Wednesday, 17 May 2023

मौसम की देवी के रूप में पूजी जाती है रोपड़ी गांव स्थित मां सुरगणी

 ऊंची चोटी पर स्थित है मां सुरगणी का भव्य मंदिर, आसपास प्रकृति का दिखता है विहंगम नजारा

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत रोपड़ी कलैहडू के गांव रोपड़ी में मां सुरगणी का भव्य मंदिर मौजूद है। यह मंदिर ऐहजू-बसाही सडक़ के साथ रोपड़ी गांव में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर मुख्य सडक़ से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर संपर्क सडक़ से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर से जोगिन्दर नगर, चौंतड़ा, बीड़-बिलिंग इत्यादि क्षेत्रों के साथ-साथ हिमाच्छादित धौलाधार पर्वतमाला का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है। साथ ही मंदिर के दूसरी ओर लडभड़ोल क्षेत्र तथा भभौरी धार  का भी खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। मंदिर प्रांगण में पहुंचते ही जहां मन को एक अलौकिक शांति का अनुभव होता है तो वहीं यहां की मंद-मंद बहती ठंडी हवा का स्पर्श, शरीर में एक नई तरह की ताजगी, उमंग एवं आध्यात्म का प्रवाह महसूस होता है।
कहा जाता है कि मां सुरगणी को पुराने समय से ही मौसम की देवी के रूप में पूजा जाता रहा है। कहते हैं कि जब कभी भी अत्यधिक वर्षा या अनावृष्टि होती थी तो स्थानीय लोग मनौती के रूप में मां सुरगणी को बकरी की बली देते थे। ऐसा करने से लोगों की मन्नत पूरी हो जाती थी। परन्तु वर्तमान समय में बलि प्रथा को बंद कर कड़ाह-प्रसाद व पकौनियों की प्रथा को शुरू किया गया है तथा अब लोग मनौती के लिए मां को कड़ाह-प्रसाद व पकौनियां चढ़ाते हैं।
कहते हैं कि पुरातन समय में मां सुरगणी पिंडी रूप में दो पत्थरों के बीच एक शिला में विराजमान थी। कहते हैं कि वर्ष 1985 को स्थानीय निवासी गुरी सिंह को मां ने स्वपन के माध्यम से पिंडी स्थान पर मंदिर निर्माण करने को कहा। ऐसे में यहां पर एक छोटा सा मां का मंदिर निर्मित किया गया। वर्तमान में यहां पर मां का एक बड़ा मंदिर स्थापित किया गया है। साथ ही शिव व शनि मंदिरों का भी निर्माण किया है। स्थानीय एवं मां सुरगणी के प्रति गहरी आस्था रखने वाले लोगों के सहयोग से मंदिर परिसर को लगातार विकसित किया जा रहा है।
मंदिर परिसर विकास के लिए मंदिर कमेटी सुरगणी का गठन किया गया है तथा मेघ सिंह चौहान कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष हैं। मंदिर कमेटी के समन्वयक रोशन लाल ठाकुर ने बताया कि मंदिर कमेटी ने दो मंजिला सत्संग भवन निर्माण करवाने का भी निर्णय लिया है। जिसके लिए मां के प्रति आस्था रखने वाले लोग मंदिर कमेटी को अपना सहयोग प्रदान कर सकते हैं।
मंदिर में चैत्र नवरात्र के दौरान अष्टमी व नवमी को भव्य मेले का आयोजन कर भंडारा इत्यादि भी आयोजित किया जाता है। साथ ही चैत्र नवरात्रि के दौरान सरस्वती पाठ भी करवाया जाता है।
कैसे पहुंचे मां सुरगणी के मंदिर:
मां सुरगणी के इस पवित्र स्थान तक पहुंचने के लिए कई सडक़ मार्ग उपलब्ध हैं। विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग साइट बीड़-बिलिंग से वाया ऐहजू यह स्थान लगभग 12 किलोमीटर, लडभड़ोल से वाया रोपड़ी भी लगभग 12 किलोमीटर, जोगिन्दर नगर से वाया टिकरू-मोरडुग-रोपड़ी भी लगभग 12 किलोमीटर, बसाहीधार से भी लगभग 12 किलोमीटर तथा मछयाल से वाया बल्ह भी लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सरकाघाट की ओर से आने वाले श्रद्वालु वाया बसाहीधार, पालमपुर बैजनाथ की ओर से आने वाले श्रद्धालु वाया ऐहजू, मंडी की ओर से आने वाले श्रद्धालु वाया जोगिन्दर नगर यहां पहुंच सकते हैं। मंदिर परिसर तक पक्की सडक़ बनी हुई है।






Tuesday, 9 May 2023

पांडवों ने वनवास काल के दौरान निर्मित किया था मां चतुर्भुजा का मंदिर

 संतान प्राप्ति को निसंतान महिलाएं करती हैं मौन जागरण, आंखों की रोशनी को लोग मांगते हैं मन्नत

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर सिकंदर धार की उंची चोटी पर मां चतुर्भुजा का पवित्र स्थान मौजूद है। इस मंदिर के प्रति लोगों की गहरी आस्था है तथा प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु मां के दर्शनार्थ इस पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं। निसंतान दंपति मां के दरबार में हाजरी लगाकर नवरात्रों में संतान प्राप्ति को निसंतान स्त्रियां मौन जागरण करती हैं। साथ ही जिन भक्तों की आंखों की रोशनी चली जाती है वे मां से आंखों की रोशनी की मन्नत मांगते हुए मां को चांदी की आंखें चढ़ाते हैं। इस तरह मां चतुर्भुजा के प्रति श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है तथा मां भी अपने भक्तों को निराश नहीं करती है।


प्राकृतिक तौर पर भी यह स्थान बेहद खूबसूरत है। इस मंदिर की पहाड़ी के एक ओर जहां चील के घने पेड़ मौजूद हैं तो दूसरी तरफ घने बान, काफल इत्यादि के जंगल हैं। इस स्थान से चारों ओर दूर-दूर तक का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है। एक तरफ खूबसूरत बर्फ से ढक़ी धौलाधार पर्वत श्रृंखला का नजारा देखने को मिलता है तो दूसरी तरफ ब्यास नदी के उस पार धर्मपुर, संधोल इत्यादि क्षेत्रों का नजारा भी कम खूबसूरत नहीं होता है। यहां आकर मानसिक रूप से आलौकिक शांति का अनुभव होता है।

पांडवों ने वनवास के समय निर्मित किया था मां का मंदिर
कहते हैं कि जोगिन्दर नगर उपमंडल की सुरम्य सिकंदर धार की लगभग 6 हजार फीट ऊंची चोटी पर पांडवों ने वनवास काल के समय इस मंदिर का निर्माण किया था। पांडव वनवास के समय जब इस स्थान से गुजर रहे थे तो मां शेरांवाली ने उन्हे इस खूबसूरत चोटी पर दर्शन दिये थे। मां ने पांडवों से सर्व कल्याण के लिए इस स्थान पर मंदिर निर्माण करने को कहा तथा पांडवों ने पिंडी रूप में यहां माता की स्थापना की। कहते हैं उस समय पांडवों ने मंदिर के ऊपर मोटे-मोटे पत्थरों की छत बनाकर इस मंदिर का निर्माण किया था।

वर्ष 1905 के भूकंप के दौरान ध्वस्त हुआ मंदिर, राजा जोगिन्द्रसेन ने 1948 में करवाया निर्माण

वर्ष 1905 को कांगड़ा घाटी में आए प्रलयकारी भूकंप के दौरान यह मंदिर भी ध्वस्त हो गया था तथा मंदिर का केवल गर्भ गृह ही बचा था। सन 1948 को मंडी रियासत के राजा जोगिन्द्रसेन ने पुन: इस मंदिर का निर्माण करवाया था। वर्तमान में इस मंदिर में मां चतुर्भुजा की भव्य मूूर्ति विराजमान है। इसके अलावा मंदिर परिसर में हनुमान जी बड़ी मूर्ति, शिव पार्वती मंदिर, नवग्रह मंदिर, राधा कृष्ण के छोटे-छोटे मंदिर भी स्थापित हैं।

नाग पंचमी को देवताओं-डायनों के युद्ध का बताते हैं परिणाम, लागत पर लगे लोगों की सूची होती है जारी

मां चतुर्भुजा के दरबार में प्रति वर्ष तीन मेलों का आयोजन किया जाता है। जिनमें पहला मेला बैसाखी को लगता है, दूसरा नाग पंचमी को तथा तीसरा मेला लोहड़ी के अवसर आयोजित होता है। नाग पंचमी को आयोजित होने वाले मेले का अपना ही एक महत्व है। इस दिन मां चतुर्भुजा पुजारी के माध्यम से पूछ द्वारा पधर के घोघर धार में पुरातन समय से ही होने वाले देवताओं व डायनों के युद्ध का परिणाम बताती है। लोककथानुसार प्रति वर्ष मंडी जिला की घोघर धार में प्राचीन काल से देवताओं व डायनों के बीच लगभग एक सप्ताह तक डायना पार्क में यह युद्ध लड़ा जाता है। मां चतुर्भुजा पुजारी के माध्यम से इस युद्ध की हार व जीत का परिणाम सार्वजनिक करती है तथा युद्ध के दौरान उपमंडल के जो लोग, पशु, जमीन इत्यादि लागत पर लगाए होते हैं उनकी सूची भी जारी की जाती है।

मंदिर विकास को 1982 में गठित हुई मंदिर सुधार कमेटी, श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं का हुआ विकास
मंदिर विकास एवं श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं विकसित करने को लेकर वर्ष 1982 में क्षेत्रवासियों ने माता चतुर्भुजा सुधार कमेटी का गठन किया। इस कमेटी के माध्यम से मंदिर विकास के विभिन्न कार्यों को निरन्तर आगे बढ़ाया जा रहा है। वर्तमान में मंदिर परिसर में जहां श्रद्धालुओं के लिए जागरण इत्यादि के लिए एक बड़ा हॉल निर्मित किया गया है तो वहीं ठहरने की भी उचित व्यवस्था मौजूद है। लंगर के लिए एक बड़े लंगर हॉल का निर्माण किया गया है। साथ ही मंदिर ही ओर आने वाले रास्ते को बेहतर बनाया गया है तथा इस पर छत का निर्माण किया गया है। मंदिर सौदर्यीकरण को बढ़ावा देते हुए रास्ते में जगह-जगह बैठने के लिए बैंच, पेयजल की सुविधा तथा शौचालयों का भी निर्माण किया गया है।

कैसे पहुंचे मां चतुर्भुजा के दरबार:
मां चतुर्भुजा का यह पवित्र स्थान उपमंडल मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर सडक़ मार्ग से जुड़ा हुआ है। जोगिन्दर नगर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु बस व रेल के माध्यम से पहुंच सकते हैं। जोगिन्दर नगर से पठानकोट, चंडीगढ़, दिल्ली, लुधियाणा, अमृतसर इत्यादि स्थानों के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। साथ ही रेल के माध्यम से भी वाया पठानकोट, पालमपुर, बैजनाथ होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर परिसर में ही सराय इत्यादि की व्यवस्था है। साथ जोगिन्दर नगर व आसपास कई सरकारी विश्राम गृहों के साथ-साथ निजी होटल भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा श्रद्धालु होम स्टे में भी रूक सकते हैं।




Monday, 1 May 2023

जयसिंहपुर के आलमपुर से पिंडी रूप में आए हैं गरोडू स्थित बाबा बालक रूपी

मंडी व कांगड़ा जनपद के लोगों की है कुलज, प्रतिवर्ष हजारों लोग पहुंचते हैं दर्शनार्थ

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर के गरोडू स्थित बाबा बालक रूपी कांगड़ा जिला के जयसिंहपुर क्षेत्र के आलमपुर के गांव जांगल के समीप से पिंडी रूप में यहां आए हैं। बाबा बालक रूपी गरोडू मंडी व कांगड़ा जनपद के लोगों की कुलज भी है तथा प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु बाबा जी के दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं। बाबा बालक रूपी के इस पवित्र दरबार में जहां लोग अपने बच्चों के मुंडन संस्कार के लिए पहुंचते हैं तो वहीं घर में हुए मुंडन संस्कार के बाद बच्चों के बाल भी चढ़ाते हैं। इस मंदिर का इतिहास मंडी रियासत काल से ही जुड़ा हुआ है।
स्थानीय जानकार बताते हैं कि काफी समय पूर्व इस क्षेत्र के कस गांव की एक महिला बाबा बालक रूपी की सेवा के लिए जयसिंहपुर क्षेत्र के आलमपुर के समीप जांगल गांव में स्थित मंदिर में जाया करती थी। महिला के वृद्ध होने के चलते उसने बाबा बालक रूपी से क्षमा मांगते हुए कहा कि बुढ़ापे के कारण अब वह सेवा करने के लिए यहां नहीं आ सकती है। कहते हैं कि स्वप्र में बाबा बालक रूपी ने महिला से कहा कि वह एक पत्थर पिंडी से स्पर्श कर ले जाए तथा इसकी पूजा करे। बाबा ने महिला से कहा कि वह इस स्पर्श किये हुए पत्थर को रास्ते में कहीं भी धरती पर न रखे अन्यथा उसी स्थान पर स्थापित हो जाएगा। स्वप्न अनुसार उस महिला ने एक पत्थर को बाबा बालक रूपी की पिंडी से स्पर्श कर उसे लेकर अपने घर कस की ओर चल पड़ी। कहते हैं कि जब वह गरोडू स्थित वर्तमान बाबा बालकरूपी मंदिर वाले स्थान पर पहुंची तो वह शौचालय के लिए रूकी। इस बीच उस महिला ने स्पर्श किये हुए पत्थर को एक चट्टान पर रख दिया। उस समय इस स्थान पर घना जंगल हुआ करता था। जैसे ही वह महिला शौचालय करने के बाद उस पत्थर को उठाने लगी तो वह इसे उठाने में असमर्थ रही तथा इसी स्थान पर स्थापित हो गया। वह चट्टान आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है।

कहते हैं कि इसी बीच बाबा बालक रूपी ने तत्कालीन मंडी रियासत के राजा को स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा कि राजन मैं आपकी रियासत में पहुंच चुका हूं तथा मेरा वहां एक मंदिर बनवाओ। तब राजा ने यहां पर एक छोटा सा मंदिर बनवाया तथा मंडी रियासत के साथ-साथ कांगड़ा जनपद के लोगों के कुल देवता (कुलज) के रूप में प्रसिद्ध हुए। कहते हैं कि रियासत काल में ही लोगों की सुविधा के लिए तत्कालीन राजा ने गरोडू स्थित बाबा के मंदिर से एक पत्थर स्पर्श कर उसे मंडी में भूतनाथ गली में भी स्थापित कर वहां मंदिर का निर्माण करवाया है। लोग कुलज के रूप में इन्हे वहां भी पूजते हैं तथा कई लोग अभी भी गरोडू में आना पसंद करते हैं।

स्थापना के समय से ही सरकारी नियंत्रण में रहा है यह मंदिर
इस मंदिर की अहम बात यह है कि अपनी स्थापना के समय से ही सरकारी नियंत्रण में रहा है। रियासत काल में यह मंदिर राजा के अधीन रहा जबकि स्वतंत्रता के बाद सीधे सरकारी नियंत्रण में आ गया। वर्तमान में एसडीएम जोगिन्दर नगर इस मंदिर कमेटी के अध्यक्ष हैं।
आषाढ़ महीने में होते हैं शनिवार के मेले, शिवरात्रि पर शिव महापुराण कथा होती है आयोजित
बाबा बालक रूपी मंदिर में आषाढ़ व मार्गशीर्ष माह में शनिवार मेलों का आयोजन होता है। शिवरात्रि पर्व के अवसर पर महाशिवपुराण कथा भी आयोजित की जाती है। महाशिवपुराण कथा का आयोजन पिछले लगभग 25 वर्षों से निरन्तरता में किया जा रहा है। इसके अलावा शिवरात्रि पर्व के मौके पर झांकी भी निकाली जाती है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
मंदिर समिति के अध्यक्ष एवं एसडीएम जोगिन्दर नगर कृष्ण कुमार शर्मा का कहना है कि मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कई तरह की सुविधाएं जुटाई गई हैं। मंदिर में लंगर या भंडारा लगाने के लिए एक बड़े हॉल का निर्माण किया गया है। साथ ही श्रद्धालुओं के ठहरने को चार कमरे भी निर्मित किये गए हैं। जिनमें शौचालय एवं किचन की सुविधा उपलब्ध है। मुंडन संस्कार के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा को लेकर जहां तीन नए शौचालय निर्मित किये हैं तो वहीं गिजर के साथ बाथरूम की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पार्किंग स्थल को भी बेहतर बनाया गया है तथा मेला आयोजन के लिए मेला ग्राउंड का भी निर्माण किया गया है। इसके अतिरिक्त मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण भी किया गया है।

कैसे पहुंचे बाबा बालकरूपी मंदिर:
बाबा बालक रूपी मंदिर जोगिन्दर नगर बस स्टैंड से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जोगिन्दर नगर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु बस व रेल के माध्यम से आ सकते हैं। जोगिन्दर नगर सीधे रेल नेटवर्क के साथ जुड़ा हुआ है तथा वाया पठानकोट, पालमपुर  बैजनाथ होकर यहां पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा पठानकोट, कांगड़ा, धर्मशाला, बैजनाथ, मंडी इत्यादि स्थानों से भी सीधे सडक़ मार्ग से पहुंचा जा सकते हैं। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है।