Sunday, 20 February 2022

तीन नदियों का पवित्र संगम स्थल है त्रिवेणी महादेव

जोगिन्दर नगर उपमंडल मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पवित्र धार्मिक स्थान त्रिवेणी महादेव। तीन नदियों ब्यास, बिनवा तथा गुप्त गंगा (क्षीर गंगा) के मिलन स्थल को ही त्रिवेणी महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां पर जो शिवलिंग स्थापित है वो स्वयंभू शिवलिंग है जो अपने आप धरती से निकला है। हमारे पुराणों में एवं सनातन धर्मशास्त्रों में इसकी बड़ी व्याख्या की गई है। माना जाता है कि इस पवित्र स्थान का इतिहास लगभग तीन सौ वर्ष से अधिक पुराना है।

त्रिवेणी महादेव मंदिर का इतिहास

इस पवित्र धार्मिक स्थान से जुड़े इतिहास की चर्चा करें तो माना जाता है कि आज से करीब तीन सौ वर्ष पहले मण्डी रियासत के वजीर कर्म सिंह के कोई सन्तान नहीं थी जिसके लिए उन्होंने कई यज्ञ व अनुष्ठान किए। इसके पश्चात् उन्हें स्वपन में आदेश हुआ कि बैजनाथ से नीचे जहां पर ब्यास नदी व बिनवा नदी मिलती है उस स्थान पर जाइए। उसी संगम स्थल के ऊपर एक गुुफा है जिसमें एक महात्मा जी रहते हैं, वे महात्मा जी ही आपको सन्तान दे सकते हैं। वजीर अपने कर्मचारियों को साथ लेकर गुुुुफा में पहुंचे तथा महात्मा जी के दर्शन करके उनसे सन्तान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की। महात्मा जी ने उन्हें साफ इन्कार कर दिया कि तुम्हारा पिछला जन्म जो था वह अच्छा नहीं था, इसलिए तुम्हें सन्तान प्राप्ति नहीं होगी। मगर वजीर को पूर्ण विश्वास था कि महात्मा जी के आशीर्वाद से सन्तान प्राप्ति हो सकती है।

तब वजीर अपने कर्मचारियों के साथ उसी गुुफा के सामने एक तंबू लगाकर बैठ गये। उस जमाने में वजीरों का बहुत बोलबाला होता था, जिसकी वजह से दूर-दूर गांव से लोग आने लगे। इसी प्रकार जब सात-आठ दिन बीत गये तो महात्मा जी गुफा से निकले और वजीर से बोले कि तुम यहां पर इतना शोरगुल क्यों कर रहे हो? मेरी साधना में बाधा हो रही है। वजीर महात्मा जी से प्रार्थना की कि महाराज जी आपके आशीर्वाद से ही मुझे सन्तान प्राप्ति होगी, यह मुझे पूर्ण विश्वास है। महात्मा जी बोले ठीक है आपको सन्तान प्राप्ति होगी या नहीं यह मैं कल सुबह बताउंगा। 

इसके पश्चात जब दूसरे दिन महात्मा जी गुफा से बाहर निकले तो वजीर ने जाकर उन्हें प्रणाम किया तब महात्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि मैं तुम्हें दो सन्तान प्राप्ति के लिए अशीर्वाद देता हूँ। मगर भगवान स्वयं यहां प्रकट होना चाहते हैं। उनके लिए दिव्य मंदिर यहां पर बनाना होगा। वजीर के पास धन की कोई कमी नहीं थी, उन्होनें उसी समय राजमहल में आदमी भेजकर उस जमाने के चान्दी के सवा लाख सिक्के मंगवाकर महात्मा जी के चरणों में रख दिये और महात्मा जी से आग्रह किया कि आप मंदिर बनाइये व सन्तान प्राप्ति का आशीर्वाद दीजिए। वर्तमान में जिस स्थान पर शिवजी का मंदिर है उस स्थान पर पुराने वक्त में ब्यास नदी का स्वरूप अत्यंत भयंकर होता था। ऐसे में एक तरफ ब्यास नदी तो दूसरी तरफ पहाड़ होने से वहां पर मंदिर का निर्माण करना मुश्किल था। ऐसा देखते हुए लोग जब आगे बढ़े तब उन्हें नजऱ आया कि नीचे नदी किनारे एक काली गाय खड़ी है। उसके स्तनों से दूध अपने आप बह रहा था। वह गाय ब्यास नदी तैर कर आई हुई थी। तब महात्मा जी बोले कि भगवान यहीं पर होंगे, जब वहां से मिट्टी हटाई तो जो शिवलिंग अभी मंदिर में है उसके दर्शन हुए। 

तब महात्मा जी ने वहां पर मन्दिर का काम शुरू करवाया। आज जितनी चिनाई करते कल वह शिवलिंग उतना ही ऊपर आ जाता। यह सारा वृतांत देखकर महात्मा जी बड़े आश्चर्य चकित हुए और उन्होंने वहां पर एक हवन यज्ञ किया। हवन होने के पश्चात् महात्मा जी को भारी जनसमूह के सामने भविष्यवाणी हुई कि जब तक मैं स्थिर न हो जाऊं तब तक मंदिर का निर्माण नहीं करना। इसी प्रकार चिनाई के साथ साथ शिवलिंग भी ऊपर आता गया। शिवलिंग के स्थिर होने के बाद मंदिर का निर्माण किया गया। 

एक साल बाद वजीर के घर जो लडक़ा हुआ उसके पांच साल के होने तक मंदिर बनकर तैयार हो गया। बाद में उसी लडक़े से मंदिर की प्रतिष्ठा कराई गई। मन्दिर के एक तरफ ब्यास नदी, दूसरी तरफ बिनवा नदी तथा शिवलिंग के नीचे से एक गुप्त गंगा (क्षीर गंगा) बहती है। जिसका पानी गंगा नदी की तरह ही पवित्र माना जाता है। इन्हीं तीन नदियों के संगम के कारण इस मंदिर का नाम त्रिवेणी महादेव पडा़। शिखर मण्डलीय शैली में बना यह भव्य एवं प्राचीन मन्दिर नींव से लगभग 50 फुट ऊंचाई पर बना हुआ है।

वर्तमान में मुख्य मंदिर के आसपास दूसरे छोटे मंदिर भी स्थापित किये गए हैं जिनमें श्री गणेज जी, हनुमान जी, शनि महाराज, मां बगुलामुखी, बाबा बालक नाथ, राधा-कृष्ण मंदिर, नवग्रह, देवी शक्ति इत्यादि शामिल हैं। श्रद्धालु प्राचीन गुफा के भी दर्शन कर सकते हैं जो मुख्य मंदिर से महज 100 या 150 मीटर की दूरी पर है। इस मंदिर का संचालन मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा किया जा रहा है। महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर यहां पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।

प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी कम खूबसूरत नहीं है यह स्थान

धार्मिक महत्व के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी यह स्थान कम खूबसूरत नहीं है। इस स्थान पर जहां ब्यास, बिनवा व क्षीर गंगा का अनूठा संगम देखते ही बनता है तो वहीं यहां का शांत वातावरण एवं नदियों की कल-कल बहती धाराओं की गूंज मन को एक आलौकिक सुकून भी प्रदान करती हैं। ध्यान साधना की दृष्टि से भी यह स्थान महत्वपूर्ण है। 

कैसे पहुंचें त्रिवेणी महादेव

इस पवित्र धार्मिक स्थान के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु जोगिन्दर नगर से लडभड़ोल होते हुए सडक़ मार्ग से इस पवित्र स्थान तक आसानी से पहुंच सकते हैं। यह पवित्र स्थान जोगिन्दर नगर उपमंडल के अंतर्गत ग्राम पंचायत उटपुर के गांव घटोड में स्थित है। प्रसिद्ध धार्मिक स्थान बैजनाथ से यहां की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। इसके अलावा श्रद्धालु संधोल से होकर बैरी गांव तक सडक़ मार्ग से आ सकते हैं। यहां से झूला पुल के माध्यम से वे त्रिवेणी महादेव के दर्शन कर सकते हैं। इसके अलावा कांगडा जिला के जयसिंहपुर, हारसीपतन होते हुए सरीमोलग से भी इस पवित्र स्थान तक पहुंचा जा सकता है। यहां से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन बैजनाथ-पपरोला ही है जबकि नजदीकी हवाई अड्डा कांगडा है।

Friday, 18 February 2022

द्वापर काल से जोड़ा जाता है श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर नेर का इतिहास

जोगिन्दर नगर उपमंडल के अंतर्गत ग्राम पंचायत नेर घरवासड़ा के गांव नेर में भगवान श्री लक्ष्मी नारायण का प्राचीन मंदिर स्थापित है। इस मंदिर के इतिहास को द्वापर काल में भगवान श्री विष्णु की तपस्या से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि गांव नेर में द्वापर काल में भगवान श्री विष्णु ने कई वर्षों तक तपस्या की थी तथा इसी काल में उनका यह मंदिर यहां स्थापित हुआ माना जाता है।

इस ऐतिहासिक श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर की निर्माण शैली को देखें तो यह मंडी शहर में स्थापित अन्य मंदिरों जैसी ही है। ऐसे में माना जाता है कि यह मंदिर भी लगभग 300 या 400 वर्ष पुराना होगा। इस मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक बातों पर गौर करें तो कहा जाता है कि नेर गांव में द्वापर काल में भगवान श्री विष्णु ने कई वर्षों तक तपस्या की थी तथा इसी दौरान यहां पर उनका यह मंदिर स्थापित हुआ होगा। यह भी कहा जाता है कि इसी स्थान की शक्तियों द्वारा इस महाकलियुग को समाप्त किया जाएगा तथा यह स्थान बद्रीनाथ धाम के समकक्ष भी माना जाता है। इस प्राचीन मंदिर को भगवान श्री विष्णु जी के सभी मंदिरों में शक्तिशाली माना है तथा आने वाले समय में इस कलियुग में कल्याण एवं उद्धार करेगा। साथ ही कहा जाता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से भगवान से प्रार्थना करेगा तो उसकी मनोकामना जरूर पूरी होगी।

इस मंदिर से जुड़ी एक घटना का वृतांत यह बताता है कि 16 मार्च, 2004 को भगवान श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना की गई। उसी रात्रि करीब 11 बजे मंदिर की घंटियां बजीं और मूर्ति अपने स्थान से तकरीबन 4 से 5 इंच आगे सरक गई। लेकिन दूसरे दिन दोपहर यह मूर्ति फिर अपने स्थान पर आ गई। फिलवक्त इस ऐतिहासिक एवं प्राचीन मंदिर से जुड़ा कोई तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन मंदिर की निर्माण शैली को देखते हुए निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि यह मंदिर 300 या 400 वर्ष पुराना जरूर होगा। वर्तमान में इस मंदिर के रखरखाव के लिये स्थानीय ग्रामीणों ने श्री लक्ष्मी नारायण सेवा समिति पंजीकृत करवा रखी है जो इसका संचालन कर रही है। 

यह प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर जोगिन्दर नगर से लगभग 5 या 6 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत नेर घरवासड़ा के गांव नेर में स्थित है जो गांव मझारनु से लगभग एक या डेढ़ किलोमीटर दूर है। यह मंदिर पक्की सडक़ से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर को वाया बस्सी पॉवर हाऊस होते हुए भी सडक़ मार्ग से पहुंचा जा सकता है। 

Friday, 11 February 2022

भंगाल रियासत के पाल वंश शासकों ने निर्मित किया था जोगिन्दर नगर का करनपुर किला

जोगिन्दर नगर के ऐतिहासिक करनपुर किले का निर्माण भंगाल रियासत के पालवंश शासकों ने किया था। इतिहास के पन्नों को खंगालें तो भंगाल रियासत का अस्तित्व लगभग एक से डेढ हजार वर्ष तक माना जाता है। सन एक हजार इस्वी से लेकर 1750 तक भंगाल रियासत का अस्तित्व माना जाता है। भंगाल रियासत में बड़ा भंगाल, छोटा भंगाल, पपरोला, लंदोह तथा रजेर क्षेत्र शामिल रहे हैं। भंगाल रियासत की राजधानी बीड़ रही है। लेकिन समय-समय पर इस रियासत पर हुए हमलों के कारण यह रियासत निरंतर सिकुड़ती गई तथा इस रियासत के अंतिम शासक मानपाल (1749) की मृत्यु के बाद इसका अस्तित्व समाप्त हो गया। यह रियासत मंडी, कुल्लू, कांगड़ा, गुलेर इत्यादि रियासतों का हिस्सा बन गई।

ऐतिहासिक करनपुर किले की बात करें तो इसका निर्माण पालवंश शासकों में से एक रहे राजा करन ने किया माना जाता है तथा राजा करन के कारण ही यह करनपुर किला से प्रसिद्ध हुआ। मंडी रियासत के अनेक शासकों ने भंगाल रियासत पर अपना परचम लहराने के लिये समय-समय पर आक्रमण किये, लेकिन कुल्लू रियासत के राजाओं की सहायता से भंगाल रियासत अपना अस्तित्व बनाये रखने में कुछ समय तक जरूर कामयाब रही। लेकिन बाद में यह रियासत कई रियासतों का हिस्सा बनकर इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गई। 

भंगाल रियासत के शासक पृथी पाल (1710) जो कि मंडी रियासत के राजा सिद्ध सेन के संबंधी थे की हत्या राजा सिद्ध सेन ने ही कर दी थी तथा हत्या करने के बाद दमदमा महल में पृथी पाल के सिर को दफन कर दिया था। इसके बाद राजा सिद्ध सेन ने भंगाल रियासत पर कब्जा करने के लिये अपनी सेना को भेजा, लेकिन पृथीपाल की माता ने कुल्लू के राजा मान सिंह की सहायता से उनके इस आक्रमण को विफल कर दिया था। इस बीच राजा मान सिंह ने इस रियासत के एक बड़े हिस्से पर अपना अधिकार कर लिया। राजा पृथी पाल की मृत्यु के बाद रघुनाथ पाल (1720) भंगाल रियासत के शासक बने। इस दौरान भी राजा सिद्ध सेन ने करनपुर किले को हथियाने के लिये लगातार हमले किये लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए। कहते हैं कि राजा सिद्ध सेन के बाद मंडी रियासत के शासक बने उनके पौत्र शमशेर सेन ने करनपुर किले को उस समय अपने अधीन कर लिया जब राजा रघुनाथ पाल मुगल वायसराय से मिलने पंजाब गये हुए थे।

वर्ष 1735 में रघुनाथ पाल की मृत्यु के बाद दलेल पाल भंगाल रियासत के राजा बने। इस दौरान भी भंगाल रियासत पर मंडी, कुल्लू, कहलूर, नालागढ़, गुलेर, जसवां इत्यादि रियासतों के शासकों ने लगातार हमले किये लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए। परन्तु वर्ष 1749 को दलेल पाल की मौत हो गई तथा भंगाल रियासत के बड़े भू-भाग पर मंडी व कुल्लू के शासकों ने अपना एकाधिकार जमा लिया। इतिहास के पन्नें बताते हैं कि राजा दलेल पाल के बाद वर्ष 1749 में मान पाल भंगाल रियासत के शासक बने लेकिन उनके पास अब लंदोह, पपरोला तथा रजेर का इलाका ही शेष रह गया था। मान पाल जब मुगल बादशाह से मिलने दिल्ली जा रहे थे तो इस बीच उनका निधन हो गया तथा भंगाल रियासत के शेष बचे क्षेत्रों में भी कांगड़ा व गुलेर रियासत के शासकों ने अपना परचम लहरा दिया तथा भंगाल रिसासत का अस्तित्व इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया। 

जोगिन्दर नगर का यह ऐतिहासिक करनपुर किला जोगिन्दर नगर कस्बे से महज डेढ या दो किलोमीटर की दूरी पर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिये दो रास्ते उपलब्ध हैं। पहला रास्ता जोगिन्दर नगर के गुगली खड्ड पुल से पैदल खड़ी चढ़ाई चढ़ते हुए जाता है। जबकि दूसरा रास्ता गलू पट्ट गांव से होते हुए आता है। दूसरा रास्ता सडक़ से जुड़ा हुआ है तथा महज 300 या 400 मीटर का पैदल रास्ता तय कर किले पर पहुंचा जा सकता है। वर्तमान में यह किला एक खंडहर नुमा स्थान बन चुका है लेकिन अभी भी इस किले की मजबूत दीवारें इसके इतिहास की यादों को ताजा कर देती हैं। 

करनपुर किले से समूची जोगिन्दर नगर घाटी को न केवल देखा जा सकता है बल्कि चारों ओर के नैसर्गिक सौंदर्य को भी निहारा जा सकता है। इसी किले से महज 200 या 250 मीटर की दूरी पर ऐतिहासिक बंडेरी मां का भी मंदिर है। मंदिर के आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य भी मन को सुकून प्रदान करने वाला है।

(ऐतिहासिक स्त्रोत: दि वंडरलैंड ऑफ हिमाचल प्रदेश, हिमप्रस्थ मंडी जिला विशेषांक अंक मार्च, 2014)

Wednesday, 9 February 2022

जड़ी बूटियों से बनने वाली धूपन सामग्री पर काम करेंगे बैजनाथ के चंद्र दीक्षित

 सीएम स्टार्टअप योजना के तहत प्राकृतिक एवं आयुर्वेद तरीके से तैयार होंगे धूप व अगरबत्ती

बैजनाथ जिला कांगड़ा के निवासी चंद्र दीक्षित मुख्य मंत्री स्टार्टअप स्कीम के तहत जड़ी बूटियों से धूप व अगरबत्ती को तैयार करेंगे। प्राकृतिक तरीके से तैयार होने वाले इन धूपन सामग्री से न केवल लोगों को स्वास्थ्य की दृष्टि से इसका सीधा लाभ मिलेगा बल्कि पर्यावरण भी प्रदूषित होने से बच पाएगा। मुख्य मंत्री स्टार्टअप योजना के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश आयुष विभाग के जोगिन्दर नगर स्थित भारतीय चिकित्सा पद्धति अनुसंधान संस्थान में स्थापित इन्क्यूबेशन केंद्र में इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया जाएगा।
जब इस बारे चंद्र दीक्षित से बातचीत की तो उन्होने बताया कि वे प्रदेश में बायो वेस्ट प्रबंधन पर जिला कांगड़ा प्रशासन के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। जिला कांगड़ा के प्रसिद्ध शक्तिपीठों ज्वालाजी, चामुंडा, ब्रजेश्वरी तथा बैजनाथ मंदिरों के फूलों को वे न केवल एकत्रित करते हैं बल्कि धूप व अगरबत्ती बनाकर इनका वैज्ञानिक तरीके से निपटारा भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि मंदिरों में श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाए जाने वाले इन फूलों को आस्था की दृष्टि से न तो नदी-नालों में बहाया जा सकता है न ही इन्हे दबा सकते हैं। यही नहीं पर्यावरण की दृष्टि से भी अप्राकृतिक तरीके से इन फूलों का निपटारा करना मानव जीवन के साथ-साथ पर्यावरण के लिये भी नुकसान दायक है।
उनका कहना है कि इन फूलों में हानिकारक कीटनाशक होते हैं तो मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ-साथ अन्य प्राणियों के लिये भी खतरनाक हैं। ऐसे में प्राकृतिक तरीके से धूपन सामग्री तैयार करने के लिये सीएम स्टार्टअप स्कीम के तहत आयुर्वेद पद्धति से कार्य करने को आगे कदम बढ़ाया है।
कंप्यूटर इंजीनियरिंग की उच्च शिक्षा प्राप्त चंद्र दीक्षित बताते हैं कि आयुष विभाग के सहयोग से जड़ी-बूटियों से तैयार होने वाली धूपन सामग्री से जहां जड़ी-बूटियां तैयार करने वाले प्रदेश के किसान लाभान्वित होंगे तो वहीं उपभोक्ताओं को वैज्ञानिक तरीके से तैयार आयुर्वेदिक धूप व अगरबत्ती प्राप्त हो सकेगी।
क्या कहते हैं अधिकारी:
इस संबंध में क्षेत्रीय निदेशक, क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर डॉ. अरूण चंदन का कहना है कि जड़ी-बूटियों एवं वनौषधियों में स्टार्ट अप को मदद करने की दिशा में भारतीय चिकित्सा पद्धति भ्अनुसंधान संस्थान जोगिन्दर नगर में इन्क्यूबेशन केंद्र कार्य कर रहा है। मुख्य मंत्री स्टार्टअप योजना के माध्यम से यहां पर नवोन्मेषी विचार को लेकर शोध कार्य किया जा रहा है तथा संस्थान हर संभव मदद प्रदान कर रहा है।
उनका कहना है कि सीएम स्टार्टअप के तहत चंद्र दीक्षित ने धूपन सामग्री पर कार्य करने को आवेदन प्रस्तुत किया है। धूपन पद्धति हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है तथा आयुर्वेद में भी इसका जिक्र मिलता है। ऐसे में चंद्र दीक्षित आयुर्वेद पद्धति पर आधारित धूपन सामग्री निर्माण में कार्य करने जा रहे हैं, जिस बारे संस्थान की ओर से उन्हे हरसंभव मदद प्रदान की जाएगी ताकि वे प्राकृतिक एवं आयुर्वेद तरीके से धूप व अगरबत्ती को तैयार कर सकें।
क्या है मुख्य मंत्री स्टार्टअप योजना:
मुख्य मंत्री स्टार्टअप योजना के अंतर्गत चयनित युवा व किसान के नवोन्वेषी विचार को बतौर उद्यम विकसित करने तथा शोध कार्य के लिए सरकार प्रतिमाह 25 हजार रूपये की एक वर्ष तक छात्रवृति प्रदान करती है। साथ ही नवीन विचार को लेकर इन्क्यूबेशन सेंटर में उपलब्ध आधारभूत ढांचे की सुविधा को भी नि:शुल्क मुहैया करवाया जाता है। इसके अलावा तैयार उत्पाद के पंजीकरण से लेकर पेटेंट करवाने तक की भी मदद की जाती है।
सीएम स्टार्ट अप योजना के तहत प्रदेश सरकार ने आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान जोगिन्दर नगर के अलावा आईआईटी मंडी, एनआईटी हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला, चितकारा विश्वविद्यालय सोलन, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, उद्यानिकी एवं बागवानी विश्वविद्यालय नौणी सोलन, जेपी विश्वविद्यालय वाकनाघाट सोलन, हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर तथा हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद् शिमला को भी इन्क्यूबेशन सेंटर के तौर पर स्थापित किया है ताकि युवा अपने नवीन विचारों को इन इन्क्यूबेशन केंद्र के सहयोग से उद्यम में बदल सकें।