1932 में उत्तर भारत की पहली मैगावॉट शानन पन बिजली परियोजना के कारण दुनिया भर में हुआ मशहूर
जोगिन्दर नगर में कार्यरत हैं राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के कई संस्थान, पर्यटन की दृष्टि से भी है खूबसूरत
धौलाधार पर्वतमाला की तलहटी में लगभग 1200 मीटर की ऊंचाई पर बसा जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश का एक खूबसूरत कस्बा है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर जोगिन्दर नगर पर्यटन की दृष्टि से प्रदेश का एक महत्वपूर्ण स्थान भी है। जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला का एक उप-मंडल मुख्यालय होने के साथ-साथ विधानसभा क्षेत्र भी है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर नजर दौड़ाएं तो जोगिन्दर नगर को पहले सकरोहटी नाम से जाना जाता था। तत्कालीन मंडी रियासत के प्रसिद्ध राजा जोगिन्द्रसेन के नाम पर इस नगर का नाम जोगिन्दर नगर पड़ा। उत्तर भारत की 110 मैगावॉट की पहली पन बिजली परियोजना (शानन परियोजना) (ऊहल चरण-एक) के यहां निर्मित होने के चलते यह कस्बा एकाएक पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। बाद में यहां पर शानन के बाद 66 मैगावॉट की बस्सी पन बिजली परियोजना (ऊहल चरण-2) बनने तथा 100 मैगावॉट की चुल्ला (उहल-तृतीय चरण) की निर्माणाधीन पन बिजली परियोजना के कारण जोगिन्दर नगर क्षेत्र पन बिजली उत्पादन गृह के नाम से भी जाना जाने लगा।सन 1922 को तत्कालीन पंजाब सरकार के चीफ इंजीनियर कर्नल बी.सी. बैटी ने 48 मैगावॉट की पन बिजली परियोजना बनाने की योजना बनाई। इसके बाद वर्ष 1925 में मंडी रियासत के तत्कालीन राजा जोगिन्द्रसेन तथा सैक्रेटरी ऑफ स्टेट इन इंडिया केमध्य सकरोहटी गांव के समीप पन बिजली परियोजना निर्मित करने को 3 मार्च, 1925 को लाहौर में एक समझौता हुआ। इस समझौते के बाद राजा जोगिन्द्रसेन के नाम पर सकरोहटी गांव का नाम बदलकर जोगिन्दर नगर कर दिया गया। इसके बाद इंजीनियर कर्नल बैटी ने अपनी टीम के साथ सकरोहटी गांव की पहाड़ी के दूसरी ओर स्थित बरोट से सुरंग के माध्यम से ऊहल नदी का पानी लाने की योजना पर कार्य शुरू किया। इस सुरंग में पानी की बड़ी-बड़ी पाईप बिछाकर सकरोहटी गांव के शानन नामक स्थान तक लाया गया। शानन में बिजली घर स्थापित किया गया तथा भारी भरकम मशीनरी को शानन से बरोट तक की पहाड़ी में पहुंचाने के लिए 1928 में हालीजे ट्राली लाइन का भी निर्माण किया गया।
कर्नल बैटी ने ब्रिटेन से आयातित भारी भरकम मशीनों को शानन तक पहुंचाने के लिए पठानकोट से जोगिन्दर नगर के शानन तक संकरी रेलवे लाइन (नैरोगेज लाइन) बिछाई गई जो वर्ष 1929 में शुरू हो गई। साथ ही शानन से बरोट तक सामान ले जाने के लिए लोहे के रस्सों की सहायता से चलने वाली हालीजे ट्राली मार्ग को भी बनाया गया। ऊहल नदी के पानी को सुंरग के माध्यम से शानन लाने के लिए बरोट में डैम का भी निर्माण किया गया। वर्ष 1932 में शानन पन बिजली परियोजना के विद्युत गृह का निर्माण पूरा हुआ तथा जोगिन्दर नगर मैगावॉट स्तर की पन बिजली परियोजना के कारण एकाएक पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। कुल 2 करोड़ 53 लाख 43 हजार 709 रूपये की लागत से यह प्रोजेक्ट बनकर तैयार हुआ। इस परियोजना का सपना संजोने वाले कर्नल बीसी बैटी की धारीवाल पंजाब के समीप दुर्घटना में मौत हो गई। कर्नल बैटी की मौत के बाद 10 मार्च, 1933 को तत्कालीन वायसराय ऑफ इंडिया ने लाहौर के शालीमार रिसीविंग स्टेशन में बटन दबाकर इस परियोजना का शुभांरभ किया था। इसके बाद वर्ष 1982 में शानन पन बिजली परियोजना के उत्पादन स्तर को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त 50 मैगावॉट क्षमता को जोड़ा गया तथा इसकी कुल उत्पादन क्षमता बढक़र 110 मैगावॉट हो गई।
जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश के उन गिने चुने स्थानों में शामिल है जो रेल नेटवर्क के साथ जुड़ा हुआ है। जोगिन्दर नगर से प्रतिदिन पठानकोट के लिए रेल सुविधा उपलब्ध है। भले ही ऐतिहासिक दृष्टि से शानन विद्युत गृह तक रेल सुविधा उपलब्ध नहीं है लेकिन अभी भी यह रेलवे ट्रैक यहां मौजूद है, जो यहां के इतिहास को बयान कर रहा है। शानन विद्युत गृह से बरोट के मध्य बिछाई गई हॉलीजे ट्राली लाइन आज भी मौजूद है लेकिन इसका बेहतर रखरखाव न होने के कारण यह ऐतिहासिक धरोहर भी दिन प्रतिदिन नष्ट होने की कगार पर जा पहुंची है। वर्ष 1966 में पंजाब राज्य पुर्नगठन के दौरान प्रदेश की पहली मैगावॉट स्तर की शानन पन बिजली परियोजना पंजाब सरकार को 99 वर्ष की लीज पर दे दी गई। वर्तमान में यहां पैदा होने वाली बिजली की आपूर्ति पंजाब राज्य को की जाती है।देश की आजादी तथा हिमाचल प्रदेश की स्थापना के बाद यहां पर राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के कई महत्वपूर्ण संस्थान स्थापित हुए हैं। जिनमें प्रदेश का राजस्व प्रशिक्षण संस्थान, भारतीय चिकित्सा पद्धति अनुसंधान संस्थान (हर्बल गार्डन), आयुर्वेदिक फॉर्मेसी, प्रदेश का पहला आयुर्वेदिक बीफॉर्मा प्रशिक्षण संस्थान, नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड का उत्तर भारत का क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र तथा कृषि विभाग का बीज गुणन प्रेक्षत्र प्रमुखता से शामिल हैं। इसके अतिरिक्त जोगिन्दर नगर शहर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर देश का पहला गोल्डन महाशीर मछली प्रजनन फॉर्म भी स्थापित किया गया है। जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश के उन गिने चुनें शहरी क्षेत्रों में शामिल है जहां पर सीवरेज की सुविधा उपलब्ध है।
पर्यटन की दृष्टि से जोगिन्दर नगर व यहां के आसपास का स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहां की साफ व स्वच्छ वायु बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। सर्दियों में जहां जोगिन्दर नगर के चारों ओर बर्फ से ढक़ी वादियां नयनाविभोर दृष्य बनाती है तो वहीं गर्मियों के दौरान यहां का तापमान 30 डिग्री सैल्सियस से अधिक नहीं जाता है। यहां की सबसे खास बात यह है कि ग्रीष्म मौसम में जैसे ही तापमान थोड़ा सा बढ़ता है तो यहां पर एकाएक बारिश मौसम को ओर सुहावना बना देती है। इसके अलावा पर्यटक विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग साइट बीड़-बीलिंग, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर झटींगरी, फूलाधार, घोघरधार, बरोट व चौहारघाटी का भी आनंद उठा सकते हैं। धार्मिक दृष्टि से भी जोगिन्दर नगर के आसपास कई प्रसिद्ध व ऐतिहासिक धार्मिक स्थान मौजूद हैं जिनमें मच्छयाल, मां चतुर्भुजा मंदिर, मां सिमसा मंदिर, नागेश्वर महादेव कुड्ड, बाबा बालकरूपी, त्रिवेणी संगम इत्यादि प्रमुख हैं। यहां पर प्रतिवर्ष 1-5 अप्रैल तक राज्य स्तरीय जोगिन्दर नगर देवता मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें यहां की देव संस्कृति देखते ही बनती है। इसके अलावा मेले के दौरान रंगारंग सांस्कृतिक संध्याएं भी मुख्य आकर्षण का केंद्र रहती हैं।जोगिन्दर नगर शहर पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग 154 से जुड़ा हुआ है। रेल नेटवर्क (नैरोगेज लाइन) की सुविधा जोगिन्दर नगर तक पठानकोट से उपलब्ध है जबकि नजदीकी हवाई अड्डा गगल कांगड़ा में है। यहां पर रहने के लिए कई सरकारी विश्राम गृहों के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटल के अतिरिक्त कई निजी होटल भी उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त प्रदेश की होम स्टे योजना के तहत पंजीकृत कई होम स्टे होटल भी हैं जहां पर्यटक प्रदेश की संस्कृति के साथ-साथ लोकल पकवानों व खाने का भी आनंद उठा सकते हैं।