दोस्तों आज मैं सुबह जैसे ही उठा तो मेरी नन्ही सी बिटिया अपने छोटे-छोटे हाथों से एक सुंदर सा कार्ड बनाने में जुटी हुई थी। मैंने उससे पूछा कि यह क्या बना रही हो? तो उसने कहा कि आज शिक्षक दिवस है और मैं अपनी प्रिय अध्यापिका को अपने हाथों से बनाया हुआ एक कार्ड गिफ्ट करना चाहती हूं। जब उसने हैप्पी टीचर डे का वह सुंदर सा कार्ड बना लिया तो बिटिया ने कहा कि यह अच्छा नहीं बना है मैं दूसरा बनाना चाहती हूं लेकिन मैंने कहा कि इसे ही सुंदर बनाने में मैं आपकी मदद करता हूं। लेकिन अब यहां पर बात कार्ड के सुंदर या अच्छा होने की नहीं है बल्कि विद्यार्थी की अध्यापक के प्रति वह भावना है जिसे हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते हैं।
दोस्तों आज राष्ट्रीय शिक्षक दिवस है, नि:संदेह सर्वप्रथम आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। दोस्तों मुझे भी बतौर शिक्षक विभिन्न शिक्षण संस्थानों में स्कूल से लेकर कॉलेज स्तर तक कार्य करने का मौका मिला है। इस दौरान शिक्षा प्राप्त किए हुए विधार्थी आज हमारी सामाजिक व्यवस्था में डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासक, सैनिक, वकील, शिक्षक सहित विभिन्न व्यवसायों में अपनी प्रतिभा के झंडे भी गाड रहे हैं। लेकिन बतौर अध्यापक मुझे जो अनुभव मिला, जो बस इतना ही बता रहा है कि कहीं न कहीं हमारी शिक्षा प्रणाली जीवन के वास्तविक लक्ष्यों व उद्देश्यों से भटकती हुई महसूस की है। हमारी शिक्षा में गौण होते मूल्य, आदर्श, नैतिकता तथा गिरती गुणवत्ता। नई शिक्षा नीति में इस दिशा में प्रयास जरूर शुरू हुए हैं, लेकिन नतीजे आने से पहले कुछ कहना जल्दबाजी होगा। हकीकत हो यह हो गई है कि डिग्रीयों व अंकों के मकडज़ाल में फंसी हमारी शिक्षा अब व्यापारिक लोगों के लिये फायदे का सौदा भी साबित हो रही है।
मुझे लगता है कि आज सर्वप्रथम शिक्षकों के चयन प्रक्रिया पर गंभीर होना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए की शिक्षण के माध्यम से केवल कुछेक लोगों को रोजगार देना मात्र नहीं है, बल्कि देश के करोड़ों बच्चों के साथ-साथ देश का भविष्य निर्माण भी जुड़ा हुआ है। आज हमें कागज़ी पहलवानों से अधिक दिन-रात अपने विद्यार्थियों व समाज के लिए समर्पण की भावना से कार्य करने वालों की ज्यादा जरूरत है। हमें तो वह चाहिए जो हम सबमें सर्वश्रेष्ठ हो। जो समर्पण, त्याग व उच्च मूल्यों व परंपराओं से भरा हो। ऐसा भी नहीं है कि हमारे पास ऐसे शिक्षक नहीं है। हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग हैं जो अभी भी अपने मिशन पर निस्वार्थ भाव से लगे हुए हैं। लेकिन ऐसे लोगों को या तो हमारी नजरें ढूंढ ही नहीं पाती या फिर हम इस चमक-धमक व जुगाड भरी दुनिया में उन्हे तलाशना ही नहीं चाहते। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि निस्वार्थ भाव से देश सेवा में लगे ऐसे लोग स्वाभिमान व आत्म सम्मान से भरे होते हैं।
दूसरा विद्यार्थियों को जीवन में जीवन यापन के लिए तैयार तो करना ही है, लेकिन उससे कहीं अधिक उनके भीतर एक इंसानियत का पाठ भी पढ़ाना बेहद जरूरी हो जाता है। आज हम अक्सर देखते हैं कि व्यक्ति जीवन में धन दौलत, ऊंचा पद इत्यादि सब कुछ पा लेता है, लेकिन स्वार्थ भावना से पीडि़त ऐसे व्यक्ति देश व समाज के लिए गौण साबित होने पर हमारी शिक्षा पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाता है?
तीसरा व अहम पहेलु देश में चल रही विभिन्न प्रकार की स्कूली शिक्षा से है। एक ऐसी स्कूली शिक्षा प्रणाली पर आगे बढऩा होगा जिसमें व्यक्ति अमीरी और गरीबी, उच्च या नीच, धर्म, जाति या संप्रदाय के आधार पर विभक्त ना होकर केवल एक विद्यार्थी के नाते शिक्षा ग्रहण करे।
मुझे लगता है कि राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के अवसर पर देश का एक आम नागरिक होने के नाते हमें शिक्षक और शिक्षा से जुड़े ऐसे कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार मंथन करना चाहिए जो भविष्य में राष्ट्र निर्माण में अहम कड़ी साबित हो सकते हैं। लेकिन अंत में यही प्रश्न खड़ा हो जाता है कि क्या इन संवेदनशील बातों पर चर्चा व मंथन करने के लिए हमारा समाज तैयार है?