आज का दौर विज्ञान] भूमण्डलीकरण] औद्योगिकरण व तरक्की का है। जिसके चलते जगह-जगह शिक्षा के केन्द्र खुले हैं] व्यावसायिक व तकनीकि शिक्षा हासिल करने के सुअवसर बढ़े हैं। तेजी से बढते औद्योगिकरण के कारण जहां हमारे आर्थिक विकास के साधन तेजी से विकसित हुए हैं तो वहीं शिक्षा के फैलाव के साथ&साथ रोजगार के नए-नए साधन भी सृजित हुए हैं। परन्तु जैसे&जैसे आर्थिक विकास की रफतार बढ़ी है वैसे&2 लोगों का रुझान गांव की नीरस] वीरान व सुस्त लगने वाली जिन्दगी से शहरों की चकाचौंध व तड़क भड़क वाली रफतार की तरफ तेजी से देखने को मिल रहा है। यही कारण है कि आज समाज का हर व्यक्ति बेहतर सुख सुविधाओं की चाहत जिसमें चाहे अच्छी व गुणवतायुक्त शिक्षा की बात हो या फिर रोजगार के बेहतर अवसरों की तलाश हो। हर कोई ज्यादा से ज्यादा सुख सुविधाओं की लालसा में आए दिन ग्रामीण क्षेत्रों को अलविदा कहकर शहरों की तरफ पलायन कर रहा है। लोग अपनी परम्परागत पशुपालन] कृषि] बागवानी के साथ-साथ गांव की शुद्ध हवा] पानी व मिटटी को छोड़कर शहरों की तंग गलियों] धूल व प्रदूषण से भरी सडकों व दिन रात भागती जिन्दगी को अपना रहे हैं।
हकीकत तो यह है कि आज की नौजवान पीढ़ी आधुनिकता की चकाचौंध से इतनी प्रभावित है कि हमारे गांव बडे-बुजुर्गों तक ही सीमित होकर रह गए हैं। लेकिन दूसरी तरफ शहरी जीवन की हकीकत तो यह है कि जहां हमें दो वक्त की रोटी के लिए भी खूब पसीना बहाना पड रहा है तो वहीं सीमित होते साधनों के चलते प्रतिस्पर्धा भी कड़ी होती जा रही है। साथ ही शहरों में बढ़ती आबादी से रोजमर्रा की जरुरतों पर दबाव बढ़ने से मंहगाई की रफतार भी तेजी से बढ़ी है। जबकि दूसरी ओर गांव की हरी भरी धरती] लहलहाते खेत व मिटटी की खुश्बू अपनों की विरानगी में न जाने कहीं गुम होती जा रही है। लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि आखिर यह पलायन क्यों बढ़ रहा हैA क्यों आज हर कोई बड़े़-2 शहरों में जाकर बसना चाहता है] क्या हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में सुख सुविधाओं व बेहतर साधनों की कमी है या फिर महज दूसरों की देखा देखी में ही हम शहरी जीवन के मोहपाश में बंधे चले जा रहे हैंA खैर कारण कुछ भी हो] परन्तु यदि वास्तविकता के धरातल में देखें तो आज जहां हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा स्कूल] काॅलेज] व्यावसायिक] तकनीकि व स्वास्थय संस्थान खुले हैं तो वहीं रोजगार के साधन सृजित करने के लिए मनरेगा जैसी योजनांए चलाई गई है। हकीकत तो यह है कि 4&5 हजार की नौकरी के लिए शहरों को पलायन करने वाले ग्रामीणों को मनरेगा ने जहां घर बैठे ही रोजगार सुनिश्चित कर दिया है तो वहीं सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत दिए जा रहे उपदान से संबंधित योजनाओं को अपनाकर आर्थिक तौर पर समृद्ध होने के साथ-साथ अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों का निर्वाह घर बैठे ठीक से कर पाएंगें। इतना ही नहीं पढ़े लिखे नौजवानों के लिए कृषि व बागवानी के क्षेत्र में पाॅलीहाउस योजनाएं सब्जियों के साथ&2 फूलों की खेती एक बेहतर स्वरोजगार के साधन उपलब्ध करवा रही हैं। इसी तरह दुग्ध उत्पादन] मुर्गी पालन] मच्छली पालन] मधुमक्खी पालन] खुम्म की खेती के साथ&2 लघु व कुटीर उद्यौगों के माध्यम से भी स्वरोजगार के नए&2 अवसर सृजित हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य में पर्यटन भी एक बेहतरीन स्वरोजगार का विकल्प है। बस जरुरत है इस दिशा में व्यवाहरिक दृष्टिकोण अपनाने की।
इस तरह की अनेकों स्वरोजगार योजनाओं से जुड़ने के लिए जहां सरकार करोड़ों रुपयों का उपदान उपलब्ध करवा रही है तो वहीं आधुनिक व तकनीकि ज्ञान उपलब्ध करवाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। बस जरुरत है नौजवानों को इन अवसरों को भुनाने की। आज हमारे पास सैंकडों ऐसे युवाओं के उदाहरण मिल जाएंगें जो ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहकर स्वरोजगार के माध्यम से ज्यादा खुशहाल बन प्रगति के पथ पर तेजी से आगे बढ़े हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों के बेहतर विकास हेतू जहां हमें मनरेगा जैसे कानून को ज्यादा प्रभावशाली बनाकर ज्यादा बल मिले तो वहीं स्वरोजगार योजनाओं को भी ज्यादा से ज्यादा युवाओं तक पहुंचाने की जरुरत है ताकि सरकारी नौकरी के इंतजार मे वर्षों बर्बाद करने वाली हमारी नौजवान पीढ़ी देश व समाज के विकास में समय रहते सकारात्मक भूमिका में खडी हो सके। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा] स्वास्थ्य] जैसी मूलभूत सूविधाओं को ज्यादा सशक्त बनाकर शहरों की ओर बढ़ते इस पलायन को भी रोका जा सके।
हकीकत तो यह है कि आज की नौजवान पीढ़ी आधुनिकता की चकाचौंध से इतनी प्रभावित है कि हमारे गांव बडे-बुजुर्गों तक ही सीमित होकर रह गए हैं। लेकिन दूसरी तरफ शहरी जीवन की हकीकत तो यह है कि जहां हमें दो वक्त की रोटी के लिए भी खूब पसीना बहाना पड रहा है तो वहीं सीमित होते साधनों के चलते प्रतिस्पर्धा भी कड़ी होती जा रही है। साथ ही शहरों में बढ़ती आबादी से रोजमर्रा की जरुरतों पर दबाव बढ़ने से मंहगाई की रफतार भी तेजी से बढ़ी है। जबकि दूसरी ओर गांव की हरी भरी धरती] लहलहाते खेत व मिटटी की खुश्बू अपनों की विरानगी में न जाने कहीं गुम होती जा रही है। लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि आखिर यह पलायन क्यों बढ़ रहा हैA क्यों आज हर कोई बड़े़-2 शहरों में जाकर बसना चाहता है] क्या हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में सुख सुविधाओं व बेहतर साधनों की कमी है या फिर महज दूसरों की देखा देखी में ही हम शहरी जीवन के मोहपाश में बंधे चले जा रहे हैंA खैर कारण कुछ भी हो] परन्तु यदि वास्तविकता के धरातल में देखें तो आज जहां हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा स्कूल] काॅलेज] व्यावसायिक] तकनीकि व स्वास्थय संस्थान खुले हैं तो वहीं रोजगार के साधन सृजित करने के लिए मनरेगा जैसी योजनांए चलाई गई है। हकीकत तो यह है कि 4&5 हजार की नौकरी के लिए शहरों को पलायन करने वाले ग्रामीणों को मनरेगा ने जहां घर बैठे ही रोजगार सुनिश्चित कर दिया है तो वहीं सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत दिए जा रहे उपदान से संबंधित योजनाओं को अपनाकर आर्थिक तौर पर समृद्ध होने के साथ-साथ अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों का निर्वाह घर बैठे ठीक से कर पाएंगें। इतना ही नहीं पढ़े लिखे नौजवानों के लिए कृषि व बागवानी के क्षेत्र में पाॅलीहाउस योजनाएं सब्जियों के साथ&2 फूलों की खेती एक बेहतर स्वरोजगार के साधन उपलब्ध करवा रही हैं। इसी तरह दुग्ध उत्पादन] मुर्गी पालन] मच्छली पालन] मधुमक्खी पालन] खुम्म की खेती के साथ&2 लघु व कुटीर उद्यौगों के माध्यम से भी स्वरोजगार के नए&2 अवसर सृजित हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य में पर्यटन भी एक बेहतरीन स्वरोजगार का विकल्प है। बस जरुरत है इस दिशा में व्यवाहरिक दृष्टिकोण अपनाने की।
इस तरह की अनेकों स्वरोजगार योजनाओं से जुड़ने के लिए जहां सरकार करोड़ों रुपयों का उपदान उपलब्ध करवा रही है तो वहीं आधुनिक व तकनीकि ज्ञान उपलब्ध करवाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। बस जरुरत है नौजवानों को इन अवसरों को भुनाने की। आज हमारे पास सैंकडों ऐसे युवाओं के उदाहरण मिल जाएंगें जो ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहकर स्वरोजगार के माध्यम से ज्यादा खुशहाल बन प्रगति के पथ पर तेजी से आगे बढ़े हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों के बेहतर विकास हेतू जहां हमें मनरेगा जैसे कानून को ज्यादा प्रभावशाली बनाकर ज्यादा बल मिले तो वहीं स्वरोजगार योजनाओं को भी ज्यादा से ज्यादा युवाओं तक पहुंचाने की जरुरत है ताकि सरकारी नौकरी के इंतजार मे वर्षों बर्बाद करने वाली हमारी नौजवान पीढ़ी देश व समाज के विकास में समय रहते सकारात्मक भूमिका में खडी हो सके। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा] स्वास्थ्य] जैसी मूलभूत सूविधाओं को ज्यादा सशक्त बनाकर शहरों की ओर बढ़ते इस पलायन को भी रोका जा सके।
(साभार: दिव्य हिमाचल 12 अप्रैल, आपका फैसला 30 अप्रैल, 2012 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)