रथम वेटरन जर्नलिस्ट रमेश बंटा एक परिचय

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के जोगिन्दर नगर निवासी रमेश बंटा का जन्म 6 अगस्त, 1942 को जोगिन्दर नगर कस्बे से महज 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव हरा बाग में हुआ। इसके बाद इनका परिवार जोगिन्दर नगर आ गया तथा यहीं पर वर्तमान में इनका कारोबार है। रमेश बंटा वर्ष 1963-64 में उस वक्त पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ गए जब वे कॉलेज की शिक्षा ग्रहण करने डीएवी जालंधर गए थे। इस दौरान वे जालंधर में पंजाब केसरी समाचार पत्र से जुड़े कई लोगों के संपर्क में आए तथा 13 जून, 1965 को पंजाब केसरी के पहले प्रकाशन में भी शामिल रहे। इसके उपरांत वे पंजाब केसरी समाचार पत्र से जुड़ गए तथा वर्तमान समय तक वे पंजाब केसरी समाचार पत्र से जुड़े हुए हैं।

इसके अलावा उन्होंने वीर प्रताप, हिंदी मिलाप जैसे समाचार पत्रों के लिए भी समय-समय पर लेखन करते रहे। उन्होंने शिमला से निकलने वाले समाचार पत्र हिमालय टाईम्स के साथ भी कार्य किया। पत्रकारिता क्षेत्र में 50 वर्ष का सफर पूरा कर चुके रमेश बंटा हिमाचल प्रदेश के प्रथम वेटरन जर्नलिस्ट भी हैं। वर्ष 2012 को प्रदेश सरकार ने उन्हें वेटरन जर्नलिस्ट का दर्जा प्रदान किया हुआ है। इसके अलावा वे पंजाब केसरी समाचार पत्र के वर्ष 1965 से सरकारी मान्यता प्राप्त पत्रकार भी हैं।

रमेश बंटा ने प्रदेश के प्रथम मुख्य मंत्री डॉ.वाई.एस. परमार के साथ प्रदेश का भ्रमण भी किया तथा पत्र-पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में प्रदेश के विकास, सांस्कृतिक पहचान तथा विभिन्न राजनैतिक पहेलुओं पर विस्तृत लेख भी लिखे। रमेश बंटा वर्ष 1991 से 1993 तक हिमाचल सरकार प्रेस एक्रीडडेशन कमेटी के गैर सरकारी सदस्य भी रहे। उन्हें समय-समय पर विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया गया। जिसमें वर्ष 1986 में ऊना की हिमोत्कर्ष संस्था द्वारा हिमाचल पुरस्कार, वर्ष 1999 में महामहिम दलाई लामा द्वारा कलम के सिपाही पत्रकारिता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। इसके अलावा पानीपत की संस्था जैमिनी अकादमी द्वारा इन्हें आचार्य की मानद उपाधि भी तथा शताब्दी रतन सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। धर्मशाला के हिमाचल केसरी संस्थान द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में अहम योगदान देने के लिए हिमाचल केसरी सम्मान से भी सम्मानित किया है। हिमाचल सरकार द्वारा वर्ष 2012 में रमेश बंटा को प्रदेश का पहला वेटरन जर्नलिस्ट का दर्जा प्रदान किया है।

रमेश बंटा को वर्ष 2015 में पंजाब केसरी समाचार समूह द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में 50 वर्ष का योगदान प्रदान करने के लिये भी इन्हे सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा विकासात्मक पत्रकारिता में योगदान देने के लिए भी इन्हे जिला स्तर पर सरकार की ओर से सम्मानित किया जा चुका है। रमेश बंटा लगभग 18 वर्षों तक प्रेस क्लब जोगिन्दर नगर के प्रधान भी रहे।

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Wednesday, 5 June 2024

विश्व पर्यावरण दिवस पर कुछ चिंतन कुछ प्रश्न

5 जून प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य भी पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाना है। ऐसा नहीं है कि इस तरह का आयोजन हम पहले नहीं करते आए हैं बल्कि यह सिलसिला कई वर्षों से अनवरत जारी भी है। बावजूद इसके हमारा पर्यावरण लगातार कमजोर हो रहा है, नतीजा जहां धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है तो वहीं बढ़ते तापमान के कारण हमें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। 

बात केवल मनुष्य तक की सीमित होती तो ठीक था लेकिन पर्यावरण क्षरण का असर धरती के प्रत्येक जीव जंतु को चुकाना पड़ रहा है। आलम तो यह है कि प्रतिवर्ष जीवन दायिनी जंगल धू-धू जलते हैं। अनमोल वन संपदा जलकर नष्ट हो जाती है। कई जंगली जीव जंतुओं को अपना आशियाना या फिर अपने जीवन तक से हाथ तक धोना पड़ रहा है। जिसका नतीजा तो यह है कि न केवल हमारा पारिस्थतिकी तंत्र लगातार प्रभावित हो रहा है बल्कि कई जीव जंतुओं के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिंह लग रहा है। आखिर जंगलों में आग लगाने वाले वे कौन से मनुष्य हैं? कौन सी दुनिया से यहां आते हैं तथा वे ऐसा कौन सी वायु लेते हैं? जिनके लिए हमारा वास्तविक पर्यावरण कोई महत्व ही नहीं रखता है। 

हो सकता है जंगलों को नष्ट करने वाले लोग अलग मिट्टी, हवा या पानी से बने हों जिनके लिए हमारे वास्तविक जंगल कोई अहम स्थान न रखते हों। अगर ऐसा नहीं है तो क्या हम इतने कमजोर, निर्दयी व स्वार्थी हो गए हैं कि हम जंगलों को आग के हवाले करने से गुरेज भी नहीं करते हैं। क्या हम इतने ताकतवर हैं कि हमे कोई डरा भी नहीं सकता है? लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए की स्वार्थवश जंगलों को नष्ट करने वाला मनुष्य यह शायद भूल कर बैठता है कि इस धरती को चलाने वाला कोई ओर नहीं बल्कि खुद प्रकृति है। जिसके आगे मनुष्य महज एक खिलौना है। प्रकृति ने समय-समय पर हम मनुष्यों को सचेत भी किया है लेकिन हमारी बुद्धि इतनी कमजोर है कि हम चंद दिनों या फिर महीनों में प्रकृति के दिये दंश को भूलकर पुन: पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से गुरेज नहीं करते हैं। 

पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज केवल यही कहना है कि यदि हमने आज प्रकृति को नहीं बचाया तो कल हम भी नहीं बचेंगे। पर्यावरण के प्रति हमारा उदद्ेश्य महज चंद पेड़ लगा देना या फिर पर्यारवरण जागरूकता के प्रति भाषण दे देना या फिर चंद पंक्तियों को लिख देना मात्र नहीं है। पर्यावरण बचाने के लिए इस धरती के प्रत्येक व्यक्ति को अपना कुछ न कुछ सहयोग अवश्य देना होगा। सर्व प्रथम तो हमें अपने आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा रखने की दिशा में प्रयास करने होंगे। पौध रोपण करने के साथ-साथ उनका संरक्षण व पोषण करने की जिम्मेदारी लेनी होगी। 

हम जब कभी भी पर्यटन की दृष्टि से प्राकृतिक स्थानों का भ्रमण करने जाते हैं तो कूड़ा-कचरे को इधर उधर फैलाने के बजाए सही तरीके से नष्ट करने की दिशा में कार्य करना होगा।  पेयजल स्त्रोतों को गंदा करने से बचाना होगा। प्लास्टिक व ऐसे किसी सामान के उपयोग से बचना होगा जो सीधे हमारे पर्यावरण को प्रभावित करता है। जंगलों को आग से बचाने के लिए हमें स्वयं एक जागरूक नागरिक होने के नाते प्रयास करने होंगे। याद रखें यदि हम स्वार्थ की हांडी से जल्दी बाहर नहीं निकले तो आने वाला हमारा कल कैसा होगा इसकी कल्पना भी हमें कर ही लेनी चाहिए। आओ पर्यावरण दिवस के अवसर पर हम सब इस धरती को प्रदूषण से मुक्त करने की दिशा में प्रयास करें। 

याद रखें हमारी धरती सुरक्षित रहेगी तभी तो हम भी सुरक्षित रह सकते हैं। एअर कंडीशनर की हवा तथा सिलेंडर की ऑक्सजीन हमें कब तक जिंदा रख सकती है ये सब हमने करोना महामारी के दौरान जान ही लिया है। तो चलो पर्यावरण दिवस के अवसर पर हम सब धरती के संरक्षण का संकल्प लें ताकि कल हमारा सुरक्षित रह सके। 

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