Wednesday, 22 June 2016

हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड बना श्रमिकों का सहारा

जिला ऊना में एक वर्ष के दौरान 4376 मजदूरों को बांटे एक करोड रूपये  के लाभ
हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड अपनी विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से श्रमिकों व उनके परिजनों के कल्याण एवं उत्थान में कारगर साबित हो रहा है। अकेले जिला ऊना में ही गत एक वर्ष के दौरान 4376 श्रमिकों को लगभग एक करोड 16 लाख रूपये से अधिक के वित्तीय व अन्य लाभ प्रदान किए गए हैं।
श्रम अधिकारी ऊना जितेन्द्र बिन्द्रा ने बताया कि जिला ऊना में गत एक वर्ष के दौरान 4376 श्रमिकों को लाभान्वित कर लगभग एक करोड 16 लाख रूपये से अधिक के वित्तीय व अन्य लाभ प्रदान किए गए हैं। जिसमें बच्चों की शिक्षा के 819 मामलों में लगभग 15 लाख 88 हजार, बच्चों के विवाह के 109 मामलों में 21 लाख 34 हजार रूपये, चिकित्सा के 32 मामलों में एक लाख, कामगार की मृत्यु होने पर दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर दो लाख 60 हजार तथा मातृत्व व पितृत्व के लिए एक लाख 86 हजार रूपये की आर्थिक सहायता शामिल है। जबकि इस दौरान 1338 कामगारों को 26 लाख रूपये मूल्य के इंडक्शन हीटर, 388 मामलों में 5 लाख  82 हजार रूपये के कैरोसीन स्टोव तथा 64 मामलों में एक लाख 66 हजार रूपये के सोलर लैंप भी वितरित किए गए हैं। जिला ऊना में वर्तमान में हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के तहत 10523 श्रमिक पंजीकृत हैं जिसमें 2247 मनरेगा कामगार शामिल हैं। 
किन-किन योजनाओं के तहत मिलता है लाभ
हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के माध्यम से कामगारों एवं उनके परिजनों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही है जिसमें कामगारों के दो बच्चों की शिक्षा तक प्रति बच्चा एक हजार से 15 हजार रूपये प्रतिवर्ष, कामगार की स्वयं अथवा दो बच्चों की शादी के लिए प्रति बच्चा 25 हजार रूपये, प्रसूति लाभ योजना के तहत महिला कामगार को प्रसूति लाभ के लिए दो बच्चों तक दस-दस हजार जबकि पुरूष कामगार को एक हजार रूपये, बीमार होने की स्थिति में सरकारी एवं सरकार द्वारा अनुमोदित अस्पतालों में उपचार के लिए आउटडोर के तौर पर दस हजार जबकि इन्डोर तीस हजार रूपये वार्षिक की आर्थिक सहायता, 60 वर्ष से अधिक उम्र के कामगारों को पांच सौ रूपये प्रतिमाह पैंशन सहित महिला कामगारों को साईकिल और वाशिंग मशीन, कामगार को औजार खरीद के लिए 6 हजार रूपये ब्याजमुक्त ऋण, लाभार्थियों को सोलर कुकर, सोलर लैंप व इंडक्शन हीटर जैसी अन्य सुविधाएं भी मुहैया करवाई जा रही है। इसके अतिरिक्त लाभार्थी पति व पत्नी सहित बच्चों के कौशल विकास हेतु 15 सौ रूपये प्रतिमाह तथा 18हजार रूपये वार्षिक कौशल विकास भत्ता एवं आवासीय व्यवसायिक पाठयक्रम का रहन सहन सहित पूरा खर्च वहन किया जाता है जबकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत कामगार पति व पत्नी सहित परिवार के अन्य तीन सदस्यों को 30 हजार रूपये तक ईलाज की सुविधा भी दी जाती है।
किसका हो सकता है पंजीकरण
हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड में ऐसे कामगार अपना पंजीकरण करवा सकते हैं जो भवन एवं अन्य सन्निर्माण कार्य में 90 दिन या इससे अधिक दिनों से कार्यरत तथा मनरेगा में एक वर्ष में 50 दिन तक कार्य करने वाले कामगार अपना पंजीकरण करवा सकते हैं। इस सबंध में अधिक जानकारी के लिए मुख्य कार्यकारी अधिकारी हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के शिमला कार्यालय या अपने जिला के श्रम अधिकारी कार्यालय से संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

Monday, 20 June 2016

ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब हिमाचल प्रदेश

गुरु गोबिन्द सिंह जी का यमुना नदी के तट पर बसाया नगर पांवटा साहिब इतिहास की कई महान घटनाओं को संजोए हुए है। एक तरफ जहां सिख धर्म के इतिहास में विशेष स्थान रखता है तो दूसरी तरफ  सिक्खों के गौरवमयी इतिहास की यादों को ताजा करता है। इस धरती पर पांवटा साहिब ही एक ऐसा नगर है जिसका नामकरण स्वयं गुरु गोबिन्द सिंह जी ने किया है। इतिहास में लिखा है कि गुरु गोबिन्द सिंह जी 17 वैशाख संवत 1742 (1685 ई0) को नाहन पहुंचे तथा संक्राति 1742 संवत को पांवटा साहिब की नींव रखी। इसी स्थान से गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 16 वैशाख संवत 1746 (1689 ई0) को भंगाणी के मैदान में पहला युद्ध लड़ा था। बिना प्रशिक्षण एकत्रित फौज को बाईसधार के राजाओं के मुकाबले में लाकर उनकी 25,000 फौज की कमर तोड़ दी थी। इसी युद्ध से गुरु जी ने जुल्म के विरुद्ध जंग लडऩे का ऐलान किया और एक-एक करके 13 युद्ध लड़े। 
गुरु गोबिन्द सिंह जी 4 साल तक पांवटा साहिब में रहे। इस दौरान उन्होने यहां रहकर बहुत से साहित्य तथा गुरुवाणी की रचनांए भी की है। प्राचीन साहित्य का अनुभव और ज्ञान से भरी रचनाओं को सरल भाषा में बदलने का काम भी गुरु गोबिन्द सिंह जी ने लेखकों से करवाया। गुरु गोबिन्द सिंह जी यहां पर एक कवि दरबार स्थान की स्थापना की जिसमें 52 भाषाओं के भिन्न-भिन्न कवि थे। कवि दरबार स्थान पर गुरु गोबिन्द सिंह जी पूर्णमाशी की रात को एक विशेष कवि दरबार भी सजाया। 
यमुना नदी के तट की ओर से गुरूद्वारे का विहंगम दृश्य
इतिहास के पन्नों के अनुसार बाईस धार के राजाओं में परस्पर लड़ाई झगड़े चलते रहते थे। नाहन रियासत के तत्कालीन राजा मेदनी प्रकाश का कुछ इलाका श्रीनगर गढ़वाल के राजा फतहशाह ने अपने कब्जे में कर लिया था, और राजा मेदनी प्रकाश अपने क्ष्ेात्र को वापिस लेने में विफल रहा था। राजा मेदनी प्रकाश ने रियासत के प्रसिद्ध तपस्वी ऋषि काल्पी से सलाह मांगी। उन्होने कहा कि दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी को अपनी रियासत में बुलाओ वही तुम्हारा संकट दूर कर सकते हैं। राजा मेदनी प्रकाश के आग्रह पर गुरु गोबिन्द सिंह जी नाहन पहुंचे। जब गुरु जी नाहन पहुंचे तो राजा मेदनी प्रकाश, उनके मंत्रियों, दरबारियों व गुरु घर के सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने उनका शानदार और परंमपरागत स्वागत किया। कुछ दिन नाहन रहकर गुरु गोबिन्द सिंह जी इलाके का दौरा किया और कई स्थान देखे। वह वर्तमान पांवटा साहिब नगर वाली एक जगह पर यमुना नदी के किनारे पहुंचे तो गुरु जी को यहां का प्राकृतिक सौंदर्य बहुत ही पसंद आया और यहीं ठहरने का फैसला कर लिया। इसी स्थान पर कुछ ही दिनों के भीतर एक किले जैसी इमारत बन गई और लोगों के रहने और कारोबार के लिए नगर का निर्माण शुरु हो गया। राजा मेदनी प्रकाश ने यहां की सारी जमीन गुरु गोबिन्द सिंह जी को सौंप दी। गुरु जी ने इस नगर का नाम पांवटा रखा। महान शब्द कोश में पांवटा शब्द के तीन अर्थ मिलते हैं।
1 जिसमें पांव टिकाया जा सके, रकाब
2 जोड़ा जूता
3 मकान के आगे बिछाया गया कालीन जिस पर सम्मान योग्य मेहमान पांव रख कर आए। 
विशेष आयोजन के दौरान गुरूद्वारे का खूबसूरत दृश्य
यह सारे अर्थ ही इस नगर के नाम से मेल खाते कहे जा सकते हैं। गुरु जी अपने बसाए इस नगर में 4 वर्ष तक रहे तथा बाईस धार के राजाओं के साथ भंगाणी के मैदान में युद्ध लड़े और शानदार विजय प्राप्त कर राजा मेदनी प्रकाश की समस्या को हल किया। यमुना नदी के तट पर बसा यह गुरुद्वारा विश्व प्रसिद्ध है। यहां पर भारत से ही नहीं अपितु दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं। पांवटा साहिब आने वाला प्रत्येक यात्री चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित क्यों न हो, गुरुद्वारे में माथा टेकना नहीं भूलता है। प्रतिवर्ष होला मोहल्ला पर्व भी पांवटा साहिब में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जिसमें सभी धर्मों के लोग बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं। धार्मिक आस्था रखने वालों के लिए यह स्थान अति महत्वपूर्ण है। यह स्थान देश के सभी प्रमुख स्थानों से सडक़ मार्ग से वर्ष भर जुड़ा हुआ है। यहां से जिला मुख्यालय नाहन लगभग 45 कि0मी0, यमुनानगर 50 कि0मी0, चण्डीगढ 125 कि0मी0, अंबाला 104 कि0मी0, शिमला वाया सरांहा 178 कि0मी0 तथा देहरादून लगभग 45 कि0मी0 दूर है। इसके अलावा पांवटा व आसपास के क्षेत्र में भी अनेक गुरुद्वारे है, जिनका धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से अपना महत्व हैं । 
गुरुद्वारा तीरगढ़ी साहिब:
यह सुन्दर स्थान पांवटा साहिब से लगभग 18 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। यह वह स्थान है जहॉं ऊंचे टीले पर खड़े होकर कलगीधार पातशाह खुद तीर चलाते हुए दुश्मनों की फौजों का सामना करते रहे हैं। गुरु साहिब के यहॉं तीर चलाने के कारण ही इस स्थान को तीर गढ़ी कहा जाता है। 
गुरुद्वारा भंगाणी साहिब:
यह सुन्दर स्थान भी पांवटा साहिब से लगभग 18 कि0मी0 तथा तीरगढ़ी साहिब से 01 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। यह वह स्थान है जहां पर कलगीधार पातशाह ने बाईसधार के राजाओं के विरुद्ध पहल युद्ध लड़ा है। यहॉं गुरु साहिब रात को विश्राम किया करते थे और अगले दिन युद्ध की रुप रेखा तैयार करते थे। हरे भरे खेतों, यमुना नदी व ऊंचे पहाड़ों के बीच एक रमणीय स्थल है। 
गुरुद्वारा रणथम्म साहिब:
यह पवित्र स्थान गुरुद्वारा श्री तीरगढ़ी साहिब व गुरुद्वारा श्री भंगाणी साहिब के बीच में है। भंगाणी साहिब के युद्ध के समय श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के नियुक्त किये हुए सेनापति संगोशाह ने गुरु जी का हुक्म मानकर अपनी आधी सेना को मैदान में ले जाकर रणथम्म गाड़ कर हुक्म किया कि इससे पीछे नहीं हटना, आगे बेशक बढ़ जाना। गुरु जी की इस रणनीति की वजह से गुरु घर के आत्म बलिदानियों ने दुश्मन की 25 हजार की हर तरह से ट्रेंड़ और हथियारों से लैस फौज का डट कर मुकाबला किया और रणथम्म से आगे आने का मौका ही नहीें दिया। गुरु साहिब ने यह युद्ध जीत लिया। इस तरह यह ऐतिहासिक स्थान एक विशेष महत्व रखता है। 
गुरुद्वारा शेरगाह साहिब:
यह पवित्र स्थान पांवटा साहिब से पांच कि0मी0 दूर निहालगढ़ गांव में है। इस स्थान पर श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने महाराजा नाहन, मेदनी प्रकाश और महाराजा गढ़वाल फतह चंद के सामने उस आदमखोर शेर को तलवार से मारा था जिस ने इलाके में बहुत बड़ा जानी नुकसान कर दिया था और जिस के सामने बड़े-बड़े शूरवीर भी जाने से कतराते थे। बताते हैं कि यह शेर राजा जैयदर्थ था जिस ने वीर अभिमन्यु को महाभारत की जंग में छलावे से मारा था और अब शेर की जूनी भुगत रहा था। गुरु जी ने उस की मुक्ति की। 
गुरुद्वारा दशमेश दरबार साहिब:
  यह ऐतिहासिक स्थान पांवटा साहिब से लगभग 8 कि0मी0 श्री भंगाणी साहिब मार्ग पर गांव हरिपुर के साथ छावनीवाला में स्थित है। यहां पर गुरु जी भंगाणी साहिब के योद्धाओं से विचार विमर्श किया करते थे, इसलिए इस जगह का नाम छावनी वाला पड़ गया।
गुरुद्वारा कृपाल शिला पांवटा साहिब:
यह गुरुद्वारा मुख्य गुरुद्वारे से मात्र एक कि0मी0 की दूरी पर है। यहां गुरु गोविन्द सिंह जी के शिष्य बाबा कृपालदास ने शिला के ऊपर बैठक कर तपस्या की थी।
गुरुद्वारा साहिब, नाहन:
जब गुरु जी महाराजा सिरमौर मेदनी प्रकाश के बुलावे पर नाहन पहुंचे तो उनका शानदार और श्रद्धापूर्वक स्वागत हुआ। जिस स्थान पर गुरु जी ठहरे वहां ऐतिहासिक यादगार के तौर पर महाराजा ने गुरुद्वारा बना दिया।
गुरुद्वारा टोका साहिब:
यह वह ऐतिहासिक स्थान है जहॉं पंजाब (अब हरियाणा) से सिरमौर रियासत में दाखिल होते समय गुरु जी ने पहला पड़ाव किया था। गुरु जी का यह ऐतिहासिक यादगार स्थान औद्योगिक कस्बे कालाअंब से महज पांच कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। 
गुरुद्वारा बडूसाहिब:
यह स्थान खालसा की गुप्त तपोभूमि के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस स्थान को वर्ष 1957 में संत अतर सिंह ने खोजा था। यह स्थान राजगढ़ से 20 कि0मी0, नाहन से 50 कि0मी0, तथा पांवटा साहिब से लगभग 100 कि0मी0 दूर है।