Saturday, 18 December 2021

राजा जोगिन्द्रसेन के नाम पर वर्ष 1925 में सकरोहटी गांव बना जोगिन्दर नगर

1932 में उत्तर भारत की पहली मैगावॉट शानन पन बिजली परियोजना के कारण दुनिया भर में हुआ मशहूर

जोगिन्दर नगर में कार्यरत हैं राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के कई संस्थान, पर्यटन की दृष्टि से भी है खूबसूरत

धौलाधार पर्वतमाला की तलहटी में लगभग 1200 मीटर की ऊंचाई पर बसा जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश का एक खूबसूरत कस्बा है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर जोगिन्दर नगर पर्यटन की दृष्टि से प्रदेश का एक महत्वपूर्ण स्थान भी है। जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला का एक उप-मंडल मुख्यालय होने के साथ-साथ विधानसभा क्षेत्र भी है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर नजर दौड़ाएं तो जोगिन्दर नगर को पहले सकरोहटी नाम से जाना जाता था। तत्कालीन मंडी रियासत के प्रसिद्ध राजा जोगिन्द्रसेन के नाम पर इस नगर का नाम जोगिन्दर नगर पड़ा। उत्तर भारत की 110 मैगावॉट की पहली पन बिजली परियोजना (शानन परियोजना) (ऊहल चरण-एक) के यहां निर्मित होने के चलते यह कस्बा एकाएक पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। बाद में यहां पर शानन के बाद 66 मैगावॉट की बस्सी पन बिजली परियोजना (ऊहल चरण-2) बनने तथा 100 मैगावॉट की चुल्ला (उहल-तृतीय चरण) की निर्माणाधीन पन बिजली परियोजना के कारण जोगिन्दर नगर क्षेत्र पन बिजली उत्पादन गृह के नाम से भी जाना जाने लगा। 

सन 1922 को तत्कालीन पंजाब सरकार के चीफ इंजीनियर कर्नल बी.सी. बैटी ने 48 मैगावॉट की पन बिजली परियोजना बनाने की योजना बनाई। इसके बाद वर्ष 1925 में मंडी रियासत के तत्कालीन राजा जोगिन्द्रसेन तथा सैक्रेटरी ऑफ स्टेट इन इंडिया केमध्य सकरोहटी गांव के समीप पन बिजली परियोजना निर्मित करने को 3 मार्च, 1925 को लाहौर में एक समझौता हुआ। इस समझौते के बाद राजा जोगिन्द्रसेन के नाम पर सकरोहटी गांव का नाम बदलकर जोगिन्दर नगर कर दिया गया। इसके बाद इंजीनियर कर्नल बैटी ने अपनी टीम के साथ सकरोहटी गांव की पहाड़ी के दूसरी ओर स्थित बरोट से सुरंग के माध्यम से ऊहल नदी का पानी लाने की योजना पर कार्य शुरू किया। इस सुरंग में पानी की बड़ी-बड़ी पाईप बिछाकर सकरोहटी गांव के शानन नामक स्थान तक लाया गया। शानन में बिजली घर स्थापित किया गया तथा भारी भरकम मशीनरी को शानन से बरोट तक की पहाड़ी में पहुंचाने के लिए 1928 में हालीजे ट्राली लाइन का भी निर्माण किया गया।

कर्नल बैटी ने ब्रिटेन से आयातित भारी भरकम मशीनों को शानन तक पहुंचाने के लिए पठानकोट से जोगिन्दर नगर के शानन तक संकरी रेलवे लाइन (नैरोगेज लाइन) बिछाई गई जो वर्ष 1929 में शुरू हो गई। साथ ही शानन से बरोट तक सामान ले जाने के लिए लोहे के रस्सों की सहायता से चलने वाली हालीजे ट्राली मार्ग को भी बनाया गया। ऊहल नदी के पानी को सुंरग के माध्यम से शानन लाने के लिए बरोट में डैम का भी निर्माण किया गया। वर्ष 1932 में शानन पन बिजली परियोजना के विद्युत गृह का निर्माण पूरा हुआ तथा जोगिन्दर नगर मैगावॉट स्तर की पन बिजली परियोजना के कारण एकाएक पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। कुल 2 करोड़ 53 लाख 43 हजार 709 रूपये की लागत से यह प्रोजेक्ट बनकर तैयार हुआ। इस परियोजना का सपना संजोने वाले कर्नल बीसी बैटी की धारीवाल पंजाब के समीप दुर्घटना में मौत हो गई। कर्नल बैटी की मौत के बाद 10 मार्च, 1933 को तत्कालीन वायसराय ऑफ इंडिया ने लाहौर के शालीमार रिसीविंग स्टेशन में बटन दबाकर इस परियोजना का शुभांरभ किया था। इसके बाद वर्ष 1982 में शानन पन बिजली परियोजना के उत्पादन स्तर को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त 50 मैगावॉट क्षमता को जोड़ा गया तथा इसकी कुल उत्पादन क्षमता बढक़र 110 मैगावॉट हो गई।

जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश के उन गिने चुने स्थानों में शामिल है जो रेल नेटवर्क के साथ जुड़ा हुआ है। जोगिन्दर नगर से प्रतिदिन पठानकोट के लिए रेल सुविधा उपलब्ध है। भले ही ऐतिहासिक दृष्टि से शानन विद्युत गृह तक रेल सुविधा उपलब्ध नहीं है लेकिन अभी भी यह रेलवे ट्रैक यहां मौजूद है, जो यहां के इतिहास को बयान कर रहा है। शानन विद्युत गृह से बरोट के मध्य बिछाई गई हॉलीजे ट्राली लाइन आज भी मौजूद है लेकिन इसका बेहतर रखरखाव न होने के कारण यह ऐतिहासिक धरोहर भी दिन प्रतिदिन नष्ट होने की कगार पर जा पहुंची है। वर्ष 1966 में पंजाब राज्य पुर्नगठन के दौरान प्रदेश की पहली मैगावॉट स्तर की शानन पन बिजली परियोजना पंजाब सरकार को 99 वर्ष की लीज पर दे दी गई। वर्तमान में यहां पैदा होने वाली बिजली की आपूर्ति पंजाब राज्य को की जाती है।

देश की आजादी तथा हिमाचल प्रदेश की स्थापना के बाद यहां पर राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के कई महत्वपूर्ण संस्थान स्थापित हुए हैं। जिनमें प्रदेश का राजस्व प्रशिक्षण संस्थान, भारतीय चिकित्सा पद्धति अनुसंधान संस्थान (हर्बल गार्डन), आयुर्वेदिक फॉर्मेसी, प्रदेश का पहला आयुर्वेदिक बीफॉर्मा प्रशिक्षण संस्थान, नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड का उत्तर भारत का क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र तथा कृषि विभाग का बीज गुणन प्रेक्षत्र प्रमुखता से शामिल हैं। इसके अतिरिक्त जोगिन्दर नगर शहर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर देश का पहला गोल्डन महाशीर मछली प्रजनन फॉर्म भी स्थापित किया गया है। जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश के उन गिने चुनें शहरी क्षेत्रों में शामिल है जहां पर सीवरेज की सुविधा उपलब्ध है।

पर्यटन की दृष्टि से जोगिन्दर नगर व यहां के आसपास का स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहां की साफ व स्वच्छ वायु बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। सर्दियों में जहां जोगिन्दर नगर के चारों ओर बर्फ से ढक़ी वादियां नयनाविभोर दृष्य बनाती है तो वहीं गर्मियों के दौरान यहां का तापमान 30 डिग्री सैल्सियस से अधिक नहीं जाता है। यहां की सबसे खास बात यह है कि ग्रीष्म मौसम में जैसे ही तापमान थोड़ा सा बढ़ता है तो यहां पर एकाएक बारिश मौसम को ओर सुहावना बना देती है। इसके अलावा पर्यटक विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग साइट बीड़-बीलिंग, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर झटींगरी, फूलाधार, घोघरधार, बरोट व चौहारघाटी का भी आनंद उठा सकते हैं। धार्मिक दृष्टि से भी जोगिन्दर नगर के आसपास कई प्रसिद्ध व ऐतिहासिक धार्मिक स्थान मौजूद हैं जिनमें मच्छयाल, मां चतुर्भुजा मंदिर, मां सिमसा मंदिर, नागेश्वर महादेव कुड्ड, बाबा बालकरूपी, त्रिवेणी संगम इत्यादि प्रमुख हैं। यहां पर प्रतिवर्ष 1-5 अप्रैल तक राज्य स्तरीय जोगिन्दर नगर देवता मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें यहां की देव संस्कृति देखते ही बनती है। इसके अलावा मेले के दौरान रंगारंग सांस्कृतिक संध्याएं भी मुख्य आकर्षण का केंद्र रहती हैं।

जोगिन्दर नगर शहर पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग 154 से जुड़ा हुआ है। रेल नेटवर्क (नैरोगेज लाइन) की सुविधा जोगिन्दर नगर तक पठानकोट से उपलब्ध है जबकि नजदीकी हवाई अड्डा गगल कांगड़ा में है। यहां पर रहने के लिए कई सरकारी विश्राम गृहों के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटल के अतिरिक्त कई निजी होटल भी उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त प्रदेश की होम स्टे योजना के तहत पंजीकृत कई होम स्टे होटल भी हैं जहां पर्यटक प्रदेश की संस्कृति के साथ-साथ लोकल पकवानों व खाने का भी आनंद उठा सकते हैं।

Friday, 17 December 2021

स्टीविया के शुगर फ्री प्रोडक्ट्स तैयार करने को प्रदेश में 200 एकड़ खेती की है जरूरत

प्रतिवर्ष 2 हजार टन स्टीविया की पत्तियों की है जरूरत, किसान प्रति एकड़ कमा सकता है एक लाख रूपया

स्टीविया की खेती को राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय जोगिन्दर नगर किसानों को करेगा प्रोत्साहित

हिमाचल प्रदेश में स्टीविया के शुगर फ्री प्रोडक्ट्स तैयार करने के लिए प्रतिवर्ष 2 हजार टन स्टीविया की पत्तियों की जरूरत है। इसके लिये किसानों को लगभग 200 एकड़ जमीन में स्टीविया की खेती करनी होगी। स्टीविया की खेती से एक किसान एक एकड़ जमीन से प्रतिवर्ष एक से डेढ़ लाख रुपया कमा सकता है। लेकिन प्रदेश में गुणवत्तायुक्त स्टीविया की पत्तियां उपलब्ध न हो पाने के कारण प्रदेश में ही स्टीविया के शुगर फ्री प्रोडक्ट्स तैयार करने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है।

प्रदेश के अंदर ही बद्दी में दिल्ली के 53 वर्षीय उद्योगपति सौरभ अग्रवाल ने लगभग साढ़े आठ करोड़ रूपये की लागत से अंतर्राष्ट्रीय स्तर की आयातित तकनीक के आधार पर स्टीविया प्रोडक्ट्स 'स्टीविया लाईफ Ó ब्रांड तैयार करने को स्टीविया बायोटेक उद्योग स्थापित कर लिया है। लेकिन प्रदेश के भीतर गुणवत्तायुक्त स्टीविया की पत्तियां न मिल पाने के कारण वे इस कार्य को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होने विदेशों से आयात किये हुए उच्च गुणवत्ता युक्त एवं स्थानीय पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए स्टीविया के पौधे तैयार कर लिये हैं। जिन्हे टिश्यू कल्चर के माध्यम से मदर नर्सरी तैयार कर किसानों को उपलब्ध करवाया जाएगा ताकि कंपनी को जरूरत अनुसार उच्च गुणवत्ता युक्त स्टीविया का कच्चा माल उपलब्ध हो सके। इसके लिये उन्होने राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर में पहुंचकर स्टीविया की खेती से प्रदेश के किसानों को जोड़ने का विशेष आग्रह किया है ताकि स्टीविया के शुगर फ्री प्रोडक्ट्स तैयार करने के लिये प्रदेश के भीतर ही आवश्यक कच्चा माल उपलब्ध हो सके। वर्तमान में जो स्टीविया के पौधे तैयार हो रहे हैं वे न केवल गुणवत्ता की दृष्टि से निम्न दर्जे के हैं बल्कि उन्हे उद्योग में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

क्या कहते हैं अधिकारी:

इस संदर्भ में राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के क्षेत्रीय निदेशक उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर डॉ. अरूण चंदन का कहना है कि स्टीविया एक प्राकृतिक स्वीटनर है जो गन्ने से न केवल 300 गुणा अधिक मीठा होता है बल्कि इसमें जीरो शुगर व कैलोरी होती है। ऐसे में देश के लगभग 8 करोड़ मधुमेह मरीजों के लिए शुगर फ्री प्रोडक्ट्स की बहुत मांग है। लेकिन वर्तमान में देश के भीतर शुगर फ्री प्रोडक्ट्स केवल विदेशों से आयातित कच्चे माल के आधार पर ही तैयार हो रहें जिसके लिये हमारे यहां कोई स्थानीय व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।

उनका कहना है कि स्टीविया बायोटेक किसानों से अनुबंध कर 'स्टीविया लाइफÓ ब्रांड के तहत अपने स्तर पर स्टीविया के पौधे तैयार करना चाहती है। इससे न केवल कंपनी को उच्च गुणवत्ता युक्त स्टीविया का कच्चा माल मिल सकेगा बल्कि किसानों को उनके उत्पाद की उचित लागत भी प्राप्त होगी। राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड का क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र-एक उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर कार्यालय अगले दो वर्ष में 50 एकड़ से लेकर 200 एकड़ तक की स्टीविया खेती से जोड़ने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने का काम करेगा।

उन्होने बताया कि जिला ऊना में औषधीय पौधों व जड़ी बूटियों की खेती को मनरेगा कन्वर्जेन्स के तहत जोड़ा गया है, ऐसे मेें उपायुक्त ऊना के सहयोग से स्टीविया को भी शामिल करने का प्रयास किया जाएगा। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का ऊना स्थित कृषि विज्ञान केंद्र भी स्टीविया बायोटेक के साथ स्टीविया के क्षेत्र में काम करने को आगे आया है।

डॉ. अरूण चंदन का कहना है कि स्टीविया विदेशों से आयातित पौधा है। हिमाचल प्रदेश में स्टीविया के पौधे तैयार करने के लिए जलवायु की दृष्टि से जिला ऊना, बिलासपुर, निचला सोलन तथा कांगड़ा जिला के गर्म व मैदानी इलाके उपयुक्त हैं।








Wednesday, 10 November 2021

महिला शक्ति सडक़ किनारे सब्जियां बेचकर परिवार की आर्थिकी को दे रही है मजबूती

मंडी-पठानकोट हाईवे पर गुम्मा के पास दर्जनों महिलाएं बेच रही मौसमी फल सब्जिया

ग्रामीण महिलाएं बच्चों परिवार की देखरेख के साथ-साथ अब परिवार की आर्थिकी का भी सहारा बन रही है। हमारे ग्रामीण परिवेश में महिलाएं केवल खेती-बाड़ी पशुपालन के साथ बड़े पैमाने पर जुड़ी रहती हैं बल्कि बच्चों के पालन-पोषण में भी अहम भूमिका अदा करती हैं। लेकिन बदलते वक्त के साथ आज ग्रामीण महिलाएं केवल घर की दहलीज से बाहर निकल परिवार की आर्थिकी को मजबूती प्रदान कर रही हैं बल्कि काम करने से भी परहेज नहीं कर रही है। महिलाओं की इस बदलती सोच का ही नतीजा है कि कोरोना महामारी के इस कठिन दौर में वे परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए मनरेगा में दिहाड़ी मजदूरी के साथ-साथ मौसमी फल सब्जियों को बेचने में भी अब पीछे नहीं है।

हमारी इन ग्रामीण महिलाओं की इस बदलती सोच का ही नतीजा है कि पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर जोगिन्दर नगर से लेकर गुम्मा तक ऐसी दर्जनों महिलाएं सडक़ किनारे मौसमी फल सब्जियां बेचते हुए नजर जाएंगी। जब इस संबंध में इन स्थानीय महिलाओं जिनमें कमला देवी, रती देवी, कलू देवी, पुष्पा देवी, प्रीतो देवी आदि से बातचीत की तो इन महिलाओं ने बताया कि वे प्रतिदिन बरसाती मौसम के दौरान तैयार मौसमी फल सब्जियों को बचने का काम कर रही हैं। इससे केवल उन्हे परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए धनराशि प्राप्त हो जाती है बल्कि घर में प्राकृतिक तौर पर तैयार इन मौसमी फल सब्जियों को एक मार्केट भी उपलब्ध हो रही है। इनका कहना है प्रतिदिन इस राष्ट्रीय उच्च मार्ग से सैंकड़ो वाहन गुजरते हैं, ऐसे में राहगीर प्राकृतिक तौर पर तैयार इन फलों सब्जियों को खरीदने के लिए विशेष तरजीह देते हैं। इनका कहना है कि इससे उन्हे रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी आर्थिकी का इंतजाम भी हो जाता है।

इसी बीच सब्जियां खरीदने के लिए रूके कुछ यात्रियों से बातचीत की तो इनका भी कहना है कि ग्रामीण महिलाओं द्वारा बेचे जा रहे ये उत्पाद जहां पूरी तरह से प्राकृतिक तौर पर तैयार हुए हैं तो वहीं इनकी कीमत बाजार भाव से भी कम है। जिसका सीधा असर उनकी सेहत के साथ-साथ आर्थिकी पर भी पड़ता है। साथ ही कहना है कि प्राकृतिक तौर पर तैयार सब्जियां बाजारों में आज बमुश्किल से ही मिल पाती हैं, लेकिन आज वे यहां से भिंडी, तोरी, काकड़ी, करेला, कद्दू, प्याज, अदरक, लहुसन इत्यादि खरीद कर ले जा रहे हैं जो पूरी तरह से प्राकृतिक तौर पर उगाए गए हैं तथा इनकी पौष्टिकता भी अधिक है।

ऐसे में कह सकते हैं कि आज हमारे ग्रामीण परिवेश की महिलाओं ने परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाकर पशु पालन खेती बाड़ी के साथ-साथ परिवार की आर्थिकी को मजबूती प्रदान करने की दिशा में अहम कदम बढ़ाया है, जो निश्चित तौर पर महिलाओं के सशक्तीकरण में एक अहम कदम साबित हो रहा है।